Digvijaya Singh
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18 अगस्त 1979 ग्राम दहेली जिला गुना के श्री पन्ना तथा अन्य हरिजनों की पिटाई

18 अगस्त 1979 ग्राम दहेली जिला गुना के श्री पन्ना तथा अन्य हरिजनों की पिटाई

दिनांक 18.04.1979


ग्राम दहेली थाना ईसागढ जिला गुना के श्री पन्ना तथा अन्य हरिजनों की पिटाई।
    
श्री दिग्विजय सिंह (राधोगढ़) : श्री अर्जुनसिंह, श्री हजारीलाल रघुवंशी, श्री वंशीलाल वृतलहरे, श्री महादेव प्रसाद हजारी, अध्यक्ष महोदय, मैं नियम 138 (1) के अधीन गृह मन्त्री महोदय का ध्यान निम्न अविलंबनीय सार्वजनिक महत्व के विषय की ओर आकर्षित करता हूं और अनुरोध करता हूं कि वे इस पर अपना वक्तव्य देने का कष्ट करें। विषय इस प्रकार है :-
    ‘‘गुना जिले के ग्राम दहेली थाना ईसागढ़ के श्री पन्ना पुत्र हरिजन को दिनांक 31-3-79 को उसी ग्राम के कृपान सिंह इस्मदी ने बुरी तरह पीटा, जिससे उसके शरीर में अनेक गंभीर चोटें आई। उसी दिनांक को अल्पवयस्क पन्ना अपने पिता श्री प्रभु के साथ थाना ईसागढ़ पहुंचा किन्तु उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई और दो दिन पश्चात् दिनांक 2-4-79 को जब यह पुनः थाने पर गया तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की लेकिन उसमें भी घुमा फिरा कर बात लिखी गई। उसके द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट के मुताबिक नहीं थी। पुलिस ने अपराधियों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जिससे अपराधियों को और प्रोत्साहन मिला। पुलिस की निष्क्रियता को देखते हुए दिनांक 9-4-79 को प्रभु ने न्यायालय एस. डी. एम. अशोकनगर में धारा 107 .... फौजदारी के अंतर्गत अपराधियों के विरूद्ध इस्तगासा पेश किया। जब यह अपने गांव लौटा तो दिनांक 10-4-79 को संघातिक हमले की वजह से श्री लटूरा पुत्र बल्ला चमार, घटना स्थल पर मारा गया है तथा प्रभु वल्द नोनिता गम्भीर रूप से घायल हुआ है। यदि पुलिस पूर्व में प्रतिबन्धात्मक कार्यवाही कर लेती तो इस निर्दोष को अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता। पुलिस द्वारा इस प्रकार की निष्क्रियता से यहां के हरिजनों एवं आप नागरिकों में भारी रोष क्षोभ एवं भय का वातावरण व्याप्त हैं।
    
गृह (पुलिस) मन्त्री (श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी) : अध्यक्ष महोदय,....प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम देहला थाना ईसागढ़ (जिला गुना) के श्री पन्ना पुत्र प्रभु जाटव के अपने पिता प्रभु के साथ दिनांक 2-4-79 की थाने पर रिपोर्ट की थी कि 31-3-79 को जंगल में मवेशी चराते समय कृपाल सिंह उसके पास आये तथा उससे पूछा कि उसकी भैंस कहां हैं। फरियादी बोला मालूम नही तो अभियुक्त कृपालसिंह ने उसकी गर्दन पकड़ ली व  लाठियां से मारना शुरू कर दिया जिससे बांये हाथ, पोंहचा, दाहिनी जांघ एवं बांयी जांघ व पीठ में चोटें आई। इस रिपोर्ट पर धारा 323/504 सा. हि. का अपराध बनता था जो अदमदस्तदांजी है। पन्ना का मेडीकल परीक्षण कराया गया तों डॉक्टरी रिपोर्ट में 5 साधारण चोटें डॉक्टर के द्वारा बताई गई। दिनांक 8-4-79 को जे. एम. एफ. सी. अशोक नगर में अदमदस्तन्दाजी अपराध के अनुसंधान हेतु धारा 155 (2) जा. फो. के तहत अनुमति चाही। मजिस्ट्रेट ने अनुमति नहीं दी। पुनः दिनांक 13-4-79 को अनुमति मांगी गई फिर भी नहीं दी गई। यदि अनुमति प्राप्त हो जाती तो अपराधियों के विरूद्ध अपराधिक प्रकरण न्यायालय में दायर किया जाता। इस बीच प्रभु द्वारा 107 जा. फो. के तहत परीमा चमार एवं प्रभु चमार की ओर से अनावेदक के विरूद्ध दिनांक 14-4-79 को इस्तगासा न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।


    दिनांक 31-3-79 को पन्ना प्रभु हरिजन के द्वारा थाना ईसागढ़ में कोई रिपोर्ट नहीं की गई थी। दिनांक 2-4-79 को उसने जैसी रिपोर्ट लिखाई वैसी रिपोर्ट लिखी गयी। 


    दिनांक 10-4-79 को ग्राम देहला में भरोसा पुत्र लटूरा चमार के गोड़ा में रतीराम के बैल जाने पर से वाद-विवाद हुआ। रतीराम, कमलसिंह, कृपालसिंह यादव आदि 9 मुल्जिमान ने झगड़ा व मारपीट की इसमें कमलसिंह ने अपनी लायसेंसी बंदूक से लटूरा पुत्र कल्ला चमार को मार दिया। अन्य चार व्यक्तियों को भी चोटें आई। रिपोर्ट से अपराध क्रमांक 68/79 धारा 302, 307, 148, 149 ता. हि. का कायम किया गया। दिनांक 11-4-79 को मुल्जिम कमलसिंह, नारायणसिंह, लक्ष्मणसिंह, रतीराम, भूमलसिंह (सभी यादव) निवासी देहला गिरफ्तार किये गए व दिनांक 12-4-79 को शेष चार मुल्जिम कृपालसिंह, रामसिंह, परमालसिंह, बादामसिंह सभी गांव देहला गिरफ्तार किए गए। घटना में प्रयुक्त बंदूक, लहोंहागी बरामद किये गए।
    फरियादी व अभियुक्त के परिवारों में घटना दिनांक को सुबह तक अच्छे संबंध थ। पूर्व में इन परिवारों में कोई तनाव नहीं था और न ही ऐसी घटना होने की आशंका थी अतः प्रकरण में प्रतिबन्धात्मक कार्यवाही का कोई प्रश्न नहीं था। प्रभु चमार व मृतक लटूरा चमार में कोई रिश्तेदारी नहीं है और न ही 10-4-79 को उसका किसी से कोई झगड़ा हुआ। दिनांक 31-3-79 तथा दिनांक 10-4-79 की घटनाओं का आपस में कोई संबंध नहीं है।
    पुलिस निष्क्रिय नहीं है। दोनों प्रकरणों में उसने तत्परता से कार्यवाई की। हरिजनों एवं अन्य नागरिकों में रोष एवं भय का वातावरण व्याप्त नहीं है।
    
श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मन्त्री जी से यह पूछना चाहता हूं कि उन्होंने कहा है कि 31-3-79 और 10-4-79 की घटना का कोई संबंध नहीं है तो क्या इस झगड़े में प्रभु वल्द नौनीता को चोट लगी है और जब पन्ना ने रिपोर्ट की तो उसकी हरिजन होने के नाते पिटाई की गई। क्या ईसागढ़ के दरोगा का यह कर्तव्य नहीं था कि धारा 107 में प्रतिबन्धात्मक कार्यवाही करता। उसे हरिजन एक्ट के तहत केस रजिस्टर करना था ताकि गरीब हरिजन को ठाकुरों से संरक्षण प्राप्त होता।
    
श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी : प्रभु को कोई चोट नहीं आई थी। 10-4-79 की घटना से उसका कोई संबंध नहीं था इसलिए कार्यवाही करने की आवश्यकता नहीं थी।
    
श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, प्रधान मन्त्री ने कई बार कहा कि किसी भी हरिजन आदिवासी की हत्या होती है तो स्थानीय अधिकारी की जिम्मेदारी होगी। जब यह मालूम था कि पिटाई की गई तो उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की गई ? जिस व्यक्ति ने चोट पहुंचाई थी वह साधन संपन्न है, वह पुलिस और डॉक्टर से मिल लेते है, जैसी रिपोर्ट बनवाना चाहते हैं बन जाती हैं। क्या स्थानीय दरोगा का कर्तव्य नहीं था कि उनके खिलाफ107 में कार्यवाही करता और हरिजन एक्ट के तहत कार्यवाही करता।
    
श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी : अध्यक्ष महोदय, साफ शब्दों में उत्तर दिया जा चुका है। पहली और दूसरी घटना से प्रभु का संबंध नहीं है। उसे कोई चोट नहीं आई है।
    
श्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा : जैसा माननीय सदस्य ने सुझाव दिया है, ठाकुरों से हरिजनों को पूर्ण संरक्षण दिया जायेगा उन्हें अत्याचार नहीं करने दिया जायेगा।
    
श्री अर्जुनसिंह : अध्यक्ष महोदय, मैं दो प्रश्न पूछूंगा।
    
अध्यक्ष महोदय : एक साथ पूछ लीजिये, और जोड़ लीजिये दो अलाउ नहीं करूंगा।
    
श्री अर्जुनसिंह : दिनांक 31-3-79 को जो रिपोर्ट की गई वह लिखी नहीं गई उसका  कारण क्या था और लिखी गई तो क्या कार्यवाही की गई ? 10-4-79 को जो घटना हुई उस घटना में क्या प्रभु वल्द नौनीता घायल हुआ तो दोनों का एक दूसरे से संबंध क्यों नहीं है यदि रिपोर्ट लिख ली गई होती और कार्यवाही की गई होती तो शायद आगे की घटना को रोका जा सकता था।
    
श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी : दिनांक 31-3-79 की घटना के संबंध में बताया गया है कि 323, 504 ताजीरात हिन्द के अपराध कायम किये गये लेकिन यह पुलिस हसतक्षेप करने लायक अपराध नहीं था। स्वीकृति मांगी गई कि कोर्ट में चालान प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाय। दो बार प्रयत्न किया पर दोनों वार असफलता मिली। जहां तक प्रभु का सवाल है उसे कोई चोट नहीं आई। 10-4-79 की घटना में उपस्थित भी नहीं है। 31-3-79 की घटना लिखी गई है।
    
श्री हजारीलाल रघुवंशी : अध्यक्ष महोदय, इस विधानसभा सत्र में इस तरह की घटनाएं प्रदेश में होती रही और हम सदैव माननीय मन्त्री जी का ध्यान आकर्षित करते रहते हैं। मेरा उनसे निवेदन है कि लगातार प्रदेश के हरिजनों की इस तरह हत्या हो रही है तो क्या आप हरिजनों को प्रशिक्षित करके (पुलिस विभाग आपका है) उन्हें हथियारों से लैस करेंगे ताकि इस तरह की घटना न हो।
( कोई उत्तर नहीं दिया गया। )
    
श्री हजारीलाल रघुवंशी : अध्यक्ष महोदय, मेरी बात का जबाव नहीं आया। मैं यह पूछ रहा हूं कि उनके ऊपर निरन्तर इस तरह की घटनाएं होती हैं इनको अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है क्या इस तरह का कोई प्रकरण विचाराधीन या इस तरह का पालिसी मैटर बनाया जा रहा है ?
    
अध्यक्ष महोदय : पालिसी मैटर के लिए चर्चा अलग होगी उसमें कर लेंगे।
    
श्री हजारीलाल रघुवंशी : मैं तो यह पूछ रहा हूं कि क्या आप हथियार देंगे ?
    
अध्यक्ष महोदय : प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
    
श्री दिग्विजय सिंह : उपस्थित होता है इसलिए कि कमलसिंह की बन्दूक से लटूरा मारा गया यदि लटूरा के पास हथियार होता तो वह नहीं मारा जाता।
    
अध्यक्ष महोदय : सीधा प्रश्न यह पूछिये, इस प्रकार की घटनाएं हुई हैं तो क्या आप हरिजनों को शस्त्रास्त्र देंगे।
    
श्री हजारीलाल रघुवंशी : अध्यक्ष महोदय, हरिजनों के ऊपर घटनाएं घट रही हैं निरंतर हरिजन मारे जा रहे हैं तो क्या हरिजनों को शास्त्रास्त्र प्रदान करने की कार्यवाही करेंगे ?
    
श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, हरिजनों के आवेदन-पत्र में हथियार के लायसेंस की मैंने कई वार अनुशंसा की है, लेकिन एक भी लायसेंस नहीं दिया गया।
    
अध्यक्ष महोदय : कब की ?
    
श्री दिग्विजय सिंह : साल भर हो गया। अध्यक्ष महोदय, उसी के तारतम्य में पूछ रहा हूं।
    
श्री शिवभानु सोलंकी : अध्यक्ष महोदय, जब से जनता पार्टी का शासन बना है तब से ऐसे नियम बना दिये हैं कि प्रदेश से हरिजनों का सफाया किया जावे।
    
श्री बंशीलाल धृतलहरे : अध्यक्ष महोदय, प्रदेश में ऐसी घटनाएं बढ़ती जाती हैं अगर शासन पुलिस को जो तनख्वाह दी जा रही है उसमें वृद्धि कर दे तो इस प्रकार की घटनाएं न होने पावे।
    
श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी : हरिजनों को पूर्ण संरक्षण प्रदान करने की योजना है और शासन उस दृष्टि से काम भी करता है।
( व्यवधान )
    
श्री बंशीलाल धृतलहरे : अध्यक्ष महोदय, ईसागढ़ के थानेदार का स्थानांतरण हो चुका था लेकिन किसी वजह से उसका स्थानांतरण पुनः रोक दिया है और इस संबंध में इस प्रदेश के महा निरीक्षक का बहुत सारे आरोप पत्र प्रस्तुत किये गये। इन्क्वायरी होने के बावजूद उसको पुनः नियुक्त कर दिया है क्या पुलिस मन्त्री इस सम्बन्ध में प्रकाश डालेंगे ?
    
श्री हजारीलाल रघुवंशी : थानेदार का ट्रांसफर क्यों रोका गा इसका उत्तर क्या मन्त्री जी देंगे ?
    
श्री दिग्विजय सिंह : उन्हें वहीं पदस्थ कर दिया। मेरा स्पष्ट आरोप है यदि वह वहीं पर रहा तो इस तरह की घटनाए बढ़ती जायेंगी। मैं मन्त्री जी से पूछना चाहता हूं कि प्रभारी अधिकारी का ट्रांसफर क्यों रद्द किया गया।
    
अध्यक्ष महोदय : क्या शिकायत पर ट्रांसफर हुआ था ?
    
श्री प्रभुनारायण त्रिपाठी : इसकी जानकारी नहीं है कि उनका ट्रांसफर हुआ था या नहीं एस. पी. या डी. आय. जी ने किया होगा।
नियम 267-क के अन्तर्गत विषय

समय 11-55      


(1) समर्थन मूल्य से कम मूल्य पर किसानों का गेहूं बिकना


    श्री रतन पाटौदी (देपालपुर) : अध्यक्ष महोदय, भारत शासन द्वारा सन् 1979-80 के लिए गेहूं का समर्थन मूल्य 115 (एक सौ पन्द्रह) रूपये निश्वित किया है। किन्तु मध्यप्रदेश की मण्डियों में व्यापारियों के द्वारा 94 से 100 के भाव में किसानों से गेहूं खरीदा जा रहा है। मेरा मध्यप्रदेश शासन से अनुरोध है कि वह किसानों की इस लूट को बन्द करने के लिए भारत सरकार द्वारा निश्चित किये गये समर्थन मूल्य 115 रू0 के भाव में तत्काल गेहूं खरीदने की व्यवस्था करें इस व्यवस्था में विलम्ब से किसानों और उपभोक्ताओं दोनों की लूट होगी, क्योंकि आर्थिक दृष्टि से कमजोर किसान अपना गेहूं बेच रहे हैं। यह गेहूं अभी व्यापारियों के गोदामों में इकट्ठा हो रहा है। जब किसान के पास से सारा गेहूं निकल जावेगा तब व्यापारी गेहूं का दाम बढ़ाकर मुनाफा कमावेंगे। फलस्वरूप किसान और उपभोक्ता दोनों ही व्यापारियों की इस मुनाफावृत्ति के शिकार होंगे। शासन मेरे इस वक्तव्य का चाहे जवाब न दें, लेकिन मेरा आग्रह है कि शासन इस सम्बन्ध में आज से ही कार्यवाही प्रारम्भ कर दे।


(2) नरसिंहपुर जिले में रेल्वे स्टेशनों पर रेल्वे बेगानों का अभाव


    श्री नगीन कोचर (गाडरवारा) : अध्यक्ष महोदय, नरसिंहपुर जिले व आस पास की रेल्वे स्टेशनों पर सतिम्बर 1978 के इन्डेंट पेडिंग हैं। इस समय जिले की मण्डियों में प्रतिदिन 10 हजार कुन्टल अनाज की आवक है परन्तु इस अनाज की निकासी के लिए महीनों से बैंगनें सप्लाई न होने के कारण जिले की मण्डियों में व दाल मिलों में अनाज का अम्बार लगा हुआ है। (1) दाल मिलें बन्द होने की स्थिति में हैं जिससे हजारों मजदूर बेकार हो जावेंगे (2) किसानों को महीनो से पेमेंट नहीं मिल रहा है जिस कारण किसानों में असन्तोष व्याप्त है (3) उपभोक्ता स्थानों पर समय पर माल न पहुंचने के कारण दालों के भाव फिर से बढ़ गये हैं। (4) इसकी गम्भीरता इस हद तक बढ़ गई है कि दिनांक 14-4-1979 को उद्योग मन्त्री जी के नरसिंहपुर दौरे के समय वहां के मजदूरों, किसानों व व्यापारियों ने 8 घण्टे गुड्स वे को रोका। फिर मन्त्री जी व जिलाध्यक्ष के आश्वासन पर आदोलन वाप्सि लिया। निकट भविष्य में यदि बैगने सप्लाई नहीं की गई तो जिले के मजदूरों, किसानों व व्यापारियों का असन्तोष कभी भी प्रदेश में विस्फोट स्थिति पैदा कर सकता हैं। अतः मुख्य मन्त्री, उद्योग मन्त्री, कृषि मन्त्री एवं खाद्य मन्त्री शीघ्र केन्द्रीय रेल्वे मंत्रालय से सम्पर्क कर रेल्वे बैंगनें की समस्या हल कराये।


समय 12-00 


(3) मेडिकल कालेज छात्रावास जबलपुर से डा. रामकुमार पांडे का लापता होना


डा. भानुप्रताप गुप्ता (जरहागांव) : अध्यक्ष महोदय, डा. रामकुमार पांडेय ग्राम अकलतरी पो. लखराम जिला बिलासपुर के निवासी है (मेडिकल कालेज जबलपुर में रहकर हाऊस जाब कर रहे थे। अकस्मात् दिनांक 1-4-78 की रात्रि को अपने कमरे से संदेहास्पद ढंग से लापता हैं जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट 7-4-78 को गढ़ा थाने में दर्ज है। अभिभावक को थाने में अधिकृत रूप से कोई सूचना आज तक प्राप्त नहीं हुई तथा लगता है कि जांच भी गम्भीरतापूर्वक नहीं हुई। मेडीकल छात्रावास से डॉक्टर लापता हो जाये तथा पुलिस विभाग केवल खाना पूर्ति कर मौन हो जाये, यह विभाग की निष्क्रियता का उदाहरण है। इसकी सी. बी. आई. जांच का शासन आदेश दे, यह मैं अनुरोध करता हूं कि ताकि डाक्टर के परिवार को मानसिक तनाव से मुक्ति मिले।
    अध्यक्ष महोदय, दूसरी मेरी सूचना यह है कि.....।
    

अध्यक्ष महोदय : उसे आप अभी नहीं पढ़ेंगे। पहले से सूचना देकर कल आप उसे पढ़ सकेंगे।  


    (4) सौंसर विधान सभा क्षेत्र के अन्तर्गत काम के बदले अनाज योजना के अन्तर्गत निमार्ण के लिए घटिया सीमेंट का प्रदाय
    

श्री रेवनाथ चौरे (सौंसर) : आदरणीय अध्यक्ष महोदय, सौंसर विधान सभा क्षेत्र के अन्तर्गत काम के बदले अनाज योजना हेतु विकास खण्ड सौंसर से जो सीमेंट प्रदाय हो रहा है वह अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का सीमेंट है। उक्त सीमेंट में अन्य मिलावट होने से भवन जुड़ाई ठीक से नहीं हो रही है। क्षे़ के सरपंचो द्वारा तकरार करने पर भी स्थानीय अधिकारी मौन हैं।
    यदि शासन द्वारा सौंसर विकास खण्ड से प्रदाय हो रहे सीमेंट की यथाशीघ्र जांच नहीं होगी तो नवीन भवनों की जुड़ाई कमजोर होगी और भवन शीघ्र ही गिर जायेंगे। जनता को असुविधा होगी। शासन का रूपया वरबाद होगा।
    अतः खाद्य मन्त्री से मेरा निवेदन है कि सौंसर विकास खण्ड से प्रदाय हो रहे सीमेंट की यथा शीघ्र जांच की जाये।


(5) गंज बासौदा मण्डी में रेल्वे बैगने न मिलने से गल्ले का स्टाक पड़ा रहना
    
श्री मोतीलाल वोरा (दुर्ग) :
अध्यक्ष महोदय, गंज बासौदा की मण्डी में भारी मात्रा में अनाज का स्टाक जिसकी लागत 50 लाख तक की अंकी गई है बैंगनों के नहीं मिलने के कारण रूका पड़ा है। रेलवे से माह जनवरी से अब तक गंज बासौदा के व्यापारियों ने 400 इन्डेट लगा रखे हैं किन्तु बैंगने उपलब्ध नहीं होने से व्यापारियों और कृषकों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। केन्द्रीय रेल मन्त्री थी मधू दंडवते को व्यापारियों ने तार देकर अनुरोध किया है कि यदि व्यापारियों को आवश्यक संख्या में बैंगने उपलब्ध नहीं कराई गई तो कृषकों को अनाज कम कीमत में बेचने को विवश होना पड़ेगा। अनाज और तिलहन व्यापारी संघ के अध्यक्ष शांतीलाल शहर ने कहा है कि गंज बासौदा से रेल द्वारा अनाज भेजने का जो 500 रू. क्विन्टल का कोटा तय किया है उसे बढ़ाकर 1000 क्विन्टल शीघ्र किया जावे।


7. पत्रों का पटल पर रखा जाना


मैगनीज और (इण्डिया) लिमिटेड, नागपुर की सोलहवीं 
वार्षिक रिपोर्ट
    खनिज साधन मन्त्री (श्री याकूब रजवानी) अध्यक्ष महोदय, कम्पनी एक्ट, 1956 की धारा 619 ए की उप धारा (2) के आदेशानुसार मैं मेंगनीज और (इण्डिया) लिमिटेड, नागपुर की सोलहवीं वार्षिक रिपोर्ट 1977-78 पटल पर रखता हूं।


समय 12-7

               
8. प्रतिवेदन की स्वीकृति


गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों सम्बन्धी समिति का 
चौदहवां प्रतिवेदन
    श्री बाबूलाल गौर (सभापति)। अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि सदन गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों सम्बंधी समिति के चौदहवें प्रतिवेदन से सहमत हैं।
    
अध्यक्ष महोदय : प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ कि सदन गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों सम्बन्धी समिति के चौदहवें प्रतिवेदन से सहमत है।
    
अध्यक्ष महोदय : प्रश्न यह है कि सदन गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों सम्बन्धी समिति के चौदहवें प्रतिवेदन से सहमत है। 
(प्रस्ताव स्वीकृत हुआ)


समय 12-8   


9. मागों पर मतदान पर चर्चा हेतु सदन की बैठकों के समय में वृद्धि
    
अध्यक्ष महोदय : सभा द्वारा दिनांक 4 अप्रैल, 1979 को लिये गये निर्णय के अनुसार सभा की बैठक दिनांक 21 अप्रैल 1979 तक 6 बजे सांय तक हुआ करेगी।
    सभा द्वारा दिनांक 12 अप्रैल 1979 को लिये गये निर्णय के अनुसार वर्ष 1979-80 के अनुदानों पर मतदान की तिथि में वृद्धि की गई थी जिससे कि सदस्यों को मांगों पर चर्चा हेतु अधिक अवसर मिल सके। इसके फलस्वरूप अब मांगों पर मतदान दिनांक 25 अप्रैल 1979 को 4 बजे पूर्ण होगा तथा विनियोग (क्रमांक 2) विधेयक 1979 दिनांक 26 अप्रैल, 1979 को पारित किया जायेगा।
    अब यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या सभा की बैठक दिनांक 23 व 24 अप्रैल, 1979 को भी सांय 6 बजे तक रखी जाय जिससे कि सदस्यों की मांगों पर बोलने का अधिकाधिक अवसर मिल सके।
    प्रश्न यह है कि क्या सदन इस प्रस्ताव की अनुमति देता है ?
अनुमति प्रदान की गई।

10. वर्ष 1979-80 के आयव्ययक की मांगों


पर मतदान (क्रमशः)
समय 12-10            

 (क) मांग संख्या 5-जेलों पर 
                              चर्चा का पुर्नग्रहण

    
अध्यक्ष महोदय :
अब जेल विभाग का मांगों पर और उस पर आये कटौती प्रस्तावों पर चर्चा होगी, श्री तेजसिंह सेंधव का भाषण अपूर्ण था, वे 3 मिनट और बोलेंगे।
    
श्री तेजसिंह सेंधव : (हाट पीपलिया) भाषण-पूर्वानुवद्ध आदरणीय अध्यक्ष महोदय, कल मैं निवेदन कर रहा था कि माननीय वेदराम जी इन्दौर जिला जेल में आये, वे कब आये ओर अब चले गये हमें पता तक नहीं चला माननीय पटवा जी से जो कि उनके मित्र थे उनसें मिलकर चले गये। माननीय वेदराम जी जेल कमीशन के अध्यक्ष थे, उन्होंने विभिन्न जेलों में घूमकर कैदियों की समस्या को सुना है और इसके संबंध में उन्होंने अपना प्रतिवेदन भी दे दिया है। उन्होंने जो अपने प्रतिवेदन में दिया है मैं आशा करता हूं कि जेल मंत्री जो उस पर अमल करेंगे। अध्यक्ष महोदय मैं जेलों की अव्यवस्था के संबंध में ध्यान दिलाना चाहता हूं कि कैदियों के साथ जेल में तरह तरह का अन्याय किया जाता है। अध्यक्ष महोदय, हम यह जानते है कि जेल में वे लोग जाते है कि आवेश और आक्रोश में जाकर अपराध कर लेते है। अध्यक्ष महोदय, वे आदतन अपराधी नहीं होते हैं, लेकिन जेल में जाने के बाद वह अपेक्षा की जाती है कि वे जेल में रह कर अपने अपराधों का प्रयश्चित करें और अपनी गलती हो महसूस करें और जेल से निकल कर समाज में अच्छी तरह से जीवन बितायें। लेकिन अध्यक्ष महोदय जो जेल के अन्दर व्यवस्था है, और जो जेल के अन्दर भ्रष्टाचार है। अनियमिततायें है, उनको देखकर कैदियों के मन में आक्रोश की भावना बढ़ जाती है। अध्यक्ष महोदय, शुरूआत यहां से होती है जब कोई कैदी जेल के दरवाजे पर जाता है, उसके पहुंचने पर सब से पहले उसकी आर्थिक स्थिति क्या है उसका पता लगाया जाता है, यदि कैदी की आर्थिक स्थिति अच्छी है, पैसे वाला है, उसे सक्षम कारावास हुआ हो तो भी उसे हल्का काम दिया जाता है और यदि जेल का डाक्टर है अपनी रिपोर्ट में उसके लिए बीमारी का लिख देता हैं तो उसे अनेक सुविधाऐं मिलती हैं इस प्रकार, अध्यक्ष महोदय, पैसे वाला कैदी आरा करता रहता है। जबकि दूसरे कैदी जो क पैसे वाले नहीं होते उन्हें गदगी सफाई का काम, नाली की सफाई का काम जेल की मेस में आग की भट्टियों पर खाना बनाने का काम दिया जाता है किस कैदी को कौन सा काम मिले वह इसी पर निर्भर है कि वह कितनी रिश्वत देता है आप पूछेंगे यह पैसा जेल में कैदियों के पास कैसे पहुंचता है यह पैसा कैदियों के रिश्तेदारों के द्वारा मुलाकातों के समय चुपचाप दे दिया जाता है। यदि इमानदारी से सिर्फ सेन्ट्रल जेल इन्दौर के कैदियों की तलाशी ली जाये तो उनके पास कम से कम 2 लाख रूपया निकल सकता है। जबकि नियम यह है कि जेल में पैसा नहीं आना चाहिए लेकिन उनके रिश्तेदार पैसा दे जाते हैं इस तरह अध्यक्ष महोदय जो जेल के अधिकारी है वे भ्रष्टाचार करते हैं बीमार कैदियों को दवा खरीदी के नाम पर भारी भ्रष्टाचार होता है जेलों के कैदियों को दी जाने वाली खाद्य सामग्री के नाम पर तो भयंकर भ्रष्टाचार होता है खाद्य सामग्री में भ्रष्टाचार के संबंध में जनता सरकार के साथ मंत्री श्री सीता प्रसाद शर्मा ने गत वर्ष एक मामला रंगे हाथ पकड़ा था जिसमें जेल सुपरिटेडेंट को सस्पेन्ट किया गया था। जेल के सन्त मन्त्री जी से निवेदन करूंगा कि जो कैदी किसी भी प्रकार के अन्याय, अत्याचार या भ्रष्टाचार का जरा भी प्रतिकार करता है तो उसे वहां के अधिकारी अन्य कैदियों से पिटवाते हैं कभी कभी स्वयं भी पीटते है यहां तक कि ऐसे में कैदी की मौत भी हो जाती है और प्रतिकार करने वाले कैदी को सेल में भी डाल दिया जाता है। इन्दौर जेल में वहां के एक वेलफेयर अधिकारी श्री दुबे ने कुछ कैदियों के साथ एक ऐसे ही प्रतिकार करने वाले कैदी को बुरी तरह पीटा था उसके हाथ पांव तोड़ दिए थे। श्री दुबे के इस कृत्य की शिकायत हमारे आज के हरिजन कल्याण मंत्री और उस समय के विधायक भाई सखाराम जी पटेल एवं तत्कालीन विधायक श्री हिन्दुसिंह परमार ने जेल से करी थी विधान सभा में स्थगन प्रस्ताव भी भेजा था पर पता नहीं उस शिकायत आदि पर क्या कार्यवाही हुई। मा. अध्यक्ष महोदय, मेने सदन का ध्यान जेल की चारदीवारी के अन्दर होने वाले उन अत्याचारों और भ्रष्टाचारों की ओर दिलाया है जिन पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। आशा है मा. मंत्री जी इस मानवीय पहलू पर गभीरता से ध्यान देगें। अब, अध्यक्ष महोदय, मेरे जिले की जेल के सम्बन्ध में निवेदन करना चाहता हूं देवास जेल एक छोटा सा जेल है, इसके भवन बनाने के लिये हर साल पैसा रखा जाता है और पैसा लेप्स हो जाता है, मैं मंत्री जी का ध्यान इस ओर आकर्षित करूंगा कि वे इसे शीघ्र निर्मित करवाये।
    अंत में अध्यक्ष महोदय मैं राज्य शासन से निवेदन करूंगा कि वह भुट्टों को दी गई फांसी के परिप्रेक्ष्य में इस जघन्य सजा को समाप्त करने के लिये केन्द्र शासन से सिफारिस करें।
    
श्री रामजी महाजन (मसोद) : अध्यक्ष महोदय, जेल मंत्री द्वारा प्रस्तुत मांगों का विरोध करता हूं तथा जो कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत किये गये हैं उनका समर्थन करने के लिये मैं प्रस्तुत हुआ हूं। अध्यक्ष महोदय, बहुधा देखा यह गया है कि लोग अपनी जन्म भूमि को बहुत प्यार करते हैं। बहुत चाहते है। जनता पार्टी का जन्म जेल में हुआ है जैसा कि जनता पार्टी के नेता कहते है जेलजो जनता पार्टी का जन्म देने वाली है फिर भी उसका दुर लक्ष्य क्यों किया जा रहा है। उसको तो बहुत अच्छी बनाया जाना चाहिये था। अध्यक्ष महोदय, अकसर यह कहा जाता है कि कांग्रेस ने अपने 30 साल के शासन में कुछ भी नहीं किया, जेलों के लिये कुछ नहीं किया, जेल में कुछ भी सुधार नहीं किये हैं। मेरा उनसे यह निवेदन है कि आपने अभी जेलें देखी ही नहीं है, आपने तो सुधरी हुई जेल देखी है। आपको विगड़ी जेल में रखा ही नहीं गया तो आप सुधार कैसे महसूस कर सकते हो। अंग्रेजों के जमानें में कैदियों के साथ कितना क्रूरता पूर्ण व्यवहार किया जाता था। उनकों हथकड़ी वेड़ी डाली जाती थी उनसे मोट चलवाई जाती थी, चलवाई जाती थी, चक्की पिसवाई जाती थी। केकती कुटवाई जाती थी। जो भी बैलों के करने के काम हुआ करते थे वे सब कैदियों से कराये जाते थे। उनको खाने को बहुत कम और बहुत ही खराब दिया जाता था। इस प्रकार के कार्य कैदियों से कराये जाते थे। आप तो सुधरी हुई जेल में गये थे मोटे होने के लिए। आप सबका वजन जेलों में बढ़ गया था,
    
श्री बसन्तीलाल शर्मा : अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य कह रहे हैं कि जेलों की व्यवस्था ठीक कर दी जाये क्योंकि वे जाने वाले हैं।
    श्री रामजी महाजन : महाराज आपका स्थान तो अखाडें में होना चाहिये आप गलती से यहां पर चले आये है। अध्यक्ष महोदय, मैं कुछ सुझाव जेल मन्त्री जी को देना चाहता हूं बन्दियों को जेल कुछ उद्योगों का प्रशिक्षण दिया जाता है लेकिन जो प्रशिक्षण दिया जाता हैं वह इतनी हैवी मशीनों पर दिया जाता है जेल से छूटने के बाद बन्दी उनको खरीद नहीं सकते है। इसलिए उनको जो जेल में प्रशिक्षण दिया जाता है वह बेकार हो जाता है। उचित यह होगा कि उनको छोटी छोटी मशीनों पर प्रशिक्षण दिया जाये ताकि वे जब जेल से मुक्त होकर एक सभ्य नागरिक का जीवन बिताना चाहें तो उन छोटी छोटी मशीनों पर काम करके भारत के एक अच्छे नागरिक बन सकें।
    
श्री गुलाब सिंह : अध्यक्ष महोदय, मेरा व्यवस्था का प्रश्न यह है कि अभी माननीय सदस्य ने कहा है कि जनता पार्टी का जन्म जेल में हुआ मैं उनसे एक इतिहास की बात कहना चाहता हूं कि भगवान कृष्ण का जन्म भी जेल में हुआ है।
    
श्री रामजी महाजन : सरदार जी अब तो बारह बजकर बीस मिनिट हो गये हैं। आपका समय बीते बीस मिनट हो गए हैं।
    
अध्यक्ष महोदय : वे तो वह कह रहे हैं कि जन्म जेल में हुआ था और उन जेलों की व्यवस्था अच्छी करवाना चाहिए वे यह कह रहे हैं।
    
श्री रामजी महाजन : अध्यक्ष महोदय, मैं दूसरी बात यह कह रहा था कि जेल के जो सिपाही होते हैं उनको ऐसे आदमियों के बीच में रहना पड़ता हैं ऐसे आदमी की व्यवसथा करना पड़ता है जो काफी खतरनाक होते हैं खूंखार होते हैं जिन्होंने हत्यायें की होती है डकैतियां डाली होती है। परनतु जेल के सिपाहियों को पगार कितनी मिलती है ? आबकारी विभाग के सिपाही से भी कम। पुलिस के सिपाही से भी कम जब कि वह कोई ................ आबकारी विभाग के सिपाही को कुछ न कुछ ऊपर से भी मिल जाता है। पुलिस के सिपाही को भी मिल जाता है। बेचारे जेल के सिपाही को कुछ भी नहीं मिलता है। तो मेरा यह निवेदन है कि उनकी तनख्वाह बढ़ाई जाये जिससे वे भी अपने परिवार के साथ सुख से रह सकें। जेलों में राजनैतिक लोगों को सजायाफता कैदियों के साथ में रख दिया जाता है। उसका प्रभाव यह होता है कि जेल का ला एण्ड आर्डर समाप्त हो जाता है।
     
एक माननीय सदस्य : अध्यक्ष महोदय, मेरा प्वाइन्ट आफ आर्डर यह है कि जेलों में सुधार की बात करने का अधिकार माननीय सदस्यों को कैसे हो गया ? जेलों में तो उन्होंने हमें भेजा था हमने पीड़ा उठाई है।
    
अध्यक्ष महोदय : यह प्वाइन्ट आफ आर्डर नहीं है। इस तरह से समय वरबाद न किया जाये।
    

श्री रामजी महाजन : राजनैतिक लोगों को सजायाफता कैंदियों से अलग रखा जाये। जिस जेल में आपकी पार्टी का जन्म हुआ हैं उसको सुधारा जाना चाहिए। आपने अंग्रेजों की जेल देखी ही नहीं है इसलिए आप सुधरी हुई जेल की कल्पना नहीं कर सकते है। आप जेलों में सुधार कैसे सकते हैं। आप अच्छी जेल की कल्पना नहीं कर सकते।
    
अध्यक्ष महोदय : केवल 1 मिनट में समाप्त करें।
    
श्री रामजी महाजन : मैं जेल मन्त्री जी को एक और सुझाव देना चाहता हूं और वह यह कि राजनैतिक बंदियों और सजायाफ्ता कैदियों की अलग-अलग व्यवस्था होनी चाहिए। जो सजायाफ्ता कैदी होती है वह आखिर में एक मनुष्य समाज का अंग है इसलिए उनको भी मानवीय सहूलियत मिलनी चाहिए। आजकल देखा जाता हैं कि जेलों में पंखों की कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण जेलों का वातावरण कुंठित सा रहता है। इसके कारण बन्दियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए जेलों में पंखे लगाए जाने चाहिए। उनको जेलों में जो प्रशिक्षण दिया जाए वह उनके जेल से बाहर आने पर आगे के जीवन के लिए उपयोगी हो वही प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। अन्त में एक बार फिर मैं निवेदन करूंगा कि राजनैतिक बंदियों और सजायाफ्ता कैदियों को अलग-अलग रखा जाना चाहिए।
    
श्री बाबूलाल गौर (भोपाल-दक्षिण) : अध्यक्ष महोदय, जेल विभाग की जो मांग रखी गई है उसका मैं समर्थन करता हूं। मध्यप्रदेश में जेलों में जो सुधार करने के लिए जेल सुधार आयोग निर्माण किया था उसके अध्यक्ष श्री वेदराम ने जेलों में घूम-धूमकर अपनी रिपोर्ट पेश की थी। शासन उस पर विचार करने के लिए एक उप-समिति भी बनाई। उसनें क्या निर्णय लिया इसका कुछ पता नहीं लगा। इसके साथ ही मैं यह भी निवेदन करना चाहता हूं कि पिछले 19 महीनों में हम लोगों ने जेलों में जाने के बाद यह अनुभव किया है कि वहां पर छोटी-छोटी चीजों के लिए कैदियों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। उनको वहां साबुन नहीं दिया जाता। कम से कम महीनें में एक बार साबुन दिया जाना चाहिए ताकि वे साबुन से स्नान कर अपने शरीर को साफ रख सकें। इसी तरह सिर पर लगाने के लिए किसी प्रकार का तेल भी नहीं दिया जाता। इन कारणों से जेल के कैदी अपने आप में कमी महसूस करते हैं। इतना ही नहीं उनको भोजन बनाने के लिए पर्याप्त लकड़ी तक नहीं दी जाती जिसके कारण उनको जेल की महत्वपूर्ण चीजों को जलाकर अपना भोजन बनाना पड़ता है। कभी-कभी ....... को जलाकर भोजन वनाते हैं। हमने भी अनुभव  किया है कि जब हम जेल में थे तो हमको भी भोजन बनाने के लिए पर्याप्त लकड़ी नहीं दी जाती थी। जो लकड़ी दी जाती है वह जिस तरह से सोना तोला जाता है उस तरह से लकड़ी तौलकर दी जाती हैं तो इस महत्वपूर्ण चीज की कमी को दूर किया जाना चाहिए। अध्यक्ष महोदय कैदियों को सबेरे के समय नाश्ता व चाय आवश्यक है, लेकिन वही नहीं दिया जाता है। इन कांगेसियों ने केवल सुहाने सपने दिखाये थे। जबकि अंग्रेजों के जमाने के जो जेल कानून है, वही लागू है। एक व्यक्ति के लिए साधारणतः दो रूपया 30 और 3 रूपया 20 पैसा प्रतिदिन दिया जाता है।
    
श्री रामजी महाजन : आपका जेल में आने से वजन बढ़ा या कमी हुई ?
    
श्री बाबूलाल गौर : बढ़ा नहीं, बल्कि कमी हुई। आपको पता नहीं कि वहां कुछ लोग मर भी गए।
    
श्री रामजी महाजन : मैं तो इतना जानता हूं कि प्रधान मन्त्री मोरारजी भाई देसाई का 7 पौण्ड वजन जेल जाने से बढ़ गया था।
    
लोक स्वास्थ्य मन्त्री (श्री शीतला सहाय) : मैं माननीय सदस्य का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि आप तो (क्रिमिनलों को बचाने के लिए ही) जेल थे। वहां पर यह मांग करते रहे कि फ्लेश लेट्रिन नहीं। बिजली के पंखे नहीं हैं, ये सुविधा नहीं हैं, वो सुविधा नहीं हैं। तो मैं श्रीमान से यही निवेदन करना चाहता हूं कि ये वही जेलें हैं जिनमे हम रह आये हैं। हमने तो कभी इस प्रकार की सुविधायें नहीं मांगी क्या उस समय आपको ये बातें समझ में नहीं आई थीं जबकि आपके कांग्रेस 
इस भाषण को माननीय सदस्य ने नहीं सुधारा।
का ......... ओर जेलों की आज से भी बदतर हालत कर रखी थी ?
    
श्री दिग्विजयसिंह : अध्यक्ष महोदय, मेरा प्वाइन्ट आफ आर्डर है। अभी माननीय स्वास्थ्य मन्त्री जी ने जिन क्रिमिनलों का उल्लेख किया है तो वह बिल्कुल गलत है। हम क्रिमिनलों को बचाने के लिए जेल नहीं गए थे। हम तो अपने नेता को बचाने के लिए जेल गए थे। आपका इस प्रकार का कहना कि क्रिमिनल को बचाने के लिए जेल गये थे यह कहना सर्वथा अनुचित है। यह अंश सभी की कार्यवाही से निकाला जाना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, इस पर व्यवस्था दी जाये ?
    
अध्यक्ष महोदय : मैं व्यवस्था दूंगा।
    
श्री शीतला लहाय : अध्यक्ष महोदय, यह इसलिये नहीं निकाला जा सकता है क्योंकि मैंने किसी का नाम नहीं लिखा है।....
    
श्री दिग्विजयसिंह : अध्यक्ष महोदय, पहले इन्होंने कहा कि क्रिमिनल को बचाने गये थे फिर कहा कि क्रिमिनल होकर ...........। इसलिए इसको निकाला जाना चाहिए ? 
    
अध्यक्ष महोदय : मैं सारी प्रोसीडिंग को देख लूंगा और फिर निर्णय करूंगा।