(65) दिनांक 18 मार्च 1994
अशासकीय संकल्प-पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनाया जाना।
मुख्यमंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : आदरणीय उपाध्यक्ष महोदय, मैं सदन के उन सभी माननीय सदस्यों का आभारी हूं जिन्होंने छत्तीसगढ़ पृथक राज्य बनाने के लिये अपना प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। यह वह क्षेत्र है जहां संत कबीर का भी स्थान है। गुरूघासीदास जी की भी कर्मभूमि रहा है और वल्लभाचार्य जी की जन्म स्थली रहा है। यह वह स्थान है जहां आजादी की लड़ाई लड़ी गयी। दलित, अछूत, दलित वर्गो के उत्थान और छुआछूत मिटाने के लिये पंडित सुन्दरलाल शर्म ने आंदोलन चलाया राजिम में और महात्मा गांधी ने स्वयं ने स्वीकार किया था दलितों की सेवा करने के लिये यदि मुझे किसी ने प्रेरणा दी है तो सुन्दरलाल शर्मा जी ने। मैं उनको अपना गुरू मानता हूं। वीर नारायण सिंह की गाथा कौन भूल सकता है। जिन्होंने अंग्रेजी राज के सामने आदिवासियों के हितों के लिये उनके शोषण के खिलाफ संघर्ष किया। उपाध्यक्ष महोदय, पंडित रविशकर शुक्ल, खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह अनेक ऐसे आजादी की लड़ाई के योद्धा रहे है। इन्होंने अपना काम करते हुए अंग्रेजों से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने लड़ाई लड़ी और अपना योगदान दिया। नैसर्गिक साधनों के मामले मे आप देखिए यहां पर कोयले का भरपूर भण्डार है, बाक्साइट है, लोहा है, टीन है, कोरेन्डम है, और देवभोग क्षेत्र में हीरे की खदानें पाई गई हैं। अलैक्जेंडर की खदानें पाई गई हैं। इससे आने वाले वर्षों में अभूतपूर्व सम्भावनाएं हैं। जहां हंसदेव बांगों, महानदी, इद्रवती शिवनाथ जैसी नदियां हैं जिनका दोहन भरपूर नहीं हो पाया, आज भी वहां भरपूर संभावना है। ऐसो नैसर्गिक साधनों से भरपूर क्षेत्र के लिये पूर्व की सरकारों ने कोई सही कार्य नहीं किया। यह भी अजीबो-गरीब हाल है कि जब-जब गैर कांग्रेसी पार्टी की सरकार आई है तब-तब छत्तीसगढ़ राज्य की मांग बढ़ी है। उसका मूलभूत कारण यह है कि गैर कांग्रेसी सरकारों ने छत्तीसगढ़ के साथ् अन्याय किया है और छत्तीसगढ़ की सम्भावनाओं को दर किनार किया है। यहां पर राजनीतिक महत्व को क्षीण किया है। वहां के लोगों के विकास को क्षीण किया है। यही कारण है कि जब-जब गैर कांग्रेसी सरकार आई है तब-तब इसकी मांग बढ़ी है और कांग्रेस सरकार जब-जब आई है तो वह छत्तीसगढ़ की मूल भावनाओं के साथ जुड़ी हुई है। ऐसी सरकार जो छत्तीसगढ़ के विकास के सभी साधनों के दोहन के लिये संकल्पित हो, इस बात को आप सभी लोग जानते हैं। वहां का राजनीतिक स्वरूप, वहां की कला, संस्कृति लिटरेचर अपने आप में अभूतपूर्व है। इसलिए आज की परिस्थितियों में यह आवश्यक है कि इस बारे में विचार किया जाये। केन्द्रीयकरण की आज जो व्यवस्था है और यह मांग इसलिए उठती है कि हमारी व्यवस्था पूरी तरह से केन्द्रीयकृत है। आज की आवश्यकता है कि हम हमारे प्रशासन तंत्र को विकेन्द्रीकृत करें। गांवों की समस्या गांव में निबटायें, ब्लाक की समस्या ब्लाक में निबटायें, जिले की समस्या को जिले में निबटायें। इसलिये अपने आप में यह मांग जायज है। आज की आवश्यकता यह है कि ज्यादा से ज्यादा अधिकार हमारी चुनी हुई पंचायतों, नगरपालिका और नगर निगमों कों दें तो जनप्रतिनिधियों के अनुरूप वहां काम होने लगेगा। आज हमारी कोशिश भी है कि आदिवासी क्षेत्रों में हम संविधान के छठवीं अनुसूची को वहां लागू करें। आदिवासियों के जनजीवन को कैसे विकास की धारा में जोड़ा जाये, यह जवाबदारी वहां के आदिवासियों पर डाली जाए, इस बारे में हम लोगों ने चर्चा प्रारंभ की है। हम चाहते हैं कि मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में संविधान की छठवीं अनुसूची को लागू करें, ताकि वहां के आदिवासियों को अपना न केवल रहने का हक तो हो ही बल्कि स्वयं का कानून बनाने का हक भी मिले। भाग्य विधाता बन सकें, योजना बना सकें, इसके प्रयास चालू कर दिये हैं। हालांकि आज की परिस्थिति में केन्द्र सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन नहीं किया है लेकिन हमारी हमेशा यह मांग रही है, हमारा यह पक्ष रहा है कि वहां की जन भावनाओं के अनुकूल हमें निर्णय लेना पड़ेगा । इसलिए हम माननीय प्रधानमंत्री जी की भावनाओं का आदर करते हुए कि उन्होंने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में जो कुछ कहा है, वह अपनी जगह सही है। इसलिए हम अनुरोध करते हैं कि जब भी राज्य पुनर्गठन आयोग बनें, हम छत्तीसगढ़ की भावनाओं का आदर करते हुए, मध्यप्रदेश शासन पूरी पहल करेगा, ऐसी मैं आशा करता हूं। धन्यवाद।
उपाध्यक्ष महोदय : प्रश्न यह है कि सदन का यह मत है कि मध्यप्रदेश के विस्तृत क्षेत्र, भाषा, संस्कृति परम्पराएं, कानून-व्यवस्था तथा जनता की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए छत्तीसगढ़ क्षेत्र को अलग कर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनाये जाने की शासन आवश्यक पहल प्रांरभ करें।