दिनांक 19.09.1981
मध्यप्रदेश के कई जिलों/ग्रामों में बीमारी से पशुओं की मृत्यु होने के संबंध में।
परिशिष्ट क्रमांक ‘‘29’’
कृषि मंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : अध्यक्ष महोदय, प्राप्त जानकारी के अनुसार स्थिति यह है कि दिनांक 25-8-81 को डा॰ मरखेडकर ने पशु चिकित्सालय बासोदा के पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायक को सूचित किया कि उनके ग्राम में पशु बीमारी चल रही है, जिससे उनके पांच पशुओं की मृत्यु हो चुकी है। सूचना प्राप्त होते ही पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायक, बासोदा ग्राम सोमवारा में दिनांक 26-8-81 को गये तथा यह पाया कि ग्राम में कुल सात पशुओं की संभवतः घटसर्प बीमारी से मृत्यु हुई। इनमें से पांच पशु डा॰ मरखेडकर के तथा दो पशु अन्य व्यक्तियों के थे। पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायक ने ग्राम के पशुधन का निरीक्षण किया तथा उपरोक्त अवसर पर दो, अन्य पशु बीमार पाये जिनका उन्होंने उपचार किया। लक्षणों के आधार पर पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायक ने 233 पशुओं को प्रतिबन्धात्मक टीकाकरण किया। इस ग्राम की पशु संख्या लगभग 800 है। अन्य लोगों से भी टीकाकरण हेतु पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायक ने अनुरोध किया परन्तु कई लोग टीकाकरण के लिये सहमत नहीं हुए। पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायक के सहायक के पास पर्याप्त मात्रा में टीका द्रव्य एवं औषधियां उपलब्ध थीं। अतः यह आरोप कि औषधियों का अभाव था सत्य नहीं है । पशु चिकित्सा क्षेत्र के पहुचने बाद डा॰ मरखेडकर के कोई भी पशु किसी बीमारी से ग्रस्त नहीं हुए और न किसी पशु की मृत्यु हुई है। इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि ग्राम सोमवारा से निकटस्थ पशु औषधालय गैरवास हैं। जो इस ग्राम से लगभग आठ किलोमीटर दूर है परन्तु किसी भी ग्रामवासी ने इस निकटतम पशु औषधालय में ग्राम में चल रही पशु बीमारी और इससे होने वाली पशु मृत्यु के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं दी जिससे विभाग में कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों की इस ग्राम में हुई पशु बीमारी एवं मृत्यु की जानकारी तत्काल प्राप्त नहीं हो सकी। ग्राम मरखेड़ा में भी पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी दिनांक 6-9-81 को गये परन्तु मरखेड़ा ग्राम में न ही कोई वर्तमान में बीमारी चल रही है न पूर्व में बीमारी थी तथा न किसी विशेष पशु बीमारी से ग्रामवासी के पशुओं की मृत्यु हुई, अतः इसमें पशुओं की मृत्यु सम्बन्धी शिकायत गलत प्रतीत होती हैं।
सीधी जिला के अन्तर्गत विकासखण्ड बैढ़न, देवसर, सिंहावल, रायपुर, नैकिन, मझौली एवं चितरंगी में लगभग 20 दिनों से मुहपका एवं खुरपका बीमारी चल रही है। इससे अभी तक लगभग 40 ग्राम प्रभावित होने की सूचना प्राप्त हुई है। दिनांक 6-9-81 एवं 7-9-81 को संयुक्त संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं रीवा संभाग रीवा एवं उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं (डी. पी. ए. पी.) सीधी के द्वारा विकास खण्ड रायपुर नैकिन, सीधी, सिंहावल, देवसर, बैढ़न एवं मझौली विकासखण्डों का भ्रमण किया जाकर ग्राम-वासियों से सम्पर्क स्थापित किया तथा अधीनस्थ पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ, पशु चिकित्सा क्षेत्र सहायकों को आवश्यक उपचार एवं रोकथाम की कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया गया। भ्रमण के अवसर पर यह पाया गया कि यह बीमारी गाय, बैल, भैंस में हैं। तथा बकरियों में नहीं है। उल्लेखनीय है कि अभी तक जिन 40 ग्रामों में इस बीमारी के उद्भेद होने की सूचना प्राप्त हुई है इसमें केवल 1417 पशु ही ग्रसित पाये गये हैं, जिनका कि उपचार किया गया है। विभिन्न मौसमी पशु बीमारियों की रोकथाम हेतु विभाग द्वारा सीधी जिले में अप्रैल 1981 से अब तक 55470 पशुओं का उपचार किया गया तथा 66832 पशुओं में घटसर्प 7732 तिलमन एवं 39755 पशुओं में एकटी गया के प्रतिबन्धात्मक टीके लगाये गये। विलम्ब से सूचना प्राप्त होने के कारण पशु बीमारी के उपचार के रोकथाम के लिये विलम्ब होता हैं। ग्रामवासियों द्वारा निकटतम पशु चिकित्सालय एवं पशु औषधालय में सूचना न करते हुए जिलाध्यक्ष को बीमारी की सूचना दी गई, तद्नुसार जिलाध्यक्ष सीधी के माध्यम से दिनांक 21-8-81, 27-8-81 एवं 29-8-81 को मुंहपका बीमारी की सूचना सिहावल, चितरंगी, विकासखण्ड के कुछ ग्राम की प्राप्त हुई। इस बीमारी की रोकथाम हेतु विभागीय कर्मचारियों को निर्देशित किया जा चुका है तथा इस हेतु आवश्यक औषधियां एवं कर्मचारियों को इन ग्रामों में भेजा जा चुका हैं।
सरगुजा जिले में अप्रैल 1981 से 31-8-81 तक पशुओं की विभिन्न संक्रामक बीमारियों जैसे मातामहामारी, घटसर्प चुरका, छड़ तथा खुरहा के प्रभावित ग्रामों में 1,16,292 प्रतिबन्धात्मक टीकाकरण का कार्य किया गया। 12 उद्भेद अभिलेखित किये गये, जिनमें 266 पशु पीड़ित हुए तथा 82 पशुओं की मृत्यु हुई। अतः ध्यान आकर्षण सूचना में जो उल्लेख किया गया है कि खुरहा, चुरका तथा संक्रामक बीमारियों के भंयकर प्रकोप के कारण हजारों पशुओं की मृत्यु हो गई। सत्य प्रतीत नहीं होती, इस सम्बन्ध में यह उल्लेख किया जाना उचित होगा कि गर्मी में सरगुजा जिले में पर्याप्त चारे का आभाव रहा जिसके कारण पशु कमजोर हो गये इसके साथ ही साथ दुर्भाग्यवश जिलें में विशेषकर मेनपाट क्षेत्र में दिनांक 21-6-81 से 26-6-81 तक अत्यधिक वर्षा, तूफान आदि के कारण तथा पशु पालकों के पास पशुओं को रखने के लिये पशुगृह नहीं होने के कारण पशुओं को खुले मैदान में रखने से पशुओं में कमजोरी तथा जीने की क्षमता कम हो जाने से लगभग दो हजार पशुओं की मृत्यु हुई। प्राकृतिक विपदा से निर्मित आपात स्थिति से निपटने में विभाग के सभी स्तर के अधिकारियों द्वारा भ्रमण कर पशुओं का उपचार किया गया तथा संक्रामक पशु बीमारी का प्रकोप नहीं हो, इसलिये प्रतिबन्धात्मक टीकाकरण आदि की व्यवस्था की गई इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि सरगुजा जिले में अप्रैल 1981 से अगस्त 19981 तक मातामहामारी के 10,012 घटसर्प के 47,193 चुरका के 30,006 छड़ के 24,656 तथा खुरपका, मुहपका के 34 टीकाकरण किये गये।
छत्तीसगढ़ के बसना, पिथोरा क्षेत्र में खुरहा, चपका बीमारी के दो प्रकोप जून-जुलाई 1981 में हुये थे। जिसकें फलस्वरूप पिथोरा विकासखण्ड में 186 तथा बसना विकासखण्ड में 133 पशु ग्रसित हुये थे। पशु चिकित्सा विभाग द्वारा इनका उपचार किया गया। सक्रिय कार्यवाही के फलस्वरूप इस बीमारी का प्रकोप काफी समय पूर्व ही शान्त हो गया था। लेकिन कुछ पशुओं के खुरहों में घाव हो जाने तथा वर्षा ऋतु होने के कारण घाव में कीड़े आदि पड़ गये थे। आवश्यक उपचार की व्यवस्था कर दी गई हैं। वर्तमान में बसना एवं पिथौरा विकासखण्ड में खुरहा, चपका का कोई प्रकोप नहीं है। रायपुर संभाग में दो उद्भेदों को छोड़कर रायपुर दुर्ग, राजनांदगांव, एवं बस्तर जिले में खुरहा, चपका का कोई उद्भेद नहीं है। खुरहा, चपका बीमारी से ग्रसित पशुओं की रायपुर संभाग में मृत्यु संख्या काफी अल्प है। अतः यह कहना कि खुरहा, चपका बीमारी से काफी संख्या में पशुओं की मृत्यु हुई, सत्य नहीं हैं। जहां तक छत्तीसगढ़ अंचल के बिलासपुर संभाग का प्रश्न है खुरहा, चपका बीमारी के संभाग में वर्ष 1981-82 में दिनांक 31-8-81 तक 27 उद्भेद हुये। जिनमें 767 पशु पीड़ित हुये तथा जिनके तुरन्त उपचार की व्यवस्था की गई। केवल 5 पशुओं की मृत्यु अभिलेखित की गई। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ सहित समस्त जिलों में अप्रैल 81 से अगस्त 81 तक बीमारियों की रोकथाम हेतु मातामहामारी के 395051, घटसर्प के 624129, चुरका के 271070, छड़के 149180, मुहपका खुरपका के 3345 इस प्रकार कुल 14,42,775 प्रतिबन्धात्मक टीके लगाये गयें।
उपयुक्त स्थिति से यह स्पष्ट होगा कि शासन प्रदेश के विभिन्न जिलों में फैली पशुओं की बीमारियों की समस्या से पूरी तरह सजग है, तथा बीमारी पर काबू पाने के लिये समस्त सम्बधित अधिकारियों को निर्देशित कर दिया गया हैं। दवाईयों का पर्याप्त स्टाक उपलब्ध है एवं उनके द्वारा प्रभावशाली कार्यवाही की जा रही हैं। शासन द्वारा की जा रही कार्यवाही से ग्रामीण सन्तुष्ट हैं एवं उनमें कहीं भी भय या रोष का प्रश्न नहीं हैं।