Digvijaya Singh
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14 दिसम्बर 1982 वारना सोनखेड़ी जलाशय योजना

14 दिसम्बर 1982 वारना सोनखेड़ी जलाशय योजना

दिनांक 14.12.1982


वारना-सोनखेड़ी जलाशय योजना की जांच के परिणाम


    डा॰ परशुराम साहू : क्या वृहद तथा मध्यम सिंचाई मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मा. मुख्य मंत्री के आदेश द्वारा वारना-सोनखेड़ी जलाशय योजना की जांच का प्रकरण कब से प्रारम्भ किया गया ? (ख) जांच आयोग की रिपोर्ट शासन को कब प्राप्त हुई ? इस रिपोर्ट में कौन-कौन से तथ्य सामने आये हैं ? तथा कौन कौन अधिकारी दोषी पाये गये ?
    वृहद तथा मध्यम सिंचाई मंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : वारना एवं सोनखेड़ी जलाशय योजना की जांच का प्रकरण क्रमशः दिनांक 20-5-81 एवं दिनांक 21-8-81 से प्रारम्भ किया गया, (ख) जांच आयोग रिपोर्ट क्रमशः 4-9-81 एवं दिनांक 29-3-82 शासन को प्राप्त हुई। वारना एवं सोनखेड़ी जांच आयोग की रिपोर्ट शासन के परीक्षणाधीन है। शासन के निर्णय के पश्चात इसकें तथ्य एवं दोषी अधिकारियों के विषय में बताना सम्भव होगा।

    डा॰ परशुराम साहू : माननीय अध्यक्ष महोदय, जांच आयोग की रिपोर्ट शासन को कब प्राप्त हुई, किस रिपोर्ट में कौन-कौन से तथ्य सामने आये वे कौन-कौन से अधिकारी दोषी पाये गये ? इस प्रश्न का शासन ने उत्तर दिया है जांच आयोग रिपोर्ट क्रमशः दिनांक 4-9-81 एवं दिनांक 29-3-82 को शासन को प्राप्त हुई। श्रीमान इतना समय व्यतीत हो गया, सन् 1981 में और मार्च, 1982 में जांच की रिपोर्ट प्राप्त हो गई इसके बाद भी श्रीमान मंत्री जी यह तय नहीं कर पाए कि दोषी कौन है और क्या कार्यवाही की जा रही है और वह रिपोर्ट भी अभी विचाराधीन है इसका क्या कारण है और कब तक रिपोर्ट प्रस्तुत कर देंगे ?

    श्री दिग्विजय सिंह : माननीय अध्यक्ष महोदय वारना तथा सोनखेंड़ी तालाबों के व बांधों के बारे में मंत्री परिसद ने एक जांच समिति व एक जांच आयोग बनाया था दोनों की रिपोर्ट 4-9-81, 29-3-82 को आई जहां तक वारना जांच आयोग का प्रश्न हैं मंत्रि मण्डल के सामने पेश हुई जिसने एक उप समिति बनाई जिसने इसका परीक्षण किया और इसके पश्चात 30-9-82 को मंत्रिपरिषद ने यह निर्णय लिया है कि इसमें जितने रचनात्मक सुझाव थे स्वीकार किये गये है और जितने निर्णायक सुझाव थे उसके बारे में विधि विभाग से राय मांगने के लिये मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया है। विधि विभाग की राय आने के बाद निर्णय लिया जायेगा। जहांतक सोनखेड़ी तालाब का प्रश्न है इसमें न तो रिपोर्ट इसकी मार्च में आई वैधानिक पहलू भी उत्पन्न हुआ है इसका परीक्षण करा रहे हैं। विधि विभाग से राय ले रहे हैं शीघ्र निर्णय लेंगे।

    डा॰ परशुराम साहू : माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री महोदय ये स्पष्ट नहीं कर पाए कि आप कहते हैं कि शीघ्र निर्णय लेंगे उसकी लिमिट बता दें कि इतने समय के बाद इस माह में कम से कम रिपोर्ट आ जायगी यह प्रश्न असंतोष जनक है आपका उत्तर स्पस्ट कर दें दोनों महत्वपूर्ण जांच थी सोनखेड़ी व वारना जलाशय की। इतना बिलम्व लगाया, इसमें भी आपत्ति है सदन को भी आपत्ति हैं।

    अध्यक्ष महोदय : आपकी आपत्ति समझ में आयी पर सदन को आपत्ति है यह आप कैसे कह सकते हैं ?

    डा॰ परशुराम साहू : सदन का अंग होने के कारण कह रहा हूं।

    कु॰ विमला वर्मा : प्रश्न ही संतोष जनक है ऐसा माननीय सदस्य कह रहे हैं।

    डा॰ परशुराम साहू : कितने समय में निर्णय लेंगे कोई टाइम लिमिट बता दें।

    श्री दिग्विजय सिंह : मैं माननीय सदस्य की भावना का आदर करता हूं अतिशीघ्र निर्णय लेंगे।

    श्री विक्रम वर्मा : माननीय अध्यक्ष महोदय जैसा कि माननीय मंत्री जी ने बताया 4-9-82 को वारना का रिपोर्ट प्राप्त हो गई थी माह सितम्बर 82 में मंत्री मंडल-समिति ने विचार करके कुछ तथ्यों को स्वीकार कर लिया। कुछ के लिए विधि विभाग से राय मांगी है। प्रश्न उपस्थित होता है कि यह प्रश्न 4-9-82 के पहले पूछा गया और 4-9-82 करे मंत्रीमण्डल ने जो निर्णय लिया था सारी स्थिति स्पष्ट नहीं है। कौन-कौन से मुद्दे शासन ने स्वीकार किये। जब मंत्री मण्डल के समक्ष प्रश्न आ गया तो कौन-कौन से रचनात्मक सुझाव थे जो स्वीकार किये गये, बताने का कष्ट करें। किन-किन मुद्दों पर विधि विभाग की राय मांगी गई है, ये भी बताने का कष्ट करें। 

    श्री दिग्विजय सिंह : जो सुझाव शासन ने स्वीकार किये वे मुद्दे इस प्रकार हैं :-
बड़े बाँधो के संधारण एवं रख-रखाव के लिये सिंचाई विभाग में डेम सेफ्टी और गीनीजेशन गठित की जावे जिसकी कार्य प्रणाली केन्द्रीय जल आयोग में गठित डेमसेफ्टी आरगनेजेशन के अनुसार हो एवं सिंचाई विभाग द्वारा गठित यह आरगीनेजेशन केन्द्रीय जल आयोग के साथ-साथ आवश्यक सम्पर्क करें।
यह आवश्यक है कि सिंचाई विभाग में कार्यरत सभी अधिकारियों को न केवल निर्माण का, सर्वेक्षण, रूपांकन तथा रिसर्च का अनुभव हो। इस उद्देश्य की पूर्ति पूरी तरह परिपालन करने हेतु सिंचाई विभाग के विभिन्न स्तरों के भर्ती नियम में ऐसा संशोधन किया जावे यह मान लिया गया।

    एक माननीय सदस्य : अध्यक्ष महोदय माननीय सदस्य पढ़ कर सुना रहे हैं ?

    श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, जानकारी मुझे देना है यह कहां लिखा है कि बिना पढत्रे जानकारी दी जावे। (हंसी)

    अध्यक्ष महोदय : जानकारी वही दी जाती है जो लिखी होती है, हां लिखता कौन है यह सवाल अलग है, (हंसी)

    श्री सुन्दर लाल पटवा : अध्यक्ष महोदय, मंत्री जी इस प्रकार से पढ़ रहे हैं जैसे इससे पहले पढ़ा ही नहीं आज पहली वार पढ़ रहे हों। (हंसी)

    श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, आपत्ति किस बात पर हो रही हैं ? आपने जानकारी जो चाही है मिल रही है, इससे आपको मतलब होना चाहिये। पहले पढ़ा अथवा नहीं, इससे क्या मतलब ?

    कुमारी विमला वर्मा : अध्यक्ष महोदय, विपक्ष के नेताजी क्या यह चाहते हैं कि मंत्री जी जस्टिस कृष्झान की जो रिपोर्ट है वह पढ़ कर न सुनायें अपने मन से सुना दें।

    श्री विक्रम वर्मा : विमला जी, आप तो तीन से पांचवे पर आ गई। (हंसी)

    कुमारी विमला वर्मा : अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य को गिनना भी नहीं आता। हमारे यहां यह तीन-पांच नहीं चलता। आप ही तीन-पांच चला रहे हैं। (हंसी)

    श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, आगे उनका सुझाव है ‘‘ किसी अधिकारी को पदोन्नति की पात्रता तब हो जब उसने कुछ निश्चित समय रूपांकन अथवा रिसर्च सर्वेक्षण में कार्य किया हो’’ इसके लिये निम्नानुसार सुझाव दिये जाते हैं।

    अध्यक्ष महोदय : यह तो बहुत अधिक मैटर है, आप कृपया पटल पर रख दीजिये।

     श्री मथुरा प्रसाद दुबे : मैं माननीय मंत्री जी से यह जानना चाहता हूं कि कितने आरोप हैं और कौन-कौन से हैं ?

    श्री दिग्विजय सिंह : जांच आयोग के सामने जो मुद्दे रखे गये थे वह इस प्रकार हैं  :- वे पिरस्थितियां जिनमें तथा वे कारण जिनकी वजह से वारना बांध में अत्यधिक रिसन हुआ है उसकी योजना रूपांकन (डिजायनिंग) से निर्माण तथा अनुरक्षण में की अन्य त्रुटियां, यदि कोई परिलक्षित करना। उक्त बांध की त्रुटिपूर्ण योजना, रूपांकन से निर्माण तथा या अनुरक्षण, यदि कोई हो, के लिये उत्तरदायित्व का नियत किया जाना तथा उसका विभाजन। इस बात के लिये टर्मस् आफ रिफ्रेन्स तय की गई थी।

    श्री सुन्दरलाल पटवा : अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री जी यह बताने का कष्ट करें कि निर्माण के समय जो निरीक्षण की व्यवस्था थी वह दोषपूर्ण थी और इसी दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण डेम में लीकेज हुआ ? क्या जांच के समय शासन द्वारा पैरवी की व्यवस्था की गई ? क्या यह सही है कि जांच की रिपोर्ट में किसी अधिकारी को दोषों माना है और उसकी जावबदारी फिक्स की हैं ?

    श्री दिग्विजय सिंह : जो माननीय सदस्य कह रहें हैं वह सत्य नहीं है। जांच आयोग के समक्ष पूर्ण रूप से शासन का पक्ष रखा गया और कृष्णन साहब ने सारे तथ्यों पर विचार कर.....

    अध्यक्ष महोदय : माननीय सदस्य यह पूछ रहे हैं कि क्या जांच आयोग ने किसी भी व्यक्ति् को दोषी माना ?

    श्री दिग्विजय सिंह : जी नहीं, दोषी नहीं माना।

    श्री सुन्दरलाल पटवा : अध्यक्ष महोदय, मेरा बड़ा स्पष्ट प्रश्न हैं ? मैं यह जानना चाहता हूं कि टर्मस आफ रिफरेन्स में जो जांच व्यवस्था की थी उसमें यह बताया गया था कि जो निमार्ण कार्य के समय निरीक्षण की व्यवस्था तथा जो स्पेसीफिकेशन हैं उसके अनुसार समय-समय पर निरीक्षण नहीं हुआ और उस समय ऐसी उचित व्यवस्था न होने के कारण ही निर्माण दोषपूर्ण हुआ और इसी कारण लीकेज हुआ यह जांच में साबित कर पाये....

    श्री दिग्विजय सिंह : यह कतई सही नहीं हैं जांच आयोग में वाटर कमीशन के दो वृहद अनुभव रखने वाले असेसर (पर्यवेक्षकों) को भी नियुक्त किया गया था श्री देवस्कर और डा॰ कंवर सेन दोनों को शासन की ओर से नियुक्ति किया गया। इन्होंने हर पहलू पर शासन का पक्ष कृष्णन साहब के सामने रखा। यह कहना बिल्कुल सही नहीं है कि शासन अपना पक्ष अच्छी तरह से रख नहीं पाया।

    श्री विक्रम वर्मा : इन्होंने अभी कहा कि किसी को व्यक्तिगत रूप से दोषी नहीं माना गया और इनके उत्तर में लिखा है कि निर्णय के पश्चात् इसके तथ्य एवं दोषी अधिकारियों के विषय में बताना संभव होगा। क्या शासन ने निर्णय ले लिया है ?

    श्री दिग्विजय सिंह : मैं आपको इस बारे में बताना चाहता हूं कि अभी परीक्षण किया जा रहा है, निर्णय नहीं किया गया।

    श्री चित्रकांत जायसवाल : अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से मंत्री महोदय से जानना चाहता हूं इन दोनों योजनाओं पर शासन ने जांच आयोग बैठानें का निर्णय लिया। इसका मतलब यह है कि प्राइमाफेंसी केस सिद्ध हो गया होगा तभी जांच आयोग का गठन किया गया। तब से अब तक उन संबंधित अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई, बतायेंगे ?

    श्री दिग्विजय सिंह : माननीय अध्यक्ष महोदय, मंत्री मण्डल की उप समिति के सामने यह निर्णय लिया गया था जांच कमेटी और जांच आयोग बैठाना हैं। उस समय कुछ अधिकारियों को निलम्बित किया गया था लेकिन उसके बाद ऐसे तथ्य सामने नहीं आये जिससे उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती हो। इसलिये उनको बहाल कर दिया गया।

    श्री विक्रम वर्मा : पूरे तीन साल इन्होंने एक ही काम किया है। सस्पेंड कर दिया है फिर वहाल कर दिया है।

    एक माननीय सदस्य : क्या माननीय मंत्री जी के पास ऐसी जानकारी है कि जो दोषी पाये गये हैं उनके नाम दिये जांय ?

    अध्यक्ष महोदय : जवाब आ चुका हैं।

    श्री निर्भय सिंह पटेल : जिन कर्मचारियों व अधिकारियों को निलम्बित किया है उन अधिकारियों के लिखाफ जांच आयोग ने रिपोर्ट उनके पक्ष में दी है या उनको तीन माह का शोकाज नोटिस मिल गया या आर्थिक दृष्टि से कोई संरक्षण मिलने के कारण बहाल किया गया?

    श्री दिग्विजय सिंह : जहां तक वारना जांच आयोग का प्रश्न है जस्टिस कृष्णन ने किसी भी अधिकारी को दोषी नहीं पाया हैं और किसी के खिलाफ कार्यवाही करने का सवाल ही नहीं।