Digvijaya Singh
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20 अगस्त 1980 रतलाम व उज्जैन की जावरा व महिदपुर शक्कर मिल बंद होने की अवधि

20 अगस्त 1980  रतलाम व उज्जैन की जावरा व महिदपुर शक्कर मिल बंद होने की अवधि

दिनांक 20.08.1980

जिला रतलाम व जिला उज्जैन की जावरा व महिदपुर शक्कर मिल बंद होने की अवधि।

            4. श्री मोहनलाल सेठिया : क्या राज्य मंत्री (कृषि) महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जावरा, जिला रतलाल तथा महिदपुर, जिला उज्जैन के शुगर मिल कब से बन्द पड़े हैं ? (ख) क्या उक्त मिल-मालिक द्वारा मजदूरों को तनख्वाहें नहीं दी जा रही हैं ? (ग) उक्त दोनों मिल में कितने-कितने कर्मचारी काम करते हैं तथा उनको कितनी-कितनी तनख्वाह देना शेष हैं ? (घ) क्या उक्त मिल-मालिक द्वारा किसानों के गन्ने का दाम भी देना शेष है ? (ङ) यदि हां, तो कब-कब से, कितना-कितना ?

            राज्य मंत्री, कृषि (श्री दिग्विजय सिंह) : (क) जावरा शक्कर कारखाना, दिनांक 26 फरवरी 1980 से तथा महिदपुर शक्कर कारखाना, दिनांक 28 जनवरी 1980 से बन्द है, (ख) जी हां। (ग) महिदपुर कारखानें में  485 कर्मचारी हैं। 12 मई 1980 तक उनका लगभग रू. 10 लाख देना शेष है। जावरा कारखाने में 1087 कर्मचारी हैं। अगस्त 1979 से फरवरी 1980 तक की अवधि के लिये लगभग रू. 10 लाख 20 हजार वेतन देना शेष है। (घ) जी हां। (ङ) वर्ष 1974-75 से 1979-80 तक की अवधि को बकाया राशि निम्नानुसार है :-

                                                कारखाना     राशि रूपया

                                                जावरा       82,31,431

                                                महिदपुर     36,94,973

            श्री मोहनलाल सेठिया : अध्यक्ष महोदय, मैं पूछना चाहता हूं कि जावरा और महिदपुर शुगर मिल फरवरी माह से बन्द पड़ी हैं, वहां के 1600 कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया गया है, उनके 21 लाख रूपये वेतन के बकाया हैं, हजारों किसानों की गन्ने की रकम बकाया है, करीब डेढ़ करोड़ की है। माननीय कृषि राज्य मंत्री ने जो उत्तर दिया है, वे यह बताने की कृपा करेंगे कि किसानों को गन्ने का मूल्य तथा कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह कब तक दी जायेगी।

            राज्य मंत्री, कृषि (श्री दिग्विजय सिंह) : अध्यक्ष महोदय, इस प्रकरण के बारे में यह शासन पूरी तरह से चिन्तित है। जैसा कि माननीय सदस्य ने बताया, मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि जो किसानों का बकाया है, उसका तत्काल पेमेन्ट होना चाहिये। जो मजदूरों का बकाया है, वह भी पेमेन्ट होना चाहिये। शासन के सामने दो-तीन योजनायें विचाराधीन हैं और मैं समझता हूं कि शीघ्र ही उनका निराकरण किया जायगा।

            अध्यक्ष महोदय : आपने जैसा कहा कि कुछ योजनायें विचाराधीन हैं, क्या शासन उनको हस्तगत करना चाहता है ?

श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, जो दोनों शुगर मिल के एक ही मालिक हैं, उन्होने एक योजना प्रस्तुत की थी। वह यह कि कुछ राशि बैंक द्वारा उनको ऋण, शासन की गारन्टी पर दिलवाया जाय, कुछ वे स्वयं लगाने को तैयार हैं। इस तरह की योजना हमारे सामने आई थी। उसका हमने परीक्षण कराया था। एक कमेटी बनाई थी सर्वेक्षण के लिए, उस कमेटी की रिपोर्ट हम लोगों को प्राप्त हो गई है। एक योजना यह है कि जो योजना मिल-मालिक ने दी है, उसको कार्यरूप दिया जाय। दूसरी टेक ओवर की है। टेक ओवर दो तरह से हो सकता है, एक जो गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया का एक्ट है, जिसमें भारत शासन द्वारा चीना संस्थान प्रतिष्ठान द्वार टेक ओवर किया जा सकता है। जिसका पूरा भार भारत शासन पर पडे़गा, उसके बारे में मैंने स्वयं और माननीय मुख्यमंत्री जी ने केन्द्रीय कृषि मंत्री जी से भेंट की थी और सारी स्थिति से उन्हे अवगत कराया था। उन्होंने कुछ तथ्यों का स्पष्टीकरण मांगा था, वह भी हमारे विभाग द्वारा दिया जा चुका है। इस तरह से केन्द्रीय शासन से हम लोग प्रयास कर रहे हैं कि ये दोनों मिलें इस एक्ट के तहत वे लेलें। उस बारे में निर्णय अभी अपेक्षित है। यदि केन्द्रीय शासन लेने से इन्कार करता है तो मध्यप्रदेश शासन भी इस बारे में विचार कर सकता है और अधिग्रहण कर सकता है, इण्डस्ट्रियल डेवलपमेन्ट एक्ट की धारा 18-ए के अन्तर्गत, लेकिन प्रश्न आर्थिक भार का आता है। यदि टेक ओवर करते हैं, तो करीब ढ़ाई-करोड़ रूपये का भार शासन पर पड़ेगा। यदि हम लोगों के सामने यही रास्ता रह जाता है कि टेक ओवर करना पड़े, तो मैं समझता हूं कि उस इलाके के गन्ना-उत्पादकों के हित के लिये, किसानों और मजदूरों के हितों के लिए हम अधिग्रहण करने में भी हिचकेंगे नहीं।

            श्री मोहनलाल सेठिया : अध्यक्ष महोदय, दोनों मिलों के एक ही मालिक हैं और वे कांग्रेस के भूतपूर्व विधायक हैं, उनको बचाने की दृष्टि से जो किसानों और मजदूरों का करोड़ों रूपया दिलाने में आप विलम्ब करना चाहते हैं, क्या यह  सच है ?

            श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, कांग्रेस शासन 1980 के बाद आया है, जो बकाया है, वह जनता पार्टी के राज्य का ही बकाया है। अगर आपको कार्यवाही करना था तो कर सकते थे।

            श्री पुरूषोत्तम विपट : यह 1974-75 से बकाया है यानी कांग्रेस शासन से बकाया है। आपने इसी प्रश्न के उत्तर में बताया है।

            अध्यक्ष महोदय : मुझे लगता है, कांग्रेस शासन और जनता शासन दोनों का बकाया है।

            श्री विक्रम वर्मा : प्वाइंट ऑफ ऑर्डर। एक तरफ सन् 74-75 से बताया जा रहा है, दूसरी तरफ मंत्री जी कहते हैं, जनता पार्टी राज्य का बकाया है। मंत्री जी इस बात को जानते हैं कि सन् 75 तक वह व्यक्ति कांग्रेस का एम.एल.ए. रहा है, इसलिये उस समय से संरक्षण्सा प्राप्त होता रहा। इस तरह से विरोधाभास वाला वक्तव्य देकर मंत्रीजी सदन को गुमराह कर रहे हैं।

            अध्यक्ष महोदय : आपने जैसा कहा कि कांग्रेस शासन से बकाया है, उन्होंने बताया है, जनता पार्टी शासन का बकाया है। हालात से नजर आ रहा है कि दोनों शासन से बकाया चल रहा है।

(व्यवधान)

            श्री दिग्विजय सिंह : मेरा गुमराह करने का इरादा नहीं है। मैं आपके सामने स्पस्टीकरण दे रहा हूं। 74-75 का जो बकाया वह केवल ब्याज का भुगतान शेष है। इसके बारे में आर. आर. सी. जारी किया गया था उसके बाद सुप्रिम कोर्ट में यह केस गया, जहां पेंडिंग है यह रकम 3 लाख 41 हजार की है। सन् 75-76 के अन्दर 9 लाख 87 हजार है। उसके कारण यह बता रहे हैं कि ग्रेड गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया से तय होकर आता है.....

            श्री शीतला सहाय : प्वाइंट ऑफ आर्डर। किस वर्ष का, कितना बकाया है यह बता दिया जायें ? ये तो अपने समय को जस्टीफाई करके गुमराह कर रहें हैं।

            अध्यक्ष महोदय : आप बकाया बता दीजिए।

            श्री शीतला सहाय : जब भी यह सवाल आता है तो आठ रूपया किलों की शक्कर तुरन्त बोलने लगती है।......

(व्यवधान)

            श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, 75-76 में 9 लाख 87 हजार और 77-78 में 25 लाख 16 हजार है। (शेम-शेम) और 78-79 में 34 लाख 29 हजार यह जावरा का है। अब मैं आपको महिन्दपुर का बतलाता हूं। 75-76 मे 4 लाख 32 हजार। 77-78 में 9 लाख 71 हजार और 78-79 में 16 लाख 40 हजार है।

            श्री भारत सिंह : अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय सदस्य से कहना चाहता हूं कि माननीय सदस्य श्री शीतला सहाय जी यह कह रहे हैं। वे यह बतालायें कि जब इतना (कितना) बकाया है, तो जब इनकी सरकार थी, जो कि अफीम निकालने में मशहूर है तो उस समय ये क्या अफीम निकाल रहे थे ?

            श्री चित्रकान्त जायसवाल : अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि विगत तीन वर्षों में मजदूरों को पैसे दिलाने में और काम दिलानें में और किसानों को पैसे दिलानें में क्या-क्या कार्यवाही की गई थी।

            श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, मैंने इसका भी ब्रेकअप कर लिया है। 74-75, 76-77 से 80 में जो बकाया है वह जावरा शुगर मिल की है, 67 लाख रूपये 3 सालों की बकाया है जबकि कुल 82 लाख है।