दिनांक 07.04.1982
कृषि विभाग पर चर्चा
श्री देवीलाल लेकवाल (आष्टा-संरक्षित स्थान) : सभापति महोदय, मैं कटौती प्रस्ताव का समर्थन करता हूं और अनुदान मांगों का विरोध करता हूं। जहां तक किसानों और कृषि विभाग का संबंध है आज किसान ने दिन रात खून पसीना एक करके फसल तैयार कर ली है और जब वह अपनी फसल मंडियों में ले जाता है तो वह पानी के भाव से बिक रही हैं। किसानों की देखरेख नहीं है। कम से कम एक महीने पहले गेहूं का मूल्य निर्धारित होना चाहिये था। आज तक सरकार किसान की फसल का मूल्य निर्धारित नहीं कर सकी हैं। मैं आपके माध्यम से यह सुझाव देना चाहता हूं कि इस समय किसानों के साथ बड़ा जुल्म हो रहा हैं, उनकी फसल पानी के भाव बिक रही है। उनकी समय पर सहायता नहीं की गई, उनको फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा। जो व्यापारी उनकी उपज का सौदा करते हैं, अगर उनके घर में उपज पहुंच जायेगी और तब मूल्य बढ़ेगा तो उसका लाभ व्यापारी को मिलेगा। कृषि उपज मण्डी की हालत और भी खराब हैं। उनके बैलों और पशुओं के लिए वहां पर पानी उपलब्ध नहीं है। उनके लिए छांह नहीं हैं। वे धूप में चार-चार घन्टे खड़े रहते हैं। किसानों की हालत कृषि उपज मण्डी में ठीक नहीं है। मंत्री जी इस पर ध्यान दें।
कृषि मन्त्री (श्री दिग्विजय सिंह) : माननीय सभापति जी, मुझे इस बात का अत्यधिक दुख और निराशा है कि केवल इस पक्ष के कुछ माननीय विधायकों को छोड़कर, हमारे विपक्ष के माननीय विधायकों द्वारा किसी भी एक माननीय सदस्य ने, जो मांगे बजट में कृषि विभाग के साथ दूसरे मदों की रखी हैं, उनसे सम्बन्धित जो प्रावधान रखे गये हैं, मैं समझता हूं किसी ने उनको उठाकर भी नहीं देखा। हमारे माननीय विपक्ष के सदस्यगण बन विभाग की बात करते रहे, सिंचाई विभाग की बात करते रहे, विद्युत विभाग की बात करते रहे और माननीय चम्पालाल जी ने जो विभाग बचा था उस उद्योग विभाग की भी बात की । मैं समझता था कि कम से कम एक विभाग जी॰ ए॰ डी॰ का ऐसा है कि उस पर कम से कम माननीय सदस्य कृषि विभाग की मांग पर नहीं बोलेंगे किन्तु एक माननीय सदस्य ने हमारे मत्स्य निगम के अध्यक्ष के ऊपर किराया बकाये की बात कहकर-जो बिलकुल सामान्य प्रशासन विभाग से ही सम्बन्ध रखती है- उसके बारे में भी बखान कर दिया। यदि ऐसी डिवेट प्रारम्भ की जाय तो उसका क्या उत्तर दिया जाय। बेहद निराशा हुई। मेरी ऐसी मान्यता थी कि भारतीय जनता पार्टी का लेना-देना किसानों से कतई नहीं है। यह स्पष्ट इससे प्रमाणित होता है। उनका लेना-देना व्यापारियों से है। उनका लेना-देना ठेकेदारों से है। वह मैं आपको अपने उत्तर में बताना चाहूंगा।
श्री मुन्शीलाल : आपने भारतीय जनता पार्टी का नाम लिया। जनता पार्टी के शासन काल में खाद के, बीज के क्या भाव थे और आज किसानों को किस भाव से दिये जा रहे हैं?
श्री दिग्विजय सिंह : उस समय फसल के क्या भाव थे ?
श्री मुन्शीलाल : बिजली का आपने कितना बढ़ाया है ?
श्री दिग्विजय सिंह : सभापति महोदय, इनका बहकना, इनका नाराज होना स्वाभाविक है। जब कुछ बोल नहीं पाये, कुछ कह नहीं पाये तो सिवाय कपड़ा फाड़ने के दूसरा रास्ता इनके सामने नहीं हैं। माननीय सभापति जी, हमारे इस विधान सभा के वरिष्ठ सदस्य माननीय पाटीदार जी ने बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं और उसके बारे में मै अवश्य विचार करूंगा । भू-संरक्षण कार्य सचमुच बहुत महत्वपूर्ण है और उसमें जिस तरह से पहले कन्टूर बंडिग का कार्य होता था, उसमें हमने परिवर्तन किया है। उसमें ड्राई फार्मिग योजना के अन्तर्गत वह प्रणाली सफलता पूर्वक लागू की जा चुकी है। उसके आधार पर हम भू-संरक्षण का कार्य करेंगे। जहां तक बीज के बारे में उन्होंने कहा, यह बात सही है कि राष्ट्रीय बीज निगम से कुछ बीज हमें उपलब्ध हुआ था, उसमें कहीं कहीं मिलावट मिली थी, उसकी शिकायत भी हमने उनसे की हैं। हम इस बात का पूरा ख्याल रखेंगे कि जो भी प्रमाणित बीज दिया जाय, वह अच्छा हो। माइको माइनर इरीगेशन के बारे में माननीय पाटीदार जी ने भी कहा है। मैं माननीय सदस्य को बताना चाहता हूं कि मन्दसौर और छिंदवाड़ा ऐसे जिले हैं जहां कुंओं की संख्या अधिक होने से भूमि जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है। हमने विशेषज्ञों की राय मांगी है और उसके बारे में विचार कर रहे हैं। श्री रमाशंकर सिंह ने कुछ बातें कहीं, अच्छा होता जो बातें उन्होंने कही उसका उत्तर सुनने के लिए मौजूद रहते। अगर वह जनतांत्रिक परम्पराओं में विश्वास करतें हैं, तो यदि कोई लांछन लगाते हैं, उलटे सीधे आंकड़े प्रस्तुत करते हैं तो उसका जवाब सुनने के लिए मौजूद रहना चाहिए। हालांकि वह मौजूद नहीं हैं उसके बाद भी बताना चाहूंगा। उन्होंने कहा कि सन् 56-57 के बाद हमारी प्रोडक्टिवटी में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। मैं बताना चाहता हूं कि खाद्यान्न जो सन् 56-57 में 69.65 लाख टन पैदा होता था वह 80-81 में बड़कर 100.63 लाख टन प्रदेश में पैदा हुआ है। दाल के बारे में उन्होंने कहा 56-57 में 16.25 लाख टन होता था वह 80-81 में बड़कर 20.21 लाख टन हुआ है। आयल सीड 56-57 में 4.83 लाख टन पैदा हुआ था जो इस वर्ष बढ़कर 8.50 लाख टन पैदा हुआ है। यह अपने आप में बताता है कि कृषि के क्षेत्र में काफी कुछ प्रगति हुई है। उन्होंने एग्रीकल्चर वेजेज के इंडेक्स में कहा। यदि 57-58 को बेस इयर लिया जाये और उसका इंडेक्स 100 माना जाये तो 77-78 में वह बढ़कर 442.2 हो गया था। मतलब यह कि चार गुना एग्रीकल्चर लेबर के इंडेक्स में बड़ोत्तरी हुई है।
श्री सुन्दरलाल पटवा : आपने टोटल प्रोडक्शन के आंकड़े बताये। लेकिन जो प्रश्न था वह यह कि प्रति स्टेटमेंट है और वेजेज मूल्यों के आधार पर कितना बढ़ा हैं ?
श्री दिग्विजय सिंह : वह भी बताता हूं। 56-57 से 80-81 में खाद्यान्न के एरिया में 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई हैं जब कि प्रोडक्शन में 45 प्रतिशत वृद्धि हुई हैं। यदि प्रति हेक्टर पेदावार नहीं बढ़ी होती तो क्या यह सम्भव था ? इसी तरह से आयल सीड के एरिया में 20 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है जब कि प्रोडक्शन में 90 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई हैं। यह अपने आप में बताता है कि प्रति हेक्टर प्रोडक्टिवटी बढ़ी है। हमारे मा॰ सदस्य सोनबोइर जी ने रबी, पैडों के बारे में कहा है 90 प्रतिशत फसल खतम हो चुकी हैं। हमारी सर्वेयर टीम वहां काम कर रही है, उससे अभी हमें जानकारी नहीं मिली है। कलेक्टर से अवश्य जानकारी लेंगे। सोयाबीन के मामले में जो सुझाव माननीय सदस्यों ने दिये हैं उसके बारे में विचार करेंगे।
श्री हीरालाल सोनबोइर : कलेक्टर से जानकारी मांगी है, तो कलेक्टर शासन पक्ष के बचाव की बात करेंगे। वास्तविक बात आपके सामने नहीं रखेंगे।
श्री दिग्विजय सिंह :- माननीय सभापति महोदय, मैं माननीय सदस्य को बतालाना चाहता हूं कि आप और ह सब पहले किसान हैं। अधिकार कुछ भी कहें, किसी का भी बचाव करें। यदि आपको कुछ जानकारी है तो बतावें मैं स्वयं जाकर उसकी जानकारी लूंगा। माननीय सभापति महोदय, मैं माननीय जगतसिंह रावत को माननीय पटवा जी के माध्यम से यह बतलाना चाहता हूं कि गन्ने की बात आप करते हैं तो वर्ष 78-79 में गन्ने की जो हालत हुई हैं, उससे क्या आप परिचित नहीं हैं। हमने किसानों को गन्ने का पिछले दो वर्षों में 20 रूपया कि्ंवटल दिलवाया है और 2।। रूपया प्रति कि्ंवटल पिछले साल अनुदान और इस वर्ष 3 रूपया प्रतिकि्ंवटल अनुदान दिलवाया है। यदि आप किसानों के कोई हितैषी है तो मैं पूछना चाहता हूं कि जो आज किसानों को गन्ने का भाव मिलरहा है या आज जो किसानों को गेहूं की उपज का मूल्य मिल रहा है। वह जनता पार्टी शासन में किसानों को कभी नहीं मिले है। ऐसा जनता पार्टी शासन के इतिहास में कभी नहीं हुआ है न होगा।
श्री सिद्दू मल :- सभापति महोदय, जनता पार्टी की सरकार ने किसानों को खुली शक्कर खिलवाई जो कि आपके समय में कभी नहीं हुआ है। आपके समय में शकर के जो भाव जिस तरह से बढ़े हैं जरा यह भी बतलाइयें ?
श्री दिग्विजय सिंह :- सभापति महोदय, माननीय सदस्य पटेल साहब ने बहुत अच्छी राय दी हैं कि इर्न्टेसिव एग्रीकल्चर पर ध्यान दिया जाना चाहिये। तो इर्न्टेसिव एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट काम कर रहा है। इसके अनुसार प्रत्येक 600 परिवारों के ऊपर एक ग्राम सेवक रहेगा जो कि टैक्निकल कठिनाइयों को किसानों को उपलब्ध करवायेंगे दूसरे हमारा जो फील्ड का स्टाफ है उनको 15 दिन की ट्रेनिंग रिसर्च इन्सटीट्यूट के द्वारा दिलवाई जायेगी ताकि किसानों और ग्राम सेवक के बीच की खाई पाटी जा सके। माननीय सभापति महोदय, हमारी माननीय सदस्या श्रीमती जयाबेन ने जो कहा है तो मैं उनको बतलाना चाहता हूं कि हमारे प्रदेश में चार वर्ग की मंडियां हैं, ‘अ’ वर्ग, ‘ब’ वर्ग, ‘स’ वर्ग, और ‘द’ वर्ग ये चार वर्ग की मंडियां हैं तो जो ‘अ’ वर्ग की मंडियां हैं वहां काफी पैसा इकट्ठा हो जाता है वहां ही ‘द’ वर्ग की मंडियों में पैसा बांटने के लिए भी इकट्ठा नहीं हो पाता है। तो सभापति महोदय, ऐसी मंडियां जहां कि काफी पैसा इकट्ठा हो जाता है तो हम उनसे कुछ पैसा लेकर छोटी मंडियों में लगायें ताकि एक समानता प्रदेश की सभीं मंडियों में आ सकें।
डॉ॰ परशुराम साहू :- मैं लगातार एक वर्ष से देवरी में कृषि उपज मण्डी चालू करने के लिए कह रहा हूं जिसका कि 69 में नोटिफिकेशन हुआ था और जिससे कि 1 लाख लोग लाभान्वित होंगे वह आप नहीं करपाये हैं। क्या यही आपकी प्रगति है ?
श्री दिग्विजय सिंह :- सभापति महोदय, मैं माननीय सदस्य को बतलाना चाहता हूं कि जो भी विचार वहां पर चल रहा है। किसानों के बीच में आप उसको हल करवा दीजिए तो हम तत्काल वहां पर मण्डी खोलेंगे। माननीय सभापति महोदय जो बात छत्तीसगढ़ के लिए कहीं गई है। पशुपालन के बारे में चन्द्राकर जी ने जो बात कही है वह मैं समझता हूं वह बहुत ही अनुकूल हैं और उस बारे में हमने विभाग की ओर से एक विस्तृत योजना बनाई है जिसमें कि हमने छत्तीसगढ़ के अन्दर पशुओं की नस्ल को अच्छा करने के लिए विभाग ने यह योजना तैयार की है जिसको कि हम शीघ्र ही लागू करने का प्रयास करेंगे। जैसा कि वर्माजी ने बताया कि मोवो प्रोटीन प्रोग्राम के अनतर्गत 10 किलों दाना देते है इस पर विचार करेंगे लेकिन हमारे विभाग ने पिछलें साल में गरीब भूमिहीन हरिजन आदिवासियों के लिए पोल्ट्री इस्टेट बनाने के लिए एक योजना बनाई थी। हम 50-60 परिवारों को 100-100 मुर्गियां जो कि मुर्गी पालन करते है खण्डवा में इस कार्यक्रम के लिए जो बच्चे दिए जाते हैं और अण्डें होते हैं अण्डे की मार्केटिंग की व्यवस्था भी शासन करता है.........
श्री देवीलाल रेकवाल :- सभापति महोदय, हरिजनों को...
सभापति महोदय :- आप बैठ जाय क्योंकि समय के अन्दर ही माननीय मंत्रीजी को अपना भाषण समाप्त करना है।
श्री दिग्विजय सिंह :- सभापति महोदय, जंगल की मवेशी के संबंध में राजनांदगांव में गवर्नमेन्ट आफ इण्डिया से टीम आती है कि इस समस्या को हल करने के लिए क्या प्रयास करना चाहिए ?
श्री सुन्दरलाल पटवा :- उज्जैन की मण्डी के बारे में आप बता रहे थे।
श्री दिग्विजय सिंह :- उसके बारे में भी बताऊंगा। श्री चरणदास महन्त जी ने मछली पालन के बारे में जो बात कही है उस बारे में हमारे प्रदेश में मत्स्य पालन की बहुत अच्छी सम्भावना है और केवल मत्स्य के बीज की कमी के कारण इसमें कमी पड़ी है नये बीज डालकर के उसकी पूर्ति कर रहे हैं। हमने इस प्रदेश में फिश फारमर-डेव्हलपमेन्ट के लिए बैंक से फायनेन्स करवाते हैं उनको सबसिडी भी दी जाती है। मैंने शुरू में ही कहा था कि भारतीय जनता पार्टी केवल व्यापारियों की और ठेकेदारों की पार्टी रही है। मत्स्य पालन के बारे में हमारे शासन के अन्तर्गत तालाबों को लीज पर दिया जाता था इनका शासन आया, ठेकेदारों का शासन आया तो इन्होंने मत्स्य के तालाबों को लीज पर देना बन्द कर दिया है और ठेकेदारों को देना चालू कर दिया। उससे क्या हुआ कि मछुआरे और गरीब हो गये और नागपुर-बनारस के ठेकेदारों को ठेका दिया गया। हमारा शासन जैसे ही आया हमने ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया और स्थानीय मछुआरों को फिर से लीज पर तालाब दे दिये और हम इस बारे में विचार कर रहे हैं कि इसी विधानसभा सत्र में आपके सामने वह चीज लाना चाहते हैं अभी मछलियों को नदियों से पकड़ने के लिए लायसेंस दिये जाते हैं मेरी यह स्पष्ट मान्यता है कि नदियों में जो बड़े-बड़े पुल हैं उसमें मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए लायसेंस प्रदान किये जायेंगे और उनको नदियों में भी जगह दिलाना चाहते हैं। जिससे कि जो कुछ व्यापक तौर पर महुआरों को, परेशान किया जाता है उस लाइसेंस के आधार पर उससे उनको राहत मिल सके। इसके बारे में विचार कर रहे हैं और शीघ्र निर्णय करेंगे। हम इस बारे में भी निर्णय ले रहे हैं कि जितने भी छोटे तालाब हैं 40 हेक्टेयर तक के तालाबों में हम चाहते हैं कि मछुआरों, को उनकी सोसायटी को लाभ देने के लिए उनको लीज पर देना चाहते हैं। आपको हमारे विभाग की जो योजनाएं हैं उनके बारे में बताना चाहूंगा......
श्री वासूदेव चन्द्रकर :- जहां लगातार ऐपेडेमिक होता है वहां दवाईयों में जो 50 प्रतिशत सबसीड़ी दी जाती है उसे शतप्रतिशत किया जाय।
श्री दिग्विजय सिंह :- चन्द्राकर जी बड़े जागरूक किसान हैं। उन्होंने जो सुझाव दिया है वह बड़ा अच्छा है उस पर हम अवश्य विचार करेंगे। मैं बताना चाहता हूं कि हमारे शासन ने कृषि विभाग की जो योजनाएं बनाई है उसके बारे में विपक्षी सदस्य चाहे पढ़ न पाये हों या समझ न पाये हों उसका वे उल्लेख नहीं कर पाये। उसका मैं व्यौरा देना चाहता हूं। किसी भी कृषि कार्य में सबसे महत्वपूर्ण चीज होती है इम्पुट फर्टिलाइजर कंजम्पशन इस प्रदेश का काफी कम हैं उसमें बढ़ौत्री करने के लिए शासन ने यह निर्णय किया है कि कोई भी किसान यदि खरीफ में अपनी फसल में खाद डालना चाहे तो अब वह फरवरी, अप्रैल, मार्च में जब चाहे खाद उठा सकता है लेकिन उसको ब्याज जून के माह से ही लगेगा। इससे किसानों को ऐन वक्त पर खाद लाने की जरूरत नहीं है। यह अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है जिसकी वजह से खरीफ की खपत में पिछले वर्ष 30 से 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। मैं सदन को आपके माध्यम से बताना चाहता हूं कि इम्पुट में दूसरी चीज आती है प्रमाणित बीज और इस प्रदेश का दुर्भाग्य रहा है कि आज बीज के कार्यक्रम में हम यहां पर बहुत पिछड़ गये थे। इसमें ढाई-तीन साल में जो कुछ बचा था वह समाप्त हो गया लेकिन हमारे शासन ने आते ही हमने बीज निगम कायम किया और उसके बाद किसानों को अच्छा बीज प्रमाणित बीज मिल सके, सही समय पर मिल सके हमने इस बात का प्रयास किया है। हमने बीज निगम के माध्यम सें.....
श्री पुरूषोत्तम विपट :- अच्छा बीज हम अपने प्रदेश में ही उत्पादित कर सके ऐसी योजना बनायेंगे क्या ?
श्री दिग्विजय सिंह :- मैं वही बता रहा हूं कि बीज निगम जो कायम किया है वह दूसरे प्रदेशों में जा कर बीज पैदा नहीं करेगा। अपने ही प्रदेश में बीज पेदा करेगा और जो उन्नत किसान हैं, प्रगतिशील किसान हैं उनसे संपर्क कायम करके सीड प्रोडक्शन में मदद लेंगे।
श्री चम्पालाल आर्य :- इस समय किसानों के कपास का क्या हाल है ?
श्री दिग्विजय सिंह :- हमारे आर्य जी को मक्का और चावल के पेड़ का अन्तर मालूम हैं।
श्री नागेन्द्र सिंह :- मैं जानना चाहता हूं कि फर्टिलाइजर की क्वालिटी के सम्बन्ध में कुछ प्रयास करेंगे क्योंकि कई किसानों को जो यूरिया दिया गया है उसमें 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होना चाहिए लेकिन आपके ही डिपार्टमेंट ने जो जांच कराई है उसमें केवल 26 प्रतिशत नाइट्रोजन ही निकला।
श्री दिग्विजय सिंह :- फर्टिलाइजर टेस्टिंग लेबोरेट्री का अभाव होने के कारण दूसरे प्रदेशों में इसकी जांच करवाना होता है लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि जब-जब हमें इस बात की शिकायत मिली है हमने उस पेरेन्ट कम्पनी के खिलाफ कार्यवाही की है। इसके कई उदाहरण मेरे पास है। मैं आपको अवश्य बताऊंगा।
श्री परशुराम साहू :- मेरा इतना कहना है कि प्रगति शीलता में किसान आगे हैं और आपका विभाग पीछे हैं अभी जितना खाद किसानों को चाहिये था आपका विभाग सप्लाय नहीं कर सका और ब्लेक में किसानों को खाद खरीदना पड़ा है क्या इस बात पर विचार करेंगे।
श्री दिग्विजय सिंह :- असत्य हैं, मैं दाबे के साथ कह सकता हूं कि एक का भी प्रमाण बता दें एक किसान की भी शिकायत बता दें।
(व्यवधान)
असत्य बोलना, भाषण देना, काम नहीं करना इनकी आदत हैं। माननीय सभापति जी, मैं आपसे दूसरी बात कह रहा था हमने इस वर्ष किसानों को सर्टिफाय शीट दी है। यदि हमारे विपक्ष के साथी इस साल के बजट को देखते तो उसमें उन्हें, मिलता कि हमने धान के प्रमाणित बीज का उपयोग किया जाना या उसके ऊपर सबसीडी का प्रावधान क्या हैं ताकि किसान सर्टिफाय शी खरीद सके। इस तरह से आदिवासी अंचलों में रहने वाले किसान जहां की धान ज्यादा पकता है हमारे कश्यप जी, सोढीजी बस्तर के रहने वाले हैं जल्दी पकने वाला धान जो 90 दिन में पक जाये उसकी व्यवस्थां हमारा विभाग करेगा। हमारे अधिकारियों के माध्यम से हम जल्दी पकने वाला धान आप तक पहुंचायेगे। मैं निवेदन करना चाहता हूं कि आदिवासी अंचलों में रहने वाले सभी माननीय सदस्य अपने किसानों से कहें कि जल्दी पकने वाला बीज हम देगे। हमारे इस प्रदेश का छत्तीसगढ अंचल है वह धान का कटौरा कहा जाता है हमारे कृषि विभाग की योजनाएं छत्तीसगढ के धान की प्रगति से किसानों को लाभ कैसे हो सके। इसके बारे में विस्तृत कार्यक्रम बनाया है पूरा प्लान बनाया है जिससे हम किसानों को प्राफिट बढ़ा सके और इसके बारे में यह भी चाहता हुं कि वहां पर जो किस्म ली जाती है उसमें उतना प्राफिट नहीं लिया जाता है इसके साथ ही वहां की कई समस्याएं हैं।
सभापति महोदय :- मैं समझता हूं कि मन्त्री जी का उत्तर पूर्ण होने तक समयावृद्धि करने में सदन सहमत हैं।
श्री दिग्विजय सिंह :- छत्तीसगढ के इलाकों में अभी कई समस्याए हैं रबी की फसल दूसरी नहीं ले पा रहे हैं धान ही वह लेते हैं दूसरी नहीं ले पा रहे हैं इसके लिये सिंचाई, नालों के विशेष कार्यक्रम लिये हैं और हमारा स्पष्ट मत है कि छत्तीसगढ रूरल एकानामिक है उसमें जब तक उनको लाभ नहीं मिलेगा वहां के लोगो को पैसा कमाने के लिये प्रोत्साहित नहीं करेंगे तब तक छत्तीसगढ की गरीबी को दूर नहीं कर सकते। हमने उस क्षेत्र मे गन्ने की फसल पैदा करने के लिये खांडसारी के लिए रायपुर, महासुमुंद आदि क्षेत्रों में स्थापित करने का निश्चय किया है। वह धीरे-धीरे हम सुगर फेक्ट्री में परिवर्तित करेंगे इसके साथ-साथ महेन्द्र जी ने कहां था कि हम रबी की फसल छत्तीसगढ में ले सकते हैं इसके बाद में रायपुर का जो कृषि महाविद्यालय है वह रिसर्च कर रहे है, इस तरह से हम चाहते हैं कि छत्तीसगढ में रबी फसल में कपास किस तरह से लिया जा सके इसके बारे में काफी पहल की है और बड़े अच्छे रिजल्ट हम लोगों को मिले हैं। इसी तरह हम चाहते हैं कि उचेरा में जो स्थिति है उसे छत्तीसगढ के किसान समझते हैं। वहां पर जो केसरी दाल के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है तो हम यह कोशिश कर रहे हैं कि उचेरा में चना, अलसी, कुसुमकरडी की फसलें भी किसानों द्वारा ली जाय ताकि वे कैश क्राप से ज्यादा से ज्यादा फायदा ले सकें।
श्री हीराराम वर्मा :- आपने गन्ने की बात कही तो जब तक कही तो जब तक आप वहां पर ट्यूबवैल नहीं लगायेंगे तब तक इसमें फसल नहीं हो सकते। इसके लिए किसानों का काफी पैसा जमा पड़ा हुआ है।
श्री दिग्विजय सिंह :- 87 प्रतिशत क्षेत्र में इस प्रदेश में लोग सूखी खेती करते हैं इस पर हमारे शासन ने विशेष रूप से ध्यान दिया है। हमारा जो हैदराबाद में इन्टरनेशनल इंस्टीट्यूट है उसके सहयोग से इस प्रदेश के अन्दर हम प्रोजेक्ट्स कायम कर रहे हैं ताकि सूखी खेती में पर हैक्टेयर उत्पादन ज्यादा बढ़ सकें। हमारा यह भी लक्ष्य है कि और हमने अभी लगातार तीन तक इस संबंध में एक सेमीनार आयोजित किया था कि किस तरह से हम प्रदेश में पर हैक्टेयर खेती की उपज बढ़ा सकें। 5, 6 और 7 तारीख को यह सेमीनार आयोजित किया गया था। रिसर्च साइंटिस्ट, फील्ट एक्सटेंशन आफिसर और हमारे विभाग के सारे अधिकारी सब लोगों ने बैठकर पूरे वर्ष के लिए एक एक्शन प्लान बनाया है जिसे हम इसी वर्ष से कार्यान्वित करने वाले हैं। इसी तरह से हम मिक्स फार्मिंग के लिये भी ध्यान दे रहे हैं। जिससे किसान सूखी खेती में डबल क्राप्स ले सकें।
सभापतिजी, फसल बीमा योजना के बारे में हमारे माननीय सदस्यों ने बहुत कुछ कहा हैं। मैं पूर्व में भी कह चुका हूं कि फसल बीमा योजना एक आसान योजना नही हैं कि उसे हम एकदम से पूरे प्रदेश में फैला सकें। अभी हम इस योजना को 82-83 की खरीफ फसल में पहले 12 तहसीलों में प्रयोग के रूप में प्रारम्भ करने वाले हैं और उसके बारे में मैं विस्तृत रूप से जो सदस्य इसमें रूचि रखते हों उनको बताने को तैयार हूं। मैं माइको माइनर इरीगेशन के बारे में भी बताना चाहता हूं। इस संबंध में शासन का यह स्पष्ट मत है कि जब तक हम प्रदेश में बहने वाले छोटे-छोटे नदी-नालों को रोककर बांध नहीं बनाते हैं तब तक हम उन्नति नहीं कर सकते। जब तक हम टैंक नहीं बनाते तब तक हम प्रदेश की उन्नति कृषि के मामले में नहीं कर सकते। इसके लिये हमने इस बात का प्रयास किया है कि उन जिलों में जहां प्रदेश के एबरेज से सिंचाई प्रतिशत कम है उन जिलों में हम प्राथमिकता देकर कार्य करवा रहे हैं। क्योंकि अभी सर्वे के पश्चात् इस कार्य में काफी विलम्ब होता है इसलिए इन योजनाओं की स्वीकृति के अधिकार हम जिलाधीशों को दे रहे हैं। जो जिलों में लैंड यूटिलाइजेशन कमेटी है उनके माध्यम से जिला कलेक्टरों को 5 लाख रूपयों का अधिकार देने का विचार कर रहे हैं। ताकि छोटी-छोटी योजनाओं की स्वीकृति के लिए भोपाल को इंतजार न करना पड़े।
माननीय सभापति जी, सोयाबीन की खेती में इस प्रदेश ने जो प्रगति की है वह आपमें एक ऐसा उदाहरण है जिसमें न केवल इस प्रदेश में वरन् इस देश को गर्व ह। हमारी नेता श्रीमती इंदिरा गांधी भी इससे काफी प्रभावित हुई हैं जिसके कारण उन्होंने हमारे प्लान सीलिंग के अलावा 15 करोड़ रूपयों का एक सोयाबीन प्रोजक्ट इस प्रदेश को दिया है। इसके माध्यम से हम अपने किसानों की सोयाबीन की खेती को आगे बढ़ा सकेगे। इसके माध्यम से चारे की भी समस्या हल हो सकेगी। प्लान्ट प्रोटेक्शन में, किस तरह से फर्टीलाइजर प्लान्ट को हम आगे बढ़ा सकते है इसके लिये हमें इससे मदद मिलेगी। हम केन्द्र शासन के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने हमें 15 करोड़ की योजना प्लान सीलिंग के अतिरिक्त दी है। इसके लिये विपक्षी लोग भी जरा मेज थपथपा दें तो अच्छा होगा।
सभापतिजी, आयाकट के बारे में बहुत कुछ कहा गया तो मैं इस सिलसिले में भी बताना चाहता हूं कि हमारे प्रदेश में हालांकि सिंचाई क्षमता कम है लेकिन फिर भी उस क्षमता का सही प्रकार से उपयोग किया जा रहा है। उसके लिए हम अभी 4 आयाकट बना चुके हैं। दो की और स्वीकृति हो जायेगी। इस तरह से हम चाहते हैं कि जितनी भी हमारे मेजर इरिगेशन प्रोजेक्ट्रस हैं उनको सही समय पर पानी मिले, उनके खेतों तक पानी पहुंचे हमने उनके लैंड लेवलिंग के काम के लिए कमांड एरिया अथारिटीज बनाई है। हमको इस बात का इंतजार नहीं रहेगा कि तालाब सिंचाई की व्यवस्था हो उसके बाद हम शुरू करेंगे। हम बाणसागर और बरगी कमांड एरिया अथारिटी बना चुके हैं और उसमें किस तरह का क्रांपिंन पैटर्न होगा, किस तरह से डिगिंग होगी, सिंचाई क्षेत्र में आपरेशनलं रिसर्च प्रोजेक्ट चलाया जा सकता है इस बारे में हमने सोचा है। सभापति जी, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्यों को बताना चाहता हूं कि जहां तक तवा परियोजना का सवाल है हमारा यह अनुभव है कि वहां लैंड डवलपमेंट की कास्ट बहुत आती है। उसमें एक-एक किसान पर तीन-तीन, चार-चार हजार प्रति हैक्टेयर आता है, जो कि बहुत ज्यादा है। पिछले वर्ष इस पर क्रेडिट फरोज की एक योजना प्रारंभ की है जिस पर हम टैरिसिंग करके उनका सोइल कंजरवेशन भी करेंगे और सिंचाई के साधन उपलब्ध करायेगे। इस वर्ष दो सौ हैक्टेयर में कार्यक्रम लिया है। उसी तरह सारे कमांड एरिया डवलपमेंट से नालियों के विकास की ओर विशेष ध्यान दे रहे हैं। हम चाहते हैं कि किसान लैंड लेवलिंग का जहां तक सवाल है वह स्वयं अपने खुद के औजारों से अपनी लैंड लेवल करें। हम नहीं चाहते कि वह शासन का कर्जा उठाएं। हमने यह विशेष कार्यक्रम तवा योजना के अन्तर्गत लिया हैं। माननीय सभापति जी, मैं आपको बताना चाहता हूं कि जो भी लैंड डवलपमेंट की हमारे यहां कीमत आती है, मुझे इस बात का दुख है कि अभी तक सन् 1980 तक जो केन्द्र शासन सबसिडी देता था, उसके बाद हम उपयोग नहीं करते थे। हमारे पिछले शासन ने मना कर दिया था कि लैंड डवलपमेंट में जो केन्द्रीय शासन से हमको सबसिडी मिलती है उसको हम किसानों को नहीं देना चाहते। यह एज ए मैटर आफ रिकार्ड है। लेकिन हमारे शासन से जब मुझे जानकारी मिली इस बारे में तो हमने परिवर्तन किया और कमांड एरिया डवलपमेंट में जो सीमान्त, छोटे और आदिवासी कृषक हैं, उन्हें लैंड डवलपमेंट की सबसिडी केन्द्रीय शासन देता है, जो हमारी जेब से नहीं जा रहा था। जो आपने मना कर दिया था। उसके सारे केसेज रिओपन करावाए हैं और सबसिडी दिलवाने का हम प्रयास कर रहे हैं। सभापति जी, मैं आपके माध्यम से यह बताना चाहता हूं कि एक बड़ी छोटी सी बात माननीय सदस्य श्री रमाशंकर सिंह जी और श्री मुंशीलाल जी ने कर दी कि हम अपने यहां दो सबडिवीजन ले गए। मैं आपके माध्यम से माननीय सदन को और सदस्यों को बताना चाहता हूं कि हम मुरेना और चम्बल संभाग के बारे में ज्यादा चिंतित है। मैं बताना चाहता हूं कि रिवाइन रिक्लमेशन कंट्रोल के लिये 1980-81 में 29 लाख का प्रावधान किया, 1981-82 में 33 लाख का प्रावधान किया और 1982-83 में 1,25,00,000 का प्रावधान रखा है सभापति महोदय मैं बताना चाहता हूं कि हमने चार सब डिवीजन जो खोले हैं, उनमें दो बारना, हलालीं में शुरू किये हैं ताकि वहां की सिंचाई नालियां विकास नालियां ज्यादा तादाद में बन सकें जिससे जो सिंचाई का पानी व्यर्थ जा रहा है उसका सही उपयोग हो सके। सभापति महोदय, मैं उनको बनाना चाहता हूं कि उन्हें मालूम होना चाहिये कि उनके यहां कितने सबडिविजन हैं। आज चम्बल संभाग में दस सबडिविजन काम कर रहें हैं। जो कि प्रति जिला पांव आता है जबकि अन्य जिलों में तीन सबडिविजन हैं। इसलिए मैं माननीय सदस्य को आश्वस्त करना चाहता हूं और उनको आश्वस्त करना चाहता हूं और सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से सदन को बताना चाहता हूं कि इस प्रदेश में बागवानी से विशेष कार्यक्रम बनाया है (व्यवधान) माननीय रावत जी ने उसकी सराहना की हैं मैं धन्यवाद देता हूं हमने इस प्रदेश में अलग से बागवानी का डायरेक्टरेट कायम किया है और उसके माध्यम से हम प्रदेश में बागवानी बढ़ाना चाहते हैं और किसानों को जो 800 रू॰ सबसिडी दे रहे हैं ताकि बागवानी में अधिक से अधिक रकबा बढ़ सके। मैं माननीय सदस्यों को बताना चाहता हूं कि हमारे किसान अपने खेत में निस्तार की लकड़ी अपने मेड़ पर लगाए जिससे खुद की निस्तार की लकड़ी हेतु उन्हें वन विभाग पर आश्रित न रहना पड़े। इसीलिए हमने संचालनालय कायम किया है न केवल बागवानी बल्कि फार्म फारेस्टी का भीं रखा है हम चाहते हैं कि बागवानी में फलदार पेड़ के अलावा अपने अपयोग में आने वालीं निस्तार व जलाऊ लकड़ी भी खेत में लगाएं।
(व्यवधान)
इतना काम किया वह भी सुनने के लिये कोई तैयार नहीं हो तो मुसीबत हो जाती है। मैं सदस्यों को बताना चाहता हूं हमने साग-सब्जी की विकास योजना के लिए 5 ग्रीथ सेन्टर तैयार किये हैं। शहरों में जहां-जहां सब्जी की कमी है इस पूर्ति के लिए इन्टेन्सिव कल्टीवेशन का रकबा बढ़ा रहे हैं। एक्सटेशन के माध्यम से अध्कि सब्जी मैदा हो सकेगी। हमने बस्तर जिले के लिए कोकोनट व केशोनट व केशोनट के प्लान्टेंशन पर विचार किया है। शासकीय नर्सरीज के माध्यम से मैं समझता हूं हमारे बस्तर में रहने वाले भाई खेती के बजाय बागवानी का अधिक शौक रखते हैं वे कोकोनट का अधिक प्लान्टेशन करवाएं क्योंकि इससे अधिक आमदनी होती हैं मैं बताना चाहता हूं कि हमारे इस प्रदेश में इस वर्ष इतनी अच्छी पैदावार हुई है कि चने के भाव गिर रहे हैं। हमने यह समझते हुए कि भाव गिरेंगे एक महीने पहले केन्द्र शासन से निवेदन किया कि इस प्रदेश की चने की फसल को देखते हुए भाव गिरेंगे, आप कामर्शियल परचेज में शामिल कीजिये और केन्द्र शासन इस प्रदेश में चार लाख बोरी चना खरीदने का निर्णय कर चुका हैं। कामर्शियल परचेज प्रारम्भ हो चुका है।
श्री कैलाश जोशी :- रेट क्या है ?
श्री दिग्विजय सिंह :- मण्डी में बोली लगाकर खरीद की जायेगी। अब तो कैलाश जोशी कहें कि कल्याण हो। आपको मैं बताना चाहता हूं कि क्या खण्डवा, खरगौन व इन्दौर में काफी पैदा होता है नाफेड के अध्यक्ष श्री रामगोपाल तिवारी ने मेहरवानी करके इस प्रदेश में भी प्याज की खरीदी खण्डवा, खरगौन व इन्दौर में करने का निर्णय लिया हैं। आदेश दिये जा चुके हैं। जहां तक मण्डी का सवाल है हम चाहते हैं कि हमारे प्रदेश में अधिक से अधिक किसानों को मण्डी क्षेत्र में लाने का काम है, हर केन्द्र पर मण्डी स्थापित करना चाहते हैं विस्तृत सर्वेक्षण करवाया है और केन्द्रीय शासन ने 3 करोड़ रू॰ तक प्रावधान बजट हमारे प्लान सीलिंग के अलावा ले चुके हैं। पहले राज्य में 10-15 लाख लेते थे अब 1।। करोड़ लेते हैं आपका कृषि विभाग कितना जागरूक हैं, ओर सक्रियता से कार्य कर रहा हैं। हमारा पैसा चिकित्सा विभाग के बारे में मैं सदन के सभी माननीय सदस्यों को बताना चाहता हूं हमारा केवल दुग्ध उत्पादन के बारे में ध्यान नहीं हैं। हमारा इसके ऊपर भी ध्यान है कि हमारी जो खेती में काम आने वाली ब्रीड हैं, मालवी हो, निमाड़ी हो चाहे केन की बस्तर की ब्रीड हो, डेवलप करना चाहते हैं उसकी योजना बना रहे हैं। जो अंगोला ब्रीड्स है, उसको भी डेवलप करना चाहता हूं और उसके लिए विस्तृत योजना बना रहे हैं। अध्यक्ष महोदय, हमारे प्रदेश का 90 प्रतिशत छोटा किसान है और बैलों से खेती करता है। उनकी नस्ल सुधारने के लिए विशेष कार्यक्रम बनाया है। हम लोगों ने इस वर्ष बजट में छोटे किसानों को बैलों के इम्प्लीमेंट के लिए सुधार के लिए सबसीडी देने का प्रावधान रखा है जिससे कि छोटे किसानों को बैलों से खेती करने पर इम्प्लीमेंट हो।
(व्यवधान)
सभापति महोदय :- आपके माध्यम से माननीय सदस्यों को बताना चाहता हूं कि हमने आदिवासी क्षेत्रों में सुअर पालन की योजना बनाई है जिससे आदिवासियों को दो मादा सुअर और एक नर सुअर दे देते हैं जिससे कि एक छोटा कार्यक्रम चलाया जा सकें। जो हमारे आदिवासी भाई हमारे जो सुअर पालन से जो बच्चे होंगे विभाग द्वारा खरीदा जायेगा और मल्टीप्लीकेशन किया जायगा। इसके अलावा एक कारपोरेशन का गठन कर रहे हैं जिसके माध्यम से हम पशुओं के नस्लों के सुधार के बारे में, खरीद फरोक्त के बारे में, हमारे पोल्ट्री के चिकन्स के बारे में, अण्डे के वितरण के बारे में, सुअरों के पालन के आधार पर उद्योग के बारे में विचार करेंगे। माननीय सभापति जी, इस प्रदेश में बत्तख पालन की योजना भी चलाई जाने वाली हैं। हमने योजना बनाई है छत्तीसगढ़ के तालाब हैं वहां बत्तख पालन कर सकते हैं उसके लिए विशेष कार्यक्रम बनाया है। इसी तरह किसी भी पशु पालन को इस बात से नकारा नहीं जा सकता जब तक उसको अच्छा चारा नहीं मिलेगा तब तक अच्छी नस्ल नहीं ले सकते, उसका उद्धार नहीं होने वाला है। बरसीम का बीज नहीं मिलता उसको विभागीय स्तर पर फैलाना है, टारगेट पशु चिकित्सा विभाग के अधिकार में दिया है। उनके क्षेत्र में एक प्रतिशत रकबा कम से कम हरे चारे को वरसीम के नीचे ले जाना चाहिये। हमारे अधिकारियों ने 1।। प्रतिशत का लक्ष्य प्राप्त किया और अब हरे चारे का उत्पादन बढ़ा है और उसी तरह हमारा ख्याल है कि हमारे अधिकांश पशु जंगलों में चरते हैं और हमने चरनोई को गवां की चरोखर में छोड़ दिया है। उसके डेवलपमेन्ट का कार्यक्रम भी बना है। उसके लिए हमारे विभाग ने चिकित्सा विभाग के लिये बजट प्रावधान किया है। अगर आप पढ़ते तो अच्छा होता। माननीय सभापति जी, मैं सुनाना चाहता हूं माननीय पटवा जी उसके बारे में सुनना चाहते हैं। उज्जैन मण्डी के बारे में हमें कुछ शिकायत प्राप्त हुई थी जिसमें दुकानों का सही तरीके से नीलाम नहीं हुआ था, उन्होंने बिना घोषणा के बिना प्रचार प्रसार के अपने लोगों को आपस में मण्डी की दुकानें बाँट ली थी, उसमें काफी भ्रष्टाचार की शिकायत मिली थी। उसकी सुनवाई की गई, इसके पश्चात संचालक मण्डी ने अपने विवेक का उपयोग किया हैं।
(व्यवधान)
सभापति जी, हमारे विभाग के सभी अधिकारियों को हमने कहा कि किसी राजनीतिक दबाव में, हमारे मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि आपको किसी राजनैतिक दबाव में आकर काम नहीं करना है और अपने स्वयं के विवेक से काम करना है। हमारे संचालक मण्डल ने पूरे विवेक का उपयोग किया हैं, चाहे गलती कोई करे चाहे आपके दल का हो या हमारे दल का हो उसको कतई नहीं बख्सना चाहिए। इसी के अन्तर्गत भंग किया गया।
श्री सुन्दरलाल पटवा :- न संचालक मण्डल का विवेक उपयोग में आया है, और न आपका विवेक उपयोग में आया है, वे दिल्ली में सिंहासन पर विराजमान थे और बोरिया बिस्तर बाँध कर चले गये। आप ऐसी मंडी को नहीं चलने देना चाहते हैं जिसमें विरोधी दल के लोग सत्ता में बैठे हैं।
श्री दिग्विजय सिंह :- सभापति जी, मैं आपके माध्यम से बताना चाहता हूं कि आपकी पार्टी के लोगों ने घोर विरोध किया, मंदसौर मण्डी का प्रांगण है जहां अपने अपने चलते चलते थोड़े से मुख्य मंत्रित्वकाल में आप पत्थर लगा आये थे वहां आपकी प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिए उसका पालन करवाया, आपके सहयोगी की बात नहीं मानी ......।
श्री सुन्दरलाल पटवा :- मुझे जवाब देने के लिए खड़ा होना पड़ेगा।
श्री दिग्विजय सिंह :- हमारे विभाग ने जो प्रगति की है, जो योजनायें बनाई हैं, हमारे अधिकारियों और छोटे कर्मचारियों ने वेटेनरी असिस्टेंट आदि विभाग के अधिकारियों ने जो सक्षमता से कार्य किया है, जो लगन के काम किया है उसके लिए मैं उनकी प्रसंशा करना चाहता हूं, उनको धन्यवाद देना चाहता हूं। अंत में मैं माननीय सदस्यों से निवेदन करना चाहता हूं कि हमारे विभाग ने अच्छा काम किया है अतः मांगों को पास करेंगे और जोशी जी कल्याण का आशीष देंगे।
सभापति महोदय :- अब मैं कटौती प्रस्तावों पर मत लूंगा।
सभापति महोदय :- प्रश्न यह है कि मांग संख्या 13, 14, 15, 16, 40, 52 तथा 55 पर प्रस्तुत कटौती प्रस्ताव स्वीकृत किये जाये।
कटौती प्रस्ताव अस्वीकृत हुये।
सभापति महोदय :- अब मैं मांगों पर मत लूंगा।
सभापति महोदय :- प्रश्न यह है कि 31 मार्च, 1983 को समाप्त होने वाले वर्ष में राज्य की संचित निधि में से प्रस्तावित व्यय के निमित्त राज्यपाल महोदय को लेखानुदान द्वारा दी गई धनराशि के अतिरिक्त-
अनुदान संख्या 13 कृषि के लिये पचपन करोड़, सत्रह लाख सतहत्तर हजार रूपये।
अनुदान संख्या 14 पशुधन के लिये बारह करोड़, पन्द्रह लाख, इकासी हजार रूपये।
अनुदान संख्या 15 डेरी विकास के लिये चार करोड़ सतहत्तर लाख, इक्कानवे हजार
रूपये।
अनुदान संख्या 16 मछली पालन के लिये एक करोड़, चवालिस लाख, उन्नासी
हजार रूपये।
अनुदान संख्या 38 रोजगार कार्यक्रम के अन्तर्गत अरिरिक्त व्यय के लिये एक करोड़,
उनतीस लाख, पच्चीस हजार रूपये।
अनुदान संख्या 40 आयाकट विभाग से सम्बन्धित व्यय के लिये 8 करोड़, इकहत्तर
लाख, तीन हजार रूपये।
अनुदान संख्या 52 कृषि विभाग से सम्बन्धित विदेशों से सहायता प्राप्त परियोजनाओं
के लिये चार करोड़, उन्नीस हजार रूपये।
अनुदान संख्या 53 आयाकट से सम्बन्धित विदेशों से सहायता प्राप्त परियोजनाओं के
लिये पन्द्रह करोड़, उनतालीस लाख, इक्कतीस हजार रूपये।
अनुदान संख्या 54 मछली पालन विभाग से सम्बन्धित विदेशों से सहायता प्राप्त
परियोजनाओं के लिये पचास लाख, आठ हजार रूपये।
अनुदान संख्या 55 डेयरी विकास विभाग से सम्बन्धित विदेशों से सहायता प्राप्त
परियोजनाओं के लिये बाईस लाख, वानवे हजार रूपये तक की
राशि दी जाये।
मांगों का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।