Digvijaya Singh
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18 अप्रैल 1994 सरगुजा जिले के ग्राम मतरेंगा में उल्टी दस्त से अनेक लोगों की मौत

18 अप्रैल 1994 सरगुजा जिले के ग्राम मतरेंगा में उल्टी दस्त से अनेक लोगों की मौत

(74) दिनांक 18 अप्रैल 1994


सरगुजा जिले के ग्राम मतरेंगा में उल्टी दस्त से अनेक लोगों की मौत।

स्थगन प्रस्ताव
समय 11.15 बजे

सरगुजा जिले के ग्राम मतरेंगा मे उल्टी दस्त से अनेक लोगों की मौत


    अध्यक्ष महोदय : मेरे पास सरगुजा जिले के ग्राम मतरेंगा में उल्टी-दस्त से अनेक लोगों की मौत होने के संबंध में स्थगन प्रस्ताव की छः सूचनाए प्राप्त हैं :-
    पहली सूचना     -    श्री ईश्वरदास रोहणी, श्री बनवारीलाल
    दूसरी सूचना     -    डॉ. रमन सिंह, श्री  शिवप्रताप सिंह, श्री कमलकिशोर पटेल, श्री 
                              रामविचार नेताम, श्री विक्रमसिंह उसेन्डी.
    तीसरी सूचना    -    श्री गौरीशंकर बिसेन,
    चौथी सूचना      -    श्री कैलाश विजयवर्गीय
    पांचवी सूचना    -    डॉ. आई. एम. पी वर्मा, श्री रामलखन सिंह (रामपुर बघेलान)
    छटवीं सूचना    -    श्री बनवारीलाल अग्रवाल, श्री ईश्वरदास रोहाणी सदस्य की हैं।

    चूंकि श्री ईश्वरदास रोहणी, श्री बनवारीलाल, सदस्य की ओर से स्थगन प्रस्ताव की सूचना सबसे पहले प्राप्त हुई हैं, अतः मैं उसे पढ़कर सुनाता हूं-
    ‘‘सरगुजा जिला मुख्यालय से मात्र 65 किलोमिटर की दूरी पर स्थित सरहदी ग्राम मतरेंगा में 10 मार्च से  25 मार्च तक 18 लोगों की उल्टी-दस्त से मृत्यु हो चुकी हैं। मृतकों में 16 बच्चे तथा 2 युवा सम्मिलित हैं। उल्टी-दस्त से लगातार हो रही मौत की रोकथाम के प्रति प्रशासन उदासीन हैं। यदि 10 मार्च को उल्टी-दस्त की पहली घटना पर प्रशासन त्वरित कार्यवाही करता तो आगे की घटनाओं को रोका जा सकता था। किन्तु गरीब अनुसूचित जनजाति के बच्चों की मृत्यु का शासन की निगाह में कोई महत्व नहीं है। इस घटना से पूरे सरगुजा जिल सहित छत्तीसगढ़ अंचल में भीषण रोष व्याप्त हैं।
    अतः इस लोक विषय पर आज सदन की कार्यवाही रोककर चर्चा की जाए’’
    इसके संबंध में शासन का क्या कहना हैं ?

    लोक स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्री (श्री अशोकराव) : अध्यक्ष महोदय यह कहना सही नहीं है कि सरगुजा जिले में उल्टी-दस्त से मौत का कहर जारी है। यह भी कहना सही नहीं हैं कि प्रतिदिन सैकड़ों लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं।
   हैं। जिलें में सामान्य रूप से आंत्रशोध और पैचिश से लोग पीड़ित अवश्य हुए हैं, परन्तु ऐसी कोई स्थिति नहीं हैं कि हजारों लोग मर चुके हैं और औसतन 25 व्यक्ति प्रत्येक गांव में उल्टी-दस्त से पीड़ित हैं। वास्तविक स्थिति यह है कि 7 मार्च, 1994 से अब तक जिला सरगुजा में 31 व्यक्ति आंत्रशोध एवं 429 व्यक्ति पैचिश से पीड़ित हुए हैं, जिनमें से 15 लोगों की मृत्यु हुई हैं, इनमें से 8 की मृत्यु विकासखण्ड राजपुर में और 7 की मृत्यु उदयपुर में हुई हैं। अतः यह कहना तथ्यों से परे है कि पूरे जिले में 212 व्यक्ति महामारी से मर चुके
    विकासखण्ड उदयपुर में जो 7 मृत्यु हुई हैं, वे ग्राम मतरेंगा में हुई हैं। इस ग्राम मे माह मार्च, 94 में आंत्रशोध/पैचिश से 29 लोग पीड़ित हुए जिनमें 25 बच्चे थे इनमें से 7 बच्चों की मृत्यु हो गई।
    ग्राम मतरेंगा में आंत्रशोध/पैचिश से लोगों के पीड़ित होने एवं मृत्यु की घटना की जानकारी प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र के चिकित्सक को मिलने पर हुई। दिनांक 15-03-94 को ही चिकित्सक ग्राम में गये तथा पीड़ित व्यक्तियों के इलाज की व्यवस्था की, तत्पश्चात् उन्होंने दिनांक 17 एवं 18 मार्च को भी ग्राम में जाकर पीड़ितों के उपचार एवं बचाव का कार्य किया। जिला मुख्यालय पर सूचना मिलते ही जिला चिकित्सालय से भी चिकित्सकों का एक दल प्रभावित ग्राम में भेजा गया जहां दल ने पीड़ितों के उपचार के साथ-साथ लोगों को बचाव के संबंध में जानकारी/सलाह दी। इस ग्राम सहित जिले के अन्य प्रभावित सभी ग्रामों में दवाइयों एवं चिकित्सा की समुचित व्यवस्था की गयी हैं, तथा दवाईयों की कोई कमी नहीं हैं।
    आंत्रशोध/पैचिश तथा अन्य बीमारियों की रोकथाम और बचाव कार्य के प्रति विभाग एवं प्रशासन पूरी तरह सजग है, स्वास्थ विभाग के चिकित्सक तथा जिला प्रशासन के अधिकारी निरन्तर प्रभावित ग्रामों का भ्रमण करते रहे हैं। स्वयं जिला कलेक्टर सरगुजा पुलिस अधीक्षक, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ अधिकारी एवं कार्यपालन यंत्री, लोक स्वास्थ अभियांत्रिकी विभाग प्रभावित ग्रामों में गये हैं और उन्होंने वहां सभी आवश्यक व्यवस्थायें सुनिश्चित की हैं।
    संचालक, लोक स्वास्थय एवं परिवार कल्याण भी हाल ही में 12-4-94 को सरगुजा भ्रमण पर गये थे, जहां उन्होंने उदयपुर विकासखण्ड में खंड चिकित्सा अधिकारी एवं सेक्टर चिकित्सकों और कर्मचारियों के साथ स्थिति की समीक्षा की। संचालक ने ग्राम सूरजपुर में जिले के समस्त खण्ड चिकित्सा अधिकारियों की बैठक लेकर स्थिति की गहन समीक्षा की और उन्हें बीमारियों की रोकथाम के संबंध में समुचित निर्देश दिये।
    यह सत्य नहीं है कि विकासखण्ड कुसमी, शंकरगढ़, उदयपुर अथवा अन्यत्र स्थिति आनियंत्रित हो चुकी हैं। वास्तविकता यह है कि स्थिति अनियंत्रित होने जैसी कोई स्थिति नहीं हैं। जिले में आंत्रशोध/पैचिश सहित अन्य रोगों की रोकथाम तथा पीड़ितों के बचाव/उपचार के संबंध में पूरी मुस्तैदी से सभी व्यवस्थायें की गयी हैं।
    स्थगन प्रस्ताव क्रमांक 291 में जिन बच्चों एवं बड़ों के नाम दिये गये हैं उनमें से केवल 7 बच्चों की ही मृत्यु मार्च, 1994 में आंत्रशोध/पैचिश के कारण ग्राम मतरेंगा में हुई हैं। इन बच्चों के नाम इस प्रकार हैं :-
    1. अगहन बाई पुत्री चमार आयु 1.5 (डेढ़) वर्ष मृत्यु दिनांक 1-3-94
    2. करिया पुत्र मंत्री आयु 5 वर्ष मृत्यु दिनांक 1-3-94
    3. गुड्डी पुत्री धनवार आयु एक माह मृत्यु दिनांक 10-3-94
    4. सुन्ना पुत्र तेजराम आयु 1.5 वर्ष मृत्यु दिनांक 5-3-94 
    5. बुधवाबाई पुत्री सुखलाल आयु 2 वर्ष मृत्यु दिनांक 5-3-9 84
    6. सुमुद्रीबाई पुत्री कार्तिक आयु 6 वर्ष मृत्यु दिनांक 15-3-94
    7. बेसाखू पुत्र गजबंधन आये 3 वर्ष मृत्यु दिनांक 26-3-94
    स्थगन प्रस्ताव में 6 ऐसे व्यक्तियों के नाम भी दिये गये हैं जिनकी मृत्यु मई 1993 से फरवरी, 1994 के बीच सामान्य बीमारी के कारण हुई है। 

    श्री ईश्वरदास रोहाणी (जबलपुर-केन्टोनमेंट) : अध्यक्ष महोदय, मैं इस स्थगन प्रस्ताव को ग्राह्य करने का निवेदन इसलिए करना चाहता हूं कि माननीय मंत्री जी ने जवाब मे स्वीकार किया हैं कि जो भी मृत्यु हुई हैं वह 1 मार्च से 15 मार्च के बीच में हुई हैं। यह बड़े खेद की बात है कि सरगुजा जिले के कलेक्टर और स्वास्थ्य अधिकारियों को मृत्यु की सूचना  15 दिन के बाद में मिलती है। यदि 15 दिन पहले से इसको रोकने के लिए कार्यवाही की जाती, तो इन आदिवासियों के बच्चों को मरने से बचाया जा सकता था। जिन आदिवासियों के बल पर सरकार चल रही हैं और प्रतिदिन आदिवासियों के बच्चों की रक्षा की बात करती हैं, वह सरकार कितनी संवेदनशील है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य मंत्रीजी आज तक भी घटना स्थल पर नहीं पहुंचे हैं आज भी मेरा आरोप है कि दिनांक 7-4-94 को भी उल्टी और दस्त से एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है और अभी तक 24 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी हैं, जिनकी प्रमाणित जानकारी इस प्रकार है : अकेले ग्राम मतरेंगा में 20 व्यक्तियों की मृत्यु हुई हैं, जिसमें 17 बच्चे शामिल हैं जिनके नाम निम्न हैं- चैतराम 4 वर्ष, महावीर 3 वर्ष, अघनसाय डेढ़ वर्ष, करिया 3 वर्ष कु. समुन्द्री 5 वर्ष, बेसाखू 3 वर्ष, सूना 5 वर्ष, छेरनू 3 वर्ष,  बोदवा डेढ़ वर्ष, गुड्डी एक वर्ष, गुड्डी तीन वर्ष, गुड्डी एक वर्ष, राजेन्दर 2 वर्ष, रतियारों 6 माह, चेतू एक वर्ष, कु. हारी 13 वर्ष, कु. सीमा 5 वर्ष,। मरतेंगा में जिन बड़े व्यक्तियों की मौत हुई है उनमें बुधनी  40 वर्ष, गोपाल 55 वर्ष, तथा मोहित 30 वर्ष शामिल हैं। और इसी स्वास्थ्य केन्द्र विकास खण्ड उदयपुर, जिला अम्बिकापुर में  28-3-94 को ग्राम लक्ष्मणगढ़ में सोंयका 7 वर्ष तथा पवन डेढ़ वर्ष की मृत्यु हुई हैं। सरकार को  15 तारीख को मालूम होने के बाद भी कि आदिवासी बच्चों की रक्षा की बात करती हैं और आज आजादी के 47 वर्ष बाद भी बच्चे दूषित जल पीकर मर रहे हैं। मेरा आरोप है कि वहां पर 24-3-94 तक दवाईयां नहीं पहुंची हैं। भारतीय जनता युवा मोर्चा मण्डल के अध्यक्ष विनोद हर्ष ने 19 मार्च को जिला अधिकारियों का ध्यान-आकर्षित किया हैं, तो सबसे ज्यादा निराशा तो स्वास्थ्य मंत्रीजी से हुई है कि अंबिकापुर जो सरगुजा से लगा हुआ हैं, मंत्रीजी वहां तक तो दौरे पर जाते होंगे पर उन्होंने वहां का दौरा नहीं किया। इतनी भी सौजन्यता नहीं दिखायी कि इस क्षेत्र का दौरा करते। आदिवासियों के बल पर चलने वाली यह सरकार क्या नर्मदा का जल पीकर मरने के लिये तैयार हैं ? ऐसी सरकार तत्काल बरखास्त होनी चाहिये, जो आदिवासियों के बच्चों के साथ खिलवाड़ कर रही है। आदिवासी जिले के 20 बच्चों की मृत्यु हो जाये और यह सरकार अपने किसी भी मंत्री को वहां तथ्यों का पता लगाने के लिये न भेजे। माननीय अध्यक्ष महोदय, मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि इस स्थगन प्रस्ताव को चर्चा के लिए ग्राह्य करें, हम इस स्थगन प्रस्ताव से संबंधित और भी जबरदस्त तथ्य सदन में रखना चाहते हैं। इस स्थगन प्रस्ताव को चर्चा के लिये इसलिये ग्राह्य किया जाना चाहिये, क्योंकि  यह बच्चों के जीवन का सवाल हे और इन बीमारियों से लगातार आज भी मौंते हो रही हैं। मेरा निवेदन है कि आप इस स्थगन प्रस्ताव का ग्राह्य करिये।

    श्री बनवारीलाल (कटघोरा) : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इस स्थगन प्रस्ताव की ग्राह्यता पर चर्चा करने के लिये खड़ा हुआ हूं। सबसे पहली बात तो इससे अधिक वजनदार लोक महत्व का विषय जब से विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई है, इस सदन में आया नहीं है। इस सदन मे आदिवासियों के नाम पर हमें ढिंढोरा पीटनेवाली सरकार के रहते हुए, आदिवासी जिला सरगुजा में आज तक 24 लोगों की मृत्यु हो गयी है और इससे ज्यादा वजनदार लोक महत्व का विषय स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से चर्चा कराने का हो नहीं सकता। अध्यक्ष महोदय, आज वहां पर लोगों में दहशत हैं। वहां के किसान, जनता गांव छोड़कर भाग रहे हैं। मैं खुद वहां 11 अप्रैल को सत्यता जानने के लिये दोरे पर गया था। आज वहां के आदिवासी भयग्रस्त है, कोई भी आदिवासी सत्य बात नहीं बता रहे हैं। कुछेक आदिवासियों का कहना हैं कि अभी बीच में वहां पर सांसद आकर गये हैं। उन्होंने हमसे कहा हहै कि कोई भी आपसे पूछने के लिये आये तो उसे सत्य बात नहीं बताना। यह तो देवी का प्रकोप है और मैं देवी के प्रकोप के निर्मूलन के लिये शिव मंदिर के लिये 50 हजार रूपये की राशि स्वीकृत करके जा रहा हूं। किसी को भी सत्यता नहीं बताना। ऐसा भय वहां सत्ताधारी सांसद पैदा कर रहे हैं। अध्यक्ष महोदय, जब इस समस्या के बार में सदन में ध्यानाकर्षण लाया गया तो ध्यानाकर्षण के जवाब में सरकार ने जो तत्य प्र्रस्तुत किये थें, लिखित में जो तथ्य दिये थे, वह असत्य है। जवाब में सरकार का यह कहना था कि वहां पर अभी बीमारी नहीं
    इस भाषण को माननीय सदस्य ने नहीं सुधारा।
हैं यह बिलकुल गलत बात है। अध्यक्ष महोदय, इस सदन को स्वास्थ्य मंत्री द्वारा गलत जानकारी देने के बाद भी, राज्यमंत्री सिंचाई का जब होली के समय दौरा हुआ था, उनके सामने 26 मार्च को बैसाखू नामक व्यक्ति की मृत्यु हुई और सदन में इस सरकार ने जवाब दिया है कि इसके बाद अभी कोई बीमारी नहीं है, कोई रोगी इस बीमारी से पीड़ित नहीं हैं। मेरे पास देशबन्धु समाचार-पत्र हैं, जो कि बिलासपुर से प्रकाशित हुआ हैं, यह मैं आपके सामने रखना चाहता हूं। इस समाचार-पत्र में सिंचाई राज्यमंत्री, श्री प्रेमसाय सिंह ने स्वीकार किया है कि साफ पानी के अभाव में यह मौते हुई हैं। अध्यक्ष महोदय, जब सरकार का कोई मंत्री यह स्वीकार करे कि शुद्ध पानी के अभाव में, चिकित्सा के अभाव में और कुपोषण के अभाव में वहां आदिवासी भाईयों की मृत्यु हो रही हैं, तो उस पर इस सदन में चर्चा होना अनिवार्य हैं।
    अध्यक्ष महोदय, दूसरी बात यह है कि जो जवाब हमको मिला है, उसमें यह गलत जानकारी दी गयी है कि मतरेंगा से एक कि.मी की दूरी पर एक हैंडपम्प है और जिसमें साफ पानी उपलब्ध हैं। मैं आपको बताना चाहता हूं कि मतरेंगा से डाबरघाट, जिस पारे में हैडपम्प है, वह ढाई कि.मी की दूरी पर स्थित हैं, यह जो पारे की दूरी है, अगर इसकी लम्बाई मापी जाये, तो साढ़े तीन कि.मी. होगी। अभी वहां के कलेक्टर ने मतरेंगा से डाबरघाट पर ढ़ाई कि.मी. का रोड बनाने के आदेश दिया है। और सदन में यह कहा जा रहा है कि हैडपम्प एक कि.मी. की दूरी पर है, यह बिलकुल असत्य बात है। यह भी कहा जा रहा है कि अभी वहां पर कोई बीमारी नहीं है, यह भी गलत जानकारी दी जा रही है, अध्यक्ष महोदय, 11 तारीख को मैं वहां जब गया, तो डॉ. अखण्ड से मिला और मैने डॉ. अखण्ड से पूछा कि आज ऐसे कितने मरीजों का आपने परीक्षण किया जो आंत्रशोध की बीमारी से ग्रस्त थे। उसकी सूची मेरे पास है। उन्होंने स्वीकार किया है कि आज भी मतरेंगा में आंत्रशोध की बीमारी से लोग पीड़ित हैं। सरकार यह कहती है कि आंत्रशोध पर काबू पाया जा चुका है। अध्यक्ष महोदय, जबकि 28-3-94 को हुई। 4-4-94 को केदमा जहां पर मिनी पी.एच.सी. स्थित हैं, जिस पी. एच. सी. के अन्तर्गत यह मतरेंगा गांव आता है, वहां कु. सुपल 6 वर्ष की मौत हो गई। अध्यक्ष महोदय, मैं आपको बताना चाहता हूं कि कानाडांड में 9-4-94 को मंगला नामक 33 वर्षीय युवक की मृत्यु हो गई। 
    अध्यक्ष महोदय, इस सदन को जानकारी दी जाती है कि वहां पर समुचित व्यवस्था है। लेकिन 9-4-94 को केदमा पी.एच.क्षेत्र में डॉक्टर की नियुक्ति हुई । जिस समय स्थगन लाया गया। वहां पर डॉक्टर की नियुक्ति होती है। औषधि, मेडिकल की किट वहां पर 24 मार्च को पहुंचती है। ध्यानाकर्षण सूचना का लिखित जवाब सदन में दिया जाता है 22 मार्च को और 24 मार्च को औषधी पहुंच रही है। आप जरा सोचे कि किस-किस तरह से आदिवासी कीड़े-मकोडों की तरह मर रहे हैं। मैं समस्त आदिवासी माननीय सदस्यों को जागृत करना चाहता हूं कि जिस प्रकार से आदिवासियों के नाम पर राजनीति हो रही है, उसको समझे। वास्तव में आदिवासी वहां पर कीड़े-मकोड़ों की तरह मर रहे हैं। इस पर विचार नहीं होगा तो यह उनका अपमान होगा, छत्तीसगढ़ का अपमान होगा। इसलिये इसको ग्राह्य किया जाना चाहिए। सारे तथ्य जो ग्राह्यता के लिये आवश्यक है, वह सारे मूल आवश्यक तथ्य इसमें शामिल हैं।
    अध्यक्ष महोदय, मैं निवेदन करना चाहता हूं कि इस पर चर्च की जानी चाहिये। यह सरकार जब अम्बिकापुर में एक व्यक्ति की मौत हो जाती है झूठ में, तो उसमें सारा आसमान सिर पर चढ़ा लेती है। प्रधानमंत्री को वहां पर बुलाया जाता है और यहां 24 आदिवासी बंधुओं के बच्चे जो 6 माह के एक साल के, दो साल के बच्चे जो कीड़े-मकोड़ों के समान मर रहे है। जब में 11 अप्रैल को वहां से चला तो वृहस्पति नाम का एक बच्चा एक सप्ताह से मतरेंगा में बेहोश था। इसलिये इसको ग्राह्य किया जाना चाहिये। इस पर चर्चा की जानी चाहिये।
  

    अध्यक्ष महोदय : आज मांगो पर मतदान हैं, इसलिये हम जाहेंगे कि वह 12 बजे शुरू हो जाये।

    श्री शिवप्रताप सिंह (सूरजपुर) : अध्यक्ष महोदय, सरगुजा जिले में आंत्रशोध की बीमारी से मतरेंगा गांव में 24 व्यक्तियों की मृत्यु हुई है। और अभी इस सदन में माननीय स्वास्थ्य मंत्री ने सदन को जो असत्य जानकारी दी हैं, यह खेद का विषय है, उनको सदन में सही जानकारी देना चाहिये।
    11.32 बजे (सभापति महोदय(श्री सत्यनारायण शर्मा) पीठासीन हुए।)
    सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से इस चर्चा में भाग लेते हुए कहना चाहता हूं कि आदिवासी लोग जो बीमारी से मर रहे हैं, उनकी ओर सरकार गंभीरता से विचार नहीं कर रही है। वहां मैं स्वयं 13 अप्रैल को पहुंचा था। इसके पूर्व हमारे जिले के जो राज्यमंत्री है  |         डॉ. प्रेमसाय सिंह वे गये थे। सभापति महोदय, वैसे मैं यह बीमारी कैसे और क्यों हुई,उस संबंध में चर्चा करना चाहूंगा। वहां लोगो को खाने के लिये राशन उपलब्ध नहीं होता है। मतरेंगा से केदमा की दूरी बहुत ज्यादा है। पहाड़ चढ़ने के बाद वहां आदिवासी राशन लेने पहुंचले है। वहां आदिवासी लोगों को ठीक से भोजन नहीं मिलता है।सोसायटियां काफी दूर है। उनकों वहां से राशन लाना पडता है।सरकार की तरफ से राशन की कोई व्यवस्था नहीं होने से हमारे आदिवासी लोग कमजोर हो जाते है।और नाना प्रकार की बीमारियां उन्हें घेर लेती है, जिसके चलते बे मौत मारे जाते है, सरकार ध्यान नही दे रही है। मैं आपके माध्यम से इस सदन को अतिरिक्त जानकारी देना चाहूंगा कि हमारे स्वास्थय मंत्रीजी जिले का आंकड़ा बता रहे थे। सभापति महोदय, शंकरपुर, उदयपुर में इतने लोग मारे गये। मैं आपकी जानकारी बता रहा हूं कि अभी हमारे स्वास्थ्य मंत्री, हमारे मंत्रियों के सरगुजा जिले में विभिन्न प्रकार से लोग बीमारी से मरे रहे है, इसकी जानका शासन प्रशासन को है।
    सभापति महोदय, अभी मैं जब सरगुजा में पहुंचा था,तो वहां के सोनहद विकासखण्ड में आदिवासी लोगों में जिनमें एक महिला भी शामिल है की मृत्यु आंत्रशोध की बीमारी से हो गई है। इस बीमारी से वहां पर 8-10 दिन के अंदर ही तीन लोगों की मृत्यु हो चुकी है। जिसकी जानकारी जिला प्रशासन को अभी तक नहीं है। अभी भी वहां पर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा दवाईयां उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। मैं आपके माध्यम से इस सरकार का ध्यान-आकर्षित करना चाहता हूं कि वहां पर अभी भी हमारे आदिवासी बच्चों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी हमारे सरगुजा में चार व्यक्तियों की भूख से मौत बताकर प्रधानमंत्रीजी को लेकर के सरगुजा आये थे। आज वे मुख्यमंत्री है लेकिन उनको वहां पर जाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है। आदिवासियों के नाम पर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी कुर्सी हथियाने  के बाद भी उनको आदिवासियों के प्रति चिंता नहीं हैं।
    सभापति महोदय : अध्यक्ष महोदय, यह मेरे जिले का ही मामला है इसलिये मैं आपका संरक्षण चाहते हुए सद का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि मुझे पर्याप्त समय इस विषय पर बोलने के लिये दिया जाये। सभापति महोदय, सौ नहद में जो आंत्रशोध से लोग मारे गये हैं। उनके नाम का जिक्र में यहा पर करना चाहूंगा, (1) श्री नानूसाय, पुत्र रूपसाय पंडो, आयु 36 वर्ष, (2) शिवचरण, पुत्र रूपसाय पंडो, आयु 40 वर्ष, और (3) इतवरिया पत्नी लोलवा आयु 30 वर्ष। यह तीनों आंत्रशोध की बीमारी से मर चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग को सूचना देने के बाद भी वहां पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी नहीं पहुंचे हैं, वहां पर अभी तक दवायें उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। दूषित पानी वहां के लोग पी रहे है। हमारे जल संसाधन राज्यमंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह ने भी मतरेंगा में कहा था कि 227 लोगों की जनसख्यां है वहां पर काम का अभाव है, घर में खाने को राशन नहीं है सरकार इनके लिये तत्काल काम की व्यवस्था करें, राशन की व्यवस्था करें परन्तु माननीय राज्यमंत्री ने पांच श्रीफल तोड़कर के पांच फावड़े चलाकर के अपने प्रवास काम में 24 मार्च को वे मतरेंगा गये थे काम का आश्वासन देकर आए पर काम आज तक प्रारंभ नहीं हो सका है। तब से आज तक छठवां फावड़ा नहीं चला।
 

    सभापति महोदय : माननीय सदस्य कृपया स्थगन के विषय पर ही संक्षेप में बोले।
 

    श्री शिवप्रतापसिंह : सभापति महोदय, वहां पर किसी भी प्रकार के राहत कार्य नहीं चल रहे हैं। वहां खाद्यान्न उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है, वहां के लोगों की भूख से मौतें हो रही हैं। इसलिये मैं आपके माध्यम से इस स्थगन प्रस्ताव पर निवेदन करना चाहूंगा कि इसको चर्चा के लिये ग्राह्य किया जाये।

    सभापति महोदय : अभी माननीय अध्यक्ष ने व्यवस्था दी थी कि सदस्य संक्षेप में इस स्थगन पर बोले क्योंकि अभी डिमाण्ड पर भी चर्चा 12.00 बजे से होनी है। इसलिये सदस्य संक्षेप में बोले। श्री रामविचार नेताम। 

    श्री निर्भयसिंह पटेल : सभापति जी माननीय सदस्य श्री नेताम जी उसी जिले से संबद्ध है। मैं चाहूंगा कि सदस्य को तथ्य रखने का मौका दिया जाये। माननीय सदस्य आदिवासी सदस्य हैं।

    सभापति महोदय : विषय से संबंधित बोले उससे हटकर के ना बोले।

    श्री बाबूलाल गौर : आप विषय से हटकर के बाहर की बात वहां पर बैठकर के बोलते थे वैसे भी इनको भी बोलने का अवसर दिया जाये।

    श्री राजेन्द्रप्रसाद शुक्ल : गौर साहब एक तो आरोप लगा दिया कि विषय से बाहर की बात बोलते थे और दूसरों को भी यही शिक्षा आप दे रहे है।

    श्री रामविचार शुक्ल : माननीय सभापति महोदय, सरगुजा जिले से अभी तक जो समाचार आ रहे हैं उसमें 24 विकासखण्डों में सैकड़ों लोग आंत्रशोध उल्टी की बीमारी से मर चुके हैं। इसके बावजूद भी इस सदन में जो उत्तर दिया जा रहा है माननीय मंत्रीजी के द्वारा असत्य उत्तर देकर के इस सदन को गुमराह किया जा रहा है, वह सत्य से परे है। मंत्रीजी आप स्वयं भी इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि सरगुजा जिले से आपके विभाग के द्वारा जो उत्तर दिया जाता है माननीय मंत्रीजी के द्वारा जो उत्तर दिया जाता है वह और सही उत्तर समय पर नहीं दिया जाता है और इसी कारण से आपने सरगुजा जिले के सी. एम. ओ. को सस्पेंड भी किया है। सभापति महोदय, इसके बाद जो उत्तर यहां पर दिया जा रहा है वह सत्य नहीं है। आज सेकड़ों की तादाद में आदिवासी बच्चों की मृत्यु उस जिले में हो चुकी हैं और यहां पर उत्तर दिया गया है कि सात लोग अभी तक मर चुके हैं। सिंचाई राज्यमंत्री के प्रवास के समय भी उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है कि वास्तव में वहां मौतें हुई हैं। आपका स्वास्थ्य विभाग वहां पर ठीक प्रकार से काम नहीं कर रहा है। दवाईयां ठीक से उपलब्ध न होने की वजह से बीमारी फैल रही है। अभी भी उस जिले में चारों तरफ एक तरह से इस बीमारी का जाल फैलता जा रहा है, इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग चुपचाप बैठा हुआ है। आज भी उस जिले में बड़ी तादाद में दूरस्थ अंचलों में लोगों की मौतें हो रही हैं और मंत्रीजी इसकी सही जानकारी आप तक नहीं पहुंच पा रही है। इसलिए मैं निवेदन करना चाहता हूं कि आप सही-सही जानकारी लेकर उचित कार्यवाही करे और जिले में जो मौतें हो रही हैं, उसके बारे में आप चिन्ता करें मैं चाहता हूं कि सदन आज इस पर समय देकर इसके चर्चा के लिए ग्राह्य करे।

     श्री गौरीशंकर बिसेन (बालाघाट)  : सभापति महोदय, इस सदन में मतरेंगा की घटना को लेकर एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव ग्राह्य हुआ है। उस ध्यानाकर्षण में मैंने स्वयं ने और माननीय बनवारीलालजी अग्रवाल ने इस बात की और सरकार का ध्यान आकर्षित किया था कि मतरेंगा में दूषित पेयजल के कारण मृत्यु हुई है। सभापति महोदय, आज इस सदन में यह स्थगन प्रस्ताव क्यों आया ? मैं आपके माध्यम से माननीय स्वास्थ्य मंत्रीजी ही नहीं बल्कि माननीय मुख्यमंत्री से पूछना चाहता हूं कि यह जो छत्तीसगढ़ के दूरस्थ अंचल पर चर्चा हो रही है और जिनके नाम की वाहवाही लेकर सरकार बना है। अनुसूचित जाति और जनजाति के नाम से वोट लेना और उनके शासनकाल में मृत्यु होना, दिन प्रतिदिन मृत्यु होना, उनके इलाज के पर्याप्त प्रबंध नहीं होने से छत्तीसगढ़ के इस इलाकें में मृत्यु हो रही है। मैं माननीय मुख्यमंत्री का ध्यानाकर्षित करना चाहता हूं कि एक वह घटना थी।
    सभापति महोदय : प्रधानमंत्रीजी के बारे में जो कहा गया उसको रिकार्ड न किया जाये ।
    श्री गौरीशंकर बिसेन : सभापति महोदय, मैं चाहूंगा कि माननीय मुख्यमंत्रीजी को स्वयं मतरेंगा में जाकर जायजा लेना चाहिये और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों एवं महिलाओं के मृत्यु को रोकने का कोई उपाय होना चाहिए। यह मृत्यु किस समय हुई और जहां तक इलाज का प्रश्न है तो जो मौसम में परिवर्तन आया है, जब इस तरह की धटनाएं होती है तो वह गर्मी के मौसम में या बरसात के मौसम में होती हैं, जबकि मौसम में बदलाव आता हैं। सर्दी या ठंड के मौसम में इस तरह की घटनाएं नहीं होती है स्वास्थ्य मंत्रीजी ने स्वयं ने स्वीकार किया है कि वहां पर के और दस्तों से मृत्यु हुई हैं। इसमें कहीं न कहीं स्वास्थ्य विभाग की बहुत बडी त्रुटि हुई है। मैं आपके माध्यम से सरकार का ध्यानाकर्षित करना चाहता हूं कि इस स्वास्थ्य केन्द्र में कितने दिनों से डॉक्टर
‘‘आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया’’
नहीं है। मतरेंगा में डाक्टर की पोस्टिंग काफी समय से नहीं है,वहां पर स्थान रिक्त है और आदिवासियों का प्रापर ट्रीटमेन्ट नहीं हो रहा है। जिसके कारण यह हादसा हुआ है। मैं पुनः आपसे कहना चाहता हुं कि इस स्थगन को ग्राह्य करें। इसमें शासन की गलती हुई है, जिसके कारण यह हादसा हुआ है। यह सारी बातें सामने आएगी। इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूं कि आप इस स्थगन को ग्राह्य करें, जिससे इस सदन में चर्चा हो और सरकार की जो गलतियां है, उनके अधिकारियों की जो लापरवाही है,

    सभापति महोदय : यह तो रिपीटेशन हो रहा हैं ?

    श्री गौरीशंकर बिसेन : जो त्रुटिया की गई हैं, उनका पर्दाफश होगा और इस सरकार को कटघरे में खड़े होने से बचाया जा सकेगा, इसलिए आप इसे ग्राह्य करें और सदन में इस पर चर्चा होगी तब तम तमाम प्रमाण आपके सामने रखेगें।

    श्री कैलाश विजयवर्गीय (इंदौर-2) : सभापति महोदय, बहुत ही गंभीर मामला है। क्योंकि कोई जागरूक सदस्य यदि विधानसभा के अंदर ध्यानाकर्षण के माध्यम से सरकार का ध्यान-आकर्षित करता है कि सरगुजा जिले में उल्टी, दस्त के कारण मौतें हो रही है। 15 तारीख को ध्यानाकर्षण लगता है और 22 तारीख का उत्तर आता है और कहा जाता है कि अब किसी प्रकार की कोई बीमारियां वहां पर नहीं है, सभी स्वास्थ्य सुविधाएं वहां पर उपलब्ध करा दी गई है। लेकिन फिर 22 तारीख के बाद वहां पर मौतें होती हैं। सभापति महोदय, मैं स्वास्थ्य मंत्री का व्यक्तिगत् रूप से प्रशसक इसलिए था कि एक बार सरगुजा के सी. एम. ओ. को सस्पेंड करने का जवाब यही सदन में दिया था,त्वरित  कार्यवाही की गई थी, परंतु आज उनका जब उत्तर सुन रहा था तो बड़ी निराशा हुई। मैं सोच रहा था कि वह कहेंगे कि उन्होंने वहां के फला अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की है ? परंतु ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि इस सदन में जागरूक विधायकों द्वारा ध्यान आकर्षित करने के पश्चात् वहां पर लगातार एक के बाद एक मौतें हो रही हैं और स्वास्थ्य मंत्री अधिकारियों को बचा रहे है ?  मैं कारण जानना चाहता हूं कि आप उन्हें क्यों बचाना चाहते हैं ? यदि यहां पर ध्यानाकर्षण आने के बाद भी इस प्रदेश की जनता को समुचित लाभ नहीं मिलेगा तो हमारा यहां पर ध्यानाकर्षण लाने का मतलब क्या रहेगा। इसलिए मैं करबद्ध निवेदन करना चाहूंगा कि इस विषय पर इस स्थगन को आपको निश्चित रूप से स्वीकार करना चाहिए और ? (.........)
    सभापति महोदय : यह उचित नहीं है। यह विलोपित किया जाये ।

    श्री कैलाश विजयवर्गीय : मैं निवेदन करना चाहता हूं कि यह जो मौतें हो रही हैं, वहां स्वच्छ पानी और स्वास्थ्य सेवाएं आप उपलब्ध कराएं इस स्थगन को स्वीकार करें।

    श्री निर्भयसिंह पटेल  : आदिवासियों की मृत्यु हो रही है और विधायकगण मुख्यमंत्री को घेरे हुए है।
व्यवधान

    श्री बनवारीलाल  :  सभापति महोदय, इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर सदन में चर्चा हो रही हैं, इसे मुख्यमंत्री जी को सुनना चाहिए। अन्य कार्यों में व्यस्त न रहें। सदन में क्या हो रहा है, उसे सुनें ?

    श्री कैलाश विजयवर्गीय : मैं सभापति महोदय, मेरी बात पूरी नहीं हुई है।

    सभापति महोदय : आप बैठिये।

    श्री कैलाश विजयवर्गीय : मेरी बात पूरी हो जाने दें, ये संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं, हर विधायक को लालीपाप दिखाते हैं रसगुल्ला खिलाने का प्रामिस करते है। मैं कहना चाहता हूं कि राजनीति से ऊपर उठकर आप इस पर कार्यवाही करें। दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही करें।

    सभापति महोदय : मुख्यमंत्रीजी के इंदौर दौरे में आपने उन्हें रसगुल्ले खिलाए थे।
इस भाषण को माननीय सदस्य ने नहीं सुधारा विलोपित।
  

 डॉ. आई. एम. पी. वर्मा (मऊगंज) : सभापति महोदय, मैं इस स्थगन प्रस्ताव के बारे में निवेदन करना चाहता हूं कि यह इसलिए ग्राह्य किया जाय कि मंत्री महोदय ने सदन में जो उत्तर दिया है, उसमें 7 लोगों की मृत्यु और 31 लोग आंत्रशोध एवं 429 व्यक्ति पेचिश से पीड़ित हुए बताए हैं, जबकि जिला प्रशासन के जो आंकड़े है वह 212 मृत के हैं और 757 के पीड़ित होने के बताए हैं, यह तो जिला प्रशासन के घोषित आंकड़े हैं, लेकिन जो अघोषित आंकड़े है, जिसमें हमारा आदिवासी भाई अस्पताल तक नहीं पहुंचा, प्रायवेट डाक्टर से इलाज कराया, उनकी संख्या नहीं बताई गई है और हजारों लोग मृत हुए है। और कई हजार लोग इस महामारी से पीड़ित है। माननीय मंत्रीजी ने इस बात को स्वीकार किया है कि प्रत्येक गांव में 25 लोग पीड़ित है। हर जिले में करीब 400 से 500 गांव होते है। यदि एक गांव में 25 लोग पीड़ित है तो यह करीब साढ़े बारह हजार लोग हो जाते हैं। इसलिए मैं इसे ग्राह्य करने के लिए निवेदन कर रहा हूं। इसमें माननीय मंत्रीजी के उत्तर में व जिला प्रशासन के उत्तर में विरोधाभास आया है। अतः इस तरह के सारे तथ्यों को सामने लाने के लिए इसको स्वीकार करना अति आवश्यक है।
    (11.51 बजे अध्यक्ष महोदय (श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी ) पीठासीन हुए)
    माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें 24 ब्लाक हैं और इन 24 ब्लाकों में मृत व पीड़ित लोगों की जो संख्या है, अगर आप समय दे तो में बताना चाहता हूं। अंबिकापुर में मृतकों की संख्या 7 हैं तो पीड़ितों की संख्या 25 हैं। राजपुर में मृत 9 व पीड़ित 40 हैं, लुण्ड्रा में मृत 11 व पीड़ित 35, पाल में मृत 11 और पीड़ित 37 हैं, सीतापुरं में मृत 10 एवं पीड़ित 22 हैं, बतौली में मृत 3 और पीड़ित 5 हैं, जनकपुर में मृत 25 व पीड़ित 75 हैं, भरतपुर में मृत 9 पीड़ित 40 हैं, बैकुंठपुर में मृत 5 व पीड़ित 9 हैं, सूरजपुर मे मृत कोई नहीं है व पीड़ित 25 हैं, उदयपुर में मृत 28 व पीड़ित 107 हैं, लखनपुर में मृत 4 हैं व पीड़ित 8 हैं, प्रतापपुर में मृत 2 हैं व पीड़ित 6 हैं, बलरामपुर में मृत 11 एवं पीड़ित 36 हैं, प्रेमनगर में मृत 7 एवं पीड़ित 27 है, वाड्फनगर में मृत 22 एवं 96 पीड़ित हैं, मनेन्द्रगढ़ में मृत 2 एवं पीड़ित 7 हैं, रामचन्द्रपुर में मृत 6 एवं पीड़ित 24 हैं, श्रीनगर में मृत 2 एवं पीड़ित 13 हैं, खड़गंवा में मृत 6 एवं पीड़ित 23 हैं, यह आंकड़ा वहां के जिला प्रशासन का है और जिला प्रशासन ने इसे स्वीकार किया है। माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें स्वास्थ्य विभाग की गलती है। मैं डाक्टर होने के नाते इसमे महामारी के बारे में बताना चाहूंगा। यदि सयम रहते टीकाकरण, उपचार, जल शुद्धिकरण किया जाता तो महामारी नहीं फैलती।

    अध्यक्ष महोदय : इसमें बहस ग्राह्यता पर होती है कि उसे क्यों ग्राह्य किया जाए।

    डॉ. आई. एम. पी. वर्मा : अध्यक्ष महोदय, मैं ग्राह्यता पर ही बोल रहा हूं। मंत्री महोदय ने जो उत्तर दिया है और जिला प्रशासन का जो आंकड़ा है उन दोनों में भारी विरोधाभास है इसलिए तथ्यों की सही जानकारी के लिए इसे ग्राह्य करना अतिआवश्यक है।

    अध्यक्ष महोदय : माननीय सदस्यों से हमारा निवेदन यह है कि आज पहले दिन मांगों पर मतदान प्रारंभ होने वाला है। परंपरा यही रही है कि अब आज सूक्ष्म करें इसके बाद मांगों पर जरा ज्यादा बोल लेना तो अच्छा रहेगा।

    डॉ. आई. एम. पी. वर्मा : माननीय अध्यक्ष महोदय, आप स्वास्थ्य मंत्री रहे है। यह हजारों लोगों की मौत का सवाल हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि स्वास्थ्य  विभाग की जो लापरवाही है वह सहन करने लायक नहीं है। इसमें लोक स्वास्थ्य यांत्रिक विभाग द्वारा दूषित जल प्रदाय करने के कारण यह हुआ है। अतः इस विभाग के मंत्री महोदय व विभाग के अधिकारियो को इस दोष में शामिल करना चाहिए। अतः आंकड़ों में जो विरोधाभास है उसे देखते हुए इसे ग्राह्य करना चाहिए। मैं इतना ही कहना चाहता हूं।

    श्री रामलखन सिंह (रामपुर बघेलान) : माननीय अध्यक्ष महोदय, आज सदन मे सरगुजा जिले में आंत्रशोध एवं पेचिश से हुई मौत के बारे में ग्राह्यता के विषय में चर्चा हो रही है। मामला काफी संगीन है क्योंकि यह निरीह व गरीब लोगों से जुड़ा हुआ मामला है। यह आंत्रशोध की बीमारी कुपोषण के कारण हुई या उन्हें अच्छा पानी न मिलेने के कारण हुई। स्वास्थ्य मंत्री महोदय ने स्वीकार किया है कि सरगुजा जिले में पथरिंगा एवं उसके इलाके में आंत्रशोध की भंयकर बीमारी है। तीन तारीख से लगातार आज तक इस बीमारी से लोग पीड़ित हैं और मौत का सिलसिला जारी है। इसके बावजूद भी माननीय मंत्रीजी गलत जानकारी दे रहे हैं। अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय से यह कहना चाहता हूं कि किस तरह से अस्पतालों में पदस्थ डाक्टर
इस भाषण को माननीय सदस्य ने नहीं सुधारा।
लापरवाही करते हैं। यह मैने अपनी आंखों से देखा है इसलिए इन डाक्टर्स इन डाक्टर्स की लापरवाही के ऊपर अंकुश लगाया जाना चाहिए। 14 अप्रैल को एक्सीडेट हुआ। मैं इन्दौर में एम.वाय. हास्पिटल में भर्ती था। मेरे द्वारा यह कहने के बावजूद भी कि ‘‘मैं विधायक हूं’’ डाक्टर द्वारा बेरहमी से खटमल वाले बेड पर मुझे दाखिल किया गया।
 

   अध्यक्ष महोदय : यइ इससे संबंधित कहां हैं ?
 

    श्री रामलखन सिंह : माननीय अध्यक्ष महोदय, मामला काफी संगीन हं और छोटे-छोटे बच्चों की मौत से जुड़ा हुआ है। प्रदेश के मुख्यमंत्री कहते हैं कि इस प्रदेश की सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की सरकार है। और छोटे-छोटे अनुसूचित जाति जनजाति के बच्चे दवाईयां के अभाव में मर जायें, गन्दा पानी पीने से मर जायें, और डाक्टरों की समुचित रूप से व्यवस्था भी नहीं की जाये। यही नहीं, जिला प्रशासन की ओर से गलत जानकारी दी जाये। माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय से यह निवेदन करना चाहता हूं कि यह कोई अकेले सरगुजा का ही मामला नहीं है, सारे प्रदेश भर में यही हाल हो रहा है। चूंकि यह हमारा मध्यप्रदेश एक अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति बहुमूल्य प्रदेश हैं, और इस प्रदेश में अनेकों ऐसे जिले हैं जहां पर यहि हाल हो रहा हैं। यह तो संयोग से आज सरगुजा का मामला उजागर हो गया है और वहां की बात इस सदन मे लायी गयी है। मैं तो यही कहूंगा कि इस तरह की व्यवस्था प्रदेश के हर जिलों में ही व्याप्त है और इसलिए मैं आपके माध्यम से यही कहना चाहता हूं कि इसको आज चर्चा के लिये ग्राह्य कर लिया जाये और जो लापरवाही की गई हैं, उसकी इस सदन में बड़ी ही गम्भीरतापूर्वक चर्चा की जाये। यही कह कर अपनी बात को मैं समाप्त करता हूं।
 

    श्री कंकर मुंजारे (परसवाड़ा) : माननीय अध्यक्ष महोदय, आज एक बहुत ही गंभीर मामले पर हम लोग सदन में चर्चा कर रहे है। इतने लम्बे समय के गुजर जाने के बावजूद भी हम लोग आज पीने के शुद्ध पानी का इंतजाम नहीं कर सके हैं, यह उत्यन्त दुख एवं शर्म की बात हैं। चाहे यह सरकार रहे या वह सरकार रहे, चाहे कोई भी दल की सरकार हो, आदिवासियों के नाम पर आपने किया क्या है ? उनकी हालत यह हे कि वह गड्डे आदि का पानी पीने को मजबूर हैं आप उससे बचे नहीं, यह एक लज्जाजनक स्थिति है। मैं तो आपसे यही कहूंगा कि हमारी सरकार जरूर ही आयेगी, आप इन्तजार तो करें, धीरज रखे हमारी सरकार जरूर आयेगी। हां हम यह जरूर करेंगे कि इनको हम जेलों में नहीं भेजेंगे चाहे हमको यह जेल में भेजे। हम इनको जेलों में नहीं भेजेंगे। शुद्ध पीने के पानी का इंतजाम तक नहीं हो सका है। शहडोल, झाबआ, बस्तर, बालाघाट और मन्डला यह आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं, और यहां के लोग गड्डों, झिरिया और नालों से पानी पी रहे है। हालांकि उन लोगों की आवाजें यहां पर नहीं आ रही है, फिर भी यह बतलाना चाहता हूं कि वह पानी पीने से उनकी दिन प्रतिदिन मृत्यु हो रही है। इसलिये मेरा आपके माध्यम से यही निवेदन हैं कि आप इस बात को अवश्यक ही सुनिश्चित करिये कि उन लोगों को उनको मौलिक अधिकार अवश्य ही मिलें और पीने का पानी भी मिले चाहे आप उन लोगों को भोजन कपड़ा और खाना नहीं दे, परन्तु साफ पीने का पानी तो दे। आप लोग अनुसूचित जाति जनजाति के संबंध में आये दिन बहुत ही ढिंढोरा पीट रहे है, परन्तु आपकी कथनी और करनी में बहुत अधिक अंतर है। मेरा आपसे यही अनुरोध है कि इसको ग्राह्य करवाया जाकर चर्चा करवाई जाये, यह घटना जहां पर घटित हुई है, सरकार ने कोई भी मंत्री को नहीं भेजा हैं। मेरा यह अनुरोध है कि आप वहां पर एक टीम भेंजे और मृतक परिवार के लोगों को राहत राशि देने की कृपा करें, यह आवश्यक हैं।

    अध्यक्ष महोदय : माननीय सदस्य के विचार एवं शासन का वक्तव्य सुनने के पश्चात्....
 

    श्री विक्रम वर्मा (धार)  : अध्यक्ष महोदय, मैं थोड़ा सा आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूं मुझे पहले जरा सुन ले।यह एक बहुत ही गंभीर प्रश्न हैं, माननीय स्वास्थ्य मंत्री महोदय ने स्वयं ही इस बात को अपने वक्तव्य में स्वीकार किया है कि पन्द्रह लोगों की मृत्यु हुई हैं और सात बच्चों के संबंध में भी आंकड़े दिये हैं, परन्तु माननीय सदस्यों का यह कहना हैं कि चौबीस-पच्चीस लोगों की मृत्यु हुई हैं। एक बात निश्चित तौर पर तथ्य रूप में सामने आई है कि आंत्रशोध और इस बीमारी के कारण से ओर मंत्री महोदय के भी कथन के अनुसार पन्द्रह लोगों की मृत्यु निश्चित तौर पर हुई हैं, तथा सात बच्चों के आंकड़े भी है यह सभी अनुसूचित जाति जनजाति के है अर्थात् सरकार ने भी इसे स्वीकार किया है और इसीलिये सरकार के लिये यह निन्दा की बात है कि यह कोई भी व्यवस्था नहीं कर पाई है। मध्यप्रदेश की विधानसभा में ध्यान-आकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से यह प्रश्न बहुत ही पहले आ चुका था, मध्यप्रदेश की विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव प्राप्त होने के तत्काल बाद विभाग को जा चुका था। उसके बाद भी विभाग ने इस संबंध में कोई भी आवश्यक कदम नहीं उठायें आप देख ले माननीय मुख्यमंत्री जी, उस तारीख को ओर उस पूरी फाइल को देख लें, आपके यहां प्रस्ताव प्राप्त होने के दिनांक को देख ले कि उसके बाद कितने लोगों की मृत्यु होती चली गई ? इसके बाद भी मृत्यु हुई है। इसके पहले तो मान सकते है कि सूचना के अभाव में व्यवस्था नहीं कर पाए, लेकिन सूचना प्राप्त होने के बाद भी यदि मृत्यु हुई है तो इसके लिए पूरी तरह से विभाग के अधिकारी जिम्मेदार हैं, उनका इस तारीख में यह पत्र और विधानसभा की सूचना प्राप्त होने के बाद भी उन्होंने वहां जाकर सारे प्रिकाशन्स क्यों नहीं लिए, प्रत्येक क्षेत्र के गांव-गांव में व्यवस्था क्यों नहीं की। इसका सीधा मलतब है स्वास्थ्य विभाग अनुत्तरदायित्व पूर्ण विभाग है, वहां प्रशासन बिलकुल नहीं हैं, पूरी तरह से चिकित्सा विभाग इसके लिए वहां जिम्मेदार है, दूसरी बात इसमें स्वास्थ्य मंत्रीजी ने स्वीकार की है प्रत्येक गांव में औसत 27 व्यक्ति आज भी इस बीमारी से पीड़ित हैं।
 

    श्री अशोक राव : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने अपने जवाब में यह कहा है कि जिले में सामान्य रूप से आंत्रशोध और पेचिश से लोग पीड़ित अवश्य हुए है, परन्तु ऐसी कोई स्थिति नहीं हैं कि हजारों लोग मर चुके हैं और औसतन 25 व्यक्ति प्रत्येक गांव में उल्टी-दस्त से पीड़ित हैं, विक्रम वर्माजी ने जो कहा है उसको मैंने डिनाय किया हैं।
 

    श्री विक्रम वर्मा : माननीय अध्यक्ष महोदय, इसमें दो-तीन बाते और सामने आई हैं, ध्यान-आकर्षण प्रस्ताव में आपने स्वीकार किया है कि यह कहना सही नहीं नहीं कि ग्रामवासी गड्डे का पानी पी-पी कर के नारकीय जीवन जी रहे हैं, पैरेग्राफ 4 पढ़े, ग्रामवासी झिरिया बना कर पानी का उपयोग कर रहे है, यह ध्यान-आकर्षण प्रस्ताव के संबंध में आपके विभाग का उत्तर है। इस विधानसभा में आपने ही इसको पढ़ा है, आप पहली पंक्ति में डिनाय करते है कि ग्रामवासी गड्डे का गंदा पानी परी-पी कर नारकीय जीवन जी रहे है यह सही नहीं हैं। आप ही स्वीकार करते है कि ग्रामवासियों द्वारा झिरिया बना-बनाकर पानी का उपयोग किया जा रहा है। अब आप उसको गड्डे बोले या झिरिया बोले बात तो एक ही हैं। ऐसे अनेक गावं है जिनमें गड्डा बनाकर, इस प्रकार गड्डा खोदकर पानी पी रहे हैं। आपने स्वयं स्वीकार किया है कि ग्राम मतरेंगा के जिस पारे में यह घटना घटित हुई है उससे लगभग 1 कि.मी. की दूरी पर स्थित दूसरे पारे के हैंडपम्प में पर्याप्त पानी है, यह आपका शासकीय जवाब है। 
    माननीय सदस्य को कोरबा के विधायक है, वह स्वयं उस गांव में गए, आपका दूसरा सदस्य उस गांव में नहीं गया, न कोर्ह मंत्री गया, सिंचाई राज्यमंत्री के सामने यह घटना हुई, वह वापस चले आए, उसके बाद सरकार ने कोई वक्तव्य नहीं दिया, आज तक कोई आर्थिक सहायता नहीं दी गई, क्या उन्होंने मुख्यमंत्रीजी को इस बारे में रिपोर्ट दी, सिंचाई राज्यमंत्री की उपस्थिति में, उस गांव में उनके जाने के बाद बालक मरा था, उन्होंने मुख्यमंत्री जी को इस प्रकार की रिपोर्ट की है क्या ? इस प्रकार से जो संयुक्त जिम्मेदारी होती है मंत्री की, उसके हिसाब से तत्काल सूचना देकर माननीय मुख्यमंत्री को उस पर कार्यवाही करनी थी, तत्काल उनको वहां जाना चाहिए था, उस समय आप प्रदेश अध्यक्ष थे, उस जिले में प्रधानमंत्री को लाए। हम प्रधानमंत्री से अपेक्षा नहीं करते, लेकिन हम दिग्विजय सिंह से अपेक्षा करते हैं। कम से कम मुख्यमंत्री जी जहां आप 15 मौतें स्वीकार कर रहे हैं, इतने बच्चों की मौत हो जाए वहां आप न पहुंच पाए यह संवेदनहीनता का प्रतीक हैं।
    अध्यक्ष महोदय, इसमें दो बातें है, बीमारी से पीड़ित होना बताया हैं। आपने कह दिया कि हमने व्यवस्था कर दी पटवारी को निलंबित कर दिया एक सुरक्षा ग्राम सेवक को आपने निलंबित कर दिया, आपको बी.एम.ओ. को निलंबित करना चाहिए था, ब्लाक मेडिकल आफिसर की जिम्मेदारी है कि वह गांव में भ्रमण करे गावं में कैम्प लगाए, क्या वह वहां गए थे ? उनकी डायरी निकाल कर जरूर देखी जाए, लागबुक निकाल कर देखी जाए कि दौरे पर कब-कब गये। जब मालूम है कि इस प्रकार की परिस्थति पैदा होती है तो क्यों वहां पर भ्रमण नहीं किय गया है, आप छोटे से पटवारी पर शंका कर रहे हैं, उसको सस्पैंड कर रहे हैं, सस्पैंड आपको ब्लाक मेडिकल आफिसर को करना चाहिए था, उस पर कार्यवाही करनी चाहिए थी, ध्यान-आकर्षण सूचना के बाद यह अधिकारी की जिम्मेदारी थी कि वहां कैम्प लगायें जाते लेकिन उसके बाद भी यह नहीं हुआ, उसके बाद भी मौतें होती चली गई।
    अध्यक्ष महोदय, अभी मंत्रीजी को ओर प्रिकाशन लेना पड़ेगा, केवल उपचार करने से काम नहीं चलेगा, उपचार तो जो आपके यहां भर्ती होंगे या जो बीमारी से ग्रसित होंगे उनका आप उपचार करेंगे, लेकिन ये बीमारी जो गर्मी में गंदा पानी पीने से बढ़ रही है, उसके कारण आंत्रशोध बढ़ेगा इसलिए समुचित व्यवस्था, पेयजल शुद्ध मिले, कुपोषण न हो पाए उसके प्रिकाशन के बारे में आपको एक्शन-प्लान बनाना पड़ेगा। उसकी पूरी योजना बनाइये अन्यथा यह घटना और घटित होगी और यह सरकार के माथे पर कंलक लगेगा और निरंतर कंलक लगेगा इसलिए मेरा कहना है कि इसके बारे में चिंता पालिये।
 

   मुख्यमंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : अध्यक्ष महोदय, में माननीय सदस्यों की भावनाओं का आदर करता हूं और इस बात को महसूस करता हूं, सरकार स्वयं महसूस करती है कि यह समस्या वाकई मध्यप्रदेश में काफी गंभीर हैं, जितने गांव है और आदिवासी गांवों में जहां मंजरे, टोले, पारे अलग-अलग हैं वहां पेयजल की समस्या है इसको स्वीकार करना पड़ेगा और मैं स्वयं तथा हमारा शासन इस बात को बड़ी गंभीरता से ले रहा हैं, मैं आपको थोड़ी सी जानकारी और देना चाहता था कि गेस्ट्रो इन्ट्राइटिस से वर्ष 1991 के जनवरी माह में 13 मोतें हुई, 1994 में कुल 4, फरवरी  91 में 103 लोगों की मौत हुई, 1994 में कुल 8 लोगों की मौतें हुई। 1991 कि मार्च महीने में 106 मौत हुई, मार्च 94 में केवल 12 मौत हुई, काफी कमी आयी है और यह आंकड़े यह दर्शाते है हक इसके बारे में काफी सक्रियता से हम लोगों ने कार्य किया हैं, स्वास्थ्य मंत्री स्वयं उस गांव गये थे, डायरेक्टर, हेल्थ सर्विसेस वहां गये थे, पूरा प्रशासन उसमें लगा है और अध्यक्ष महोदय, हम लोगों ने यह तय किया है कि जिन क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं होती आयी हैं उन मंजरों, टोलों, पारों में जो ओ.आर.एस. का घोल होता हैं, इस घोल को यदि तत्काल दस्त होने वाले बच्चे को पिला दिया जाता है तो वह बच सकता हैं, इस घोल को हम बहुत बड़ी मात्रा में मंजरों, टोलों, पारों में तथा दुकानों पर इस घोल के पेकेट्स रखना चाहते हैं और इसका बहुत बड़ा कार्यक्रम हमने हाथ में लिया हैं, मैं आपके माध्यम से सदन के माननीय सदस्यों को यह आश्वस्त करना चाहा हूं कि हम लोगों ने इस मुद्दे को बड़ी गंभीरता से लिया है और यह हमारा प्रयास होगा कि इस प्रदेश में आने वाले दो तीन वर्षो में गेस्ट्रो इन्ट्राटिस से किसी भी बालक की मौत न हो, हम लोग बराबर इसका प्रयास कर रहे हैं।

    अध्यक्ष महोदय : माननीय सदस्यों के विचार और शासन का वक्तव्य सुनने के पश्चात् में इसको प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं देता।
बहिर्गमन
     समय 12.12 बजे
    नेता प्रतिपक्ष श्री विक्रम वर्मा के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सदस्यों द्वारा शासन के उत्तर के विरोध में सदन से
                                 बहिर्गमन

    श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, चूंकि आंकडों के द्वारा तथ्यों को छिपाने की कोशिश की गयी है इसलिए हम बहिर्गमन करते है।
    (नेता प्रतिपक्ष श्री विक्रम वर्मा के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों द्वारा शासन के उत्तर के विरोध में सदन से बहिर्गमन किया गया)
पत्रों का पटल पर रखा जाना
    समय 12.13 बजे
      मध्यप्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड, भोपाल की 15-वी वार्षिक रिपोर्ट वर्ष 1988-89
    राज्यमंत्री, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति (श्री रत्नेश सालोमन) : अध्यक्ष महोदय, मैं कम्पनीज एक्ट 1956 की धारा 619-क
इस भाषण को माननीय मुख्यमंत्री ने नहीं सुधारा
की उपधारा (3)(ख) की अपेक्षानुसार मध्यप्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड भोपाल की 15-वीं वार्षिक रिपोर्ट वर्ष 1988-89 पटल पर रखता हूं।

    मुख्यमुत्री (श्री दिग्विजय सिंह)  :  अध्यक्ष महोदय, यह भारतीय जनता पार्टी का बहिर्गमन किसके खिलाफ हैं ? खुद के परफारमेन्स के खिलाफ है या हमारे परफारमेन्स के खिलाफ हैं। इनके शासनकाल में 106 लोगों की मौत हुई और अब केवल 12 लोगों की मौत हुई हैं।
    बहिर्गमन
     समय 12.12 बजे
सदस्य सर्वश्री रामलखन शर्मा, कंकर मुंजारे तथा श्री बच्चन नायक द्वारा सदन नर्मदा घाटी परियोजना के विस्थापितों की समुचित व्यवस्था नहीं होने के विरोध में बहिर्गमन
    श्री रामलखन शर्मा : नर्मदा घाटी परियोजना से जो विस्थापित आदिवासी है उनकी व्यवस्थापन की कार्यवाही सरकार द्वारा न किये जाने के कारण, आज हजारों आदिवासी विधानसभा के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं, उनको मुआवजा, व्यवस्थापन तथा आवास की व्यवस्था न किये जाने के विरोध में हम लोग बहिर्गमन करते हैं।
      (सदस्य सर्वश्री रामलखन शर्मा, कंकर मुंजारे, बच्चन नायक द्वारा सदन से बहिर्गमन किया गया)