(137) दिनांक 20 फरवरी 1995
स्थगन प्रस्ताव -पुलिस अधीक्षक सागर द्वारा एक व्यक्ति की लाश को चौराहे पर टांगकर उसका प्रदर्शन
अध्यक्ष महोदय : मेरे पास सागर के पुलिस अधीक्षक द्वारा एक व्यक्ति की लाश चौराहे पर टांग कर उसका प्रदर्शन कराए जाने के संबंध में स्थगन प्रस्ताव की छः सूचनाएं प्राप्त हुई हैं :-
पहली सूचना : सर्वश्री भूपेन्द्र सिंह, डॉ. गौरीशंकर शेजवार, प्रेमप्रकाश पाण्डेय
दुसरी सूचना : श्री बच्चन नायक
तीसरी सूचना : श्री कंकर मुंजार
चौथी सूचना : श्री निर्भय सिंह पटेल
पांचवी सूचना : श्रीमती सुधा जैन, सर्वश्री ईश्वरदास रोहाणी, थावरचन्द गेहलोत
छटवीं सूचना : श्री गोपाल भार्गव
सदस्य की हैं
चूंकि सर्वश्री भूपेन्द्र सिंह, डॉ. गौरीशंकर शेजवार, प्रेमप्रकाश पाण्डेय, सदस्य की ओर से स्थगन प्रस्ताव की सूचना पहले प्राप्त हुई हें, अतः मैं उसे पढ़कर सुनाता हूं -
दिनांक 30-12-94 को पुलिस अधीक्षक, सागर ने एक मृत व्यक्ति की लाश को चौराहे पर टांग कर कानून को बलाएताक रखते हुए, मानव अधिकारों का उल्लंघन किया है तथा माननीय संवदेना के प्रति क्रूरतम व्यवहार का प्रदर्शन किया हैं।
दिनांक 30 दिसंबर को पुलिस गोली चालन से राहतगढ़ थाने के ग्राम बेरखेड़ी में राजू मुण्डा नामक कथित अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति की मृत्यु हो गई। इसका शव परीक्षण राहतगढ़ जिला सागर में कराया गया। तथा उसी दिन शाम को उसके वस्त्र इत्यादि बदलकर सागर के व्यस्ततम स्थान कटरा चौकी के सामने रोड डिवाइडर पर बने ‘‘वाच टावर’’ पर ऐन्गलों के सहारे रस्सी से बांधकर लटकाया गया, राजू मुण्डा की टंगी हुई लाश के साथ पुलिस अधीक्षक ने फोटो खिचवाये तथा लाश को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। जब राजू का पिता लाश की तरफ जा रहा था तब पुलिस अधीक्षक ने उसे लात की ठोकर मारते हुए गालियां दीं, राजू का पिता राजू की टंगी लाश के पांव से लिपट गया और पुलिस वालों से गुहार करता रहां पर पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी। टंगी हुई लाश को देख कर पूरे शहर में चर्चा फैलने लगी, प्रत्यक्षदर्शियों में महिलाएं तथा बच्चे उसी स्थान पर फूट-फूट कर रोने लगे तब जागरूक नागरिकों में पुलिस अधीक्षक के इस घिरौने कृत्य की प्रतिक्रिया हुई और हजारों लोगों ने चौकी का घेराव किया, तब पुलिस अधीक्षक अन्य चौराहे पर प्रदर्शन हेतु राजू की लाश ले गये।
इस घटना से पुलिस अधीक्षक ने कानून को तोड़ा हैं, मानव अधिकारों को उल्लंघन किया है तथा धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाई है।
अतः इस लोग महत्व के अविलंबनीय विषय पर आज सदन की कार्यवाही स्थगित कर चर्चा कराई जाये।
इसके संबंध में शासन का क्या कहना है ?
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, जैसा आपसे कक्ष में हमने निवेदन किया था कि इस घटना के बाद में विधायक भूपेन्द्र सिंह जी ने जब इस मुद्दे को विधान सभा में उठाया तो वहां के एस.पी. ने विधायक भूपेन्द्र सिंह के घर 15-20 पुलिस वालों को भेजा जिन्होंने विधायक और उनके परिवार के साथ गाली-गलौच, व अभद्र व्यवहार किया। जिसकों लेकर सागर में आन्दोलन हुआ। विधायक ने विधान सभा में अनशन प्रारम्भ किया और उसकी सूचना आपको दी गई, आज विधायकों की यह स्थिति हो रही हैं।
श्री खेमसिंह बारमते : अब तो जान से मारने की भी धमकी दी जा रही हैं।
श्री विक्रम वर्मा : जान से मारने को भी कहा गया है, जब से राजीव मुण्डा वाला मामला विधान सभा में उठाया गया तब से उन्हें परेशान किया जा रहा हैं, मेरा निवेदन है कि आपने इसे लेने को नहीं कहा, दोनों को एक साथ ले लें और एक साथ ही सारी जानकारी आ जाए ?
अध्यक्ष महोदय : यह तो अभी आया है, जानकारी मंगाई है।
डॉ. गौरीशंकर शेजवार : अध्यक्ष महोदय, सूचना आ जाने पर सरकार साढ़े ग्यारह बजे उत्तर देने को बाध्य हैं (व्यवधान)
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, इसमें विधायकों ने सदन के अंदन आमरण अनशन करने की घोषणा की है, सागर जिले के भा.ज.पा. विधायकों को बाध्य होकर यह कहना पड़ा, घोषणा करनी पड़ी कि हम सदन के अन्दर अनशन पर बैठेगे। यह विधायकों से संबंधित प्रश्न है आप उसको ले लें, मैंने विधायाकों से निवदेन किया कि आप आमरण अनशन पर न बैठे, अध्यक्ष महोदय, आपसे निवेदन है कि आप इसको ले लें तो दोनों विषयों पर एक साथ बात हो जाय।
अध्यक्ष महोदय : स्थगन प्रस्ताव तो आ गया है। जो लोग अपनी बात कहना चाहतें हैं तो वह कहेंगे ही। आप उत्तर तो सुन लीजिए (व्यवधान)
विधि एंव विधायी कार्य मंत्री (श्री राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल) : अध्यक्ष महोदय, यह सर्वमान्य सिद्धांत है और हमारी संसदीय व्यवस्थाओं के अन्तर्गत बहुत ही स्पष्ट है कि आज ही महामहिम राज्यपाल महोदय के अभिभाषण पर चर्चा प्रारम्भ होने वाली है, धन्यवाद प्रस्ताव के माध्यम से, यह बिल्कुल ऐसा विषय नहीं हैं और सामान्य तौर पर जिस दिन राज्यपाल महोदय के अभिभाषण पर चर्चा होती है उस दिन स्थगन प्रस्ताव नहीं आना चाहिए, (व्यवधान) इसलिए इस स्थगन प्रस्ताव को अग्राह्य करें।
श्री थावरचंद गेहलोत : शुक्ल जी आपसे यह अपेक्षा नहीं हैं (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : कृपया आप सब लोग बैंठे और शासन का उत्तर आने दें, मैंने स्थगन प्रस्ताव पढ़ दिया हैं और इस पर शासन का उत्तर देने के लिए मैंने कहा हैं। (व्यवधान)
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, क्या आप उसको बाद में ले लेंगे ?
अध्यक्ष महोदय : बाद में चर्चा करेंगे।
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, मेरी आपसे कक्ष में चर्चा हुई, विधायको से संबंधित मामला है। (व्यवधान)
श्री भूपेन्द्र सिंह : अध्यक्ष महोदय, हमारी जान का खतरा हैं।
(श्री भूपेन्द्र सिंह, सदस्य अध्यक्ष महोदय की आसंदी के समक्ष आकर धरने पर बैठ गये तथा उसके पश्चात् भारतीय जनता पार्टी के अनेक सदस्य आंसदी के समक्ष आकर खड़े हो गये तथा नारे लगाए कि(.....) ‘‘तानाशाही नहीं चलेगी’’।)
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, आप या तो उसको बाद में ले लें।
अध्यक्ष महोदय : आप उत्तर तो सुनिये। (व्यवधान)
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, अब हम बर्दाश्त नहीं करेंगे मैं मुख्यमंत्री जी को चुनौती देता हूं कि यह अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.....(व्यवधान)
(भाजपा सदस्यों द्वारा आसंदी के समक्ष खड़े होकर ‘‘तानाशाही नहीं चलेगी,’’ (.........) के नारे लगाए)
अध्यक्ष महोदय : आप सब अपनी-अपनी सीट पर जायें।
मुख्यमंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदन के सदस्यों से अनुरोध करूंगा कि यह एक गम्भीर विषय है इस पर मैं माननीय विपक्ष के नेता के साथ आपके चेम्बर में बात करने के लिए तैयार हूं मेरा अनुरोध है कि आप सभी सदस्य अपने स्थान पर चले जाएं (व्यवधान)
(भाजपा के सदस्य मुख्यमंत्री जी के अनुरोध पर अपने-अपने स्थान पर चले गये)
(......) विलोपित।
श्री दिग्विजय सिंह : आप सुनना नहीं चाहते तो बड़ी मुसीबत हैं, मैं अध्यक्ष महोदय आपके चेम्बर में इस पर बात करने के लिए तैयार हूं, यहां पर सदन में किसी सदस्य ने कोई बात कही है तो मैंने उसको गंभीरता से लिया है। किसी भी सदस्य ने बात कहीं हैं मैंने उसको गंभीरता से लिया हैं। मैं इस प्रकरण में भी माननीय विपक्ष के नेता से अनुरोध करूंगा कि वे अपने दल के सदस्यों को समझाएं और इस विषय के बारे में आपके कक्ष में चर्चा करने को तैयार हैं और जो आपके निर्देश होंगे उसका पालन करने को हम तैयार हैं।
अध्यक्ष महोदय : पहले सुन तो लें।
श्री दिग्विजय सिंह : अध्यक्ष महोदय, मेरा एक व्यवस्था का प्रश्न है यहां पर जो गुण्डागर्दी शब्द आया है वह संसदीय है या नहीं हैं, यह मैं आपके विवेक पर छोड़ता हूं।
अध्यक्ष महोदय : नहीं , बिल्कुल संसदीय नहीं है, इसको विलोपित किया जाये ।
मेरी सभी सदस्यों से अपील है कि जिन्होंने ये स्थगन प्रस्ताव दिया है मैंने जो स्थगन प्रस्ताव ले लिया है उस पर चर्चा होने दें और आवश्यकतानुसार फिर दूसरे पर भी विचार करने के लिए आपस में विचार कर लेंगे, पर पहले जो यहां पर आया है उस पर चर्चा होने दें यह मेरी अपील है। शासन का क्या कहना है शासन अपना उत्तर दें।
राज्य मंत्री, गृह (श्री सत्यदेव कटारे) : अध्यक्ष महोदय, यह स्थगन जो यहां पर आया है उसके विषय में जो जानकारी मिली है दिनांक 30-12-94 को प्रातः 8 बजे थाना प्रभारी राहतगढ़, एवं जिला सागर को फरारी अपराधी राजू उर्फ मुण्डा बल्द गोकुल कुर्मी, उम्र 22 साल, निवासी भीतर बाजार, थाना कोतवाली, सागर जिस पर पुलिस अधीक्षक, सागर द्वारा एक हजार रूपये का इनाम दिनांक 06-10-94 को घोषित किया गया था के साथी शहीद मुसलमान निवासी राहतगढ़ में उपस्थित होने की सूचना प्राप्त हुई। थाना प्रभारी द्वारा उनकी गिरफ्तारी के प्रयास में मार्ग पर वाहन चैकिंग प्रारम्भ की गई। दोनों अपराधी जीप क्रमांक एम.पी. 04/एफ-1899 में चैकिंग के दौरान बैठे हुए पाये गये वाहन पुलिस द्वारा रोके जाने पर अपराधियों ने पुलिस पार्टी पर अपनी रिवाल्वर से फायर किया और भागने का प्रयास किया। फलस्वरूप पुलिस द्वारा ग्राम बरखेड़ी के पास उनकी घेराबंदी की गई एवं पुलिस से मुठभेड़ में राजू मुण्डा का मृत्यु हो गई। उसके पास से एक 32 बोर का रिवाल्वर मय जिन्दा कारतूस एवं चले हुए कारतूस के बरामद हुआ। इस संबंध में थाना राहतगढ़ में अपराध पंजीबद्ध किया गया।
जहां तक राजू मुण्डा के शव के याव का सार्वजनिक प्रदर्शन का प्रश्न है इस विषय पर मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी के न्यायालय में एक परिवाद प्रस्तुत किया गया जिस पर 14-02-95 को न्यायालय द्वारा अपराध पंजीबद्ध करने का आदेश दिया गया है। जिसके प्रतिवादीगण पुलिस अधीक्षक, सागर, अनुविभागीय अधिकारी (पुलिस) एवं अन्य पुलिस अधिकारियों को सम्मन्स जारी किये गये हैं, यह प्रकरण न्यायालय के विचाराधीन हैं, इस माननीय सदन में इस पर विचार करना उचित नहीं होगा।
अध्यक्ष महोदय : जो आपने पढ़ा है उसमें एक शब्द ‘‘परिवार’’ है शायद वह ‘‘परिवाद’’होगा।
श्री सत्यदेव कटारे : जी उसको परिवाद ही पढ़ा है।
डॉ. गौरीशंकर शेजवार : अध्यक्ष महोदय, मेरा व्यवस्था का प्रश्न है जैसा कि मंत्री जी ने कहा कि न्यायालय में विचाराधी है तो न्यायालय के निर्देश जारी हो चुके हैं कि पुलिस अधीक्षक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की जाय और अभियुक्त बनाया जाय तो रिपोर्ट थाने में है और पुलिस में है तो न्यायालय में कैसे हुआ। यह मामला तो इस पर तो चर्चा हो सकती है। (व्यवधान)
श्री जयकरण साकेत : अध्यक्ष महोदय, हमने भी स्थगन प्रस्ताव दिया है उज्जैन नगर निगम के वार्ड 54 के शंकरपुर मं 150 मकानों को गिरा दिया है और लोग बेघर हो गये हैं, अध्यक्ष महोदय, हम बी.एस.पी. के सदस्यों को नहीं सुना जा रहा है हमको भी सुनना चाहिए। (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : पहले जो विषय आ गया है, उसको लेंगे, आप कृपया बैठ जाएं।
श्री जयकरण साकेत : हम एक गम्भीर मामले पर सदन का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, इस पर आप व्यवस्था दीजिए।
अध्यक्ष महोदय : ठीक हैं, व्यवस्था देंगे, आप बैठ जाएं।
श्री जयकरण साकेत : माननीय अध्यक्ष महोदय, पूरे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों के मकानों को जला दिया गया...
अध्यक्ष महोदय : कृपया बैठ जाएं, जो स्थगन सदन में आया है, उस पर चर्चा हो रहीं हे।
श्री जयकरण साकेत : 150 लोग बेघरबार हो गये हैं (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : दो व्यक्ति एक साथ बोल रहे हैं, हमकों समझ में नहीं आ रहा है, कृपया आप लोग बैठ जाएं।
श्री रामलखन सिंह (रामपुर बघेललान) : गरीब परिवारां को कोई संरक्षण नहीं दिया जा रहा है, आप गरीबों की तरफ कोई ध्यान नहीं देते हैं।
अध्यक्ष महोदय : आप ही ध्यान नहीं देते हैं, अब देखिए, इतना गंभीर विषय सदन में है जिसमें लाश को टांगा गया, ये सारी चीजें हैं, और इस पर आप बहस नहीं होना देने चाहते हैं, कृपया आप बैठ जाएं।
श्री जयकरण साकेत : इसको कब ले रहे हैं, आज ले रहे हैं या कल ले रहे हैं।
अध्यक्ष महोदय : इसके संबंध में आप हमारे पास आएं, हम देखेंगे।
श्री जयकरण साकेत : महिलाओं को बे-इज्जत किया गया, 150 घरों को जलाया गया।
अध्यक्ष महोदय : यह रवैया बिल्कुल ठीक नहीं हैं, आप बैठ जाइयें, आपके प्रश्न पर मैं विचार करूंगा, आप मिल लीजिये। आगे की कार्यवाही चलने दीजिए, बैठ जाइये।
श्री जयकरण साकेत : हम आपका संरक्ष चाहते हैं।
अध्यक्ष महोदय : संरक्षण है, आप बैठ जाइये, अब आप जो भी बोलेंगे वह नोट नहीं किया जाएगा।
श्री भूपेन्द्र सिंह (सुरखी) : पहले तो मैं माननीय अध्यक्ष महोदय, आपका धन्यवाद अदा करता हूं कि आपने स्वयं ने इसे गंभीर विषय माना हैं दिनांक 30-12-94 को प्रातः 10 बजे मेरे विधान सभा क्षेत्र के अंतर्गत राहतगढ़ थाने में राजू मुण्डा को कैसे लाया गया, क्यों मारा गया, इस पर हम चर्चा नहीं करेंगे। थाना राहतगढ़ में उसकी लाश को लाया गया। वहीं पर राहतगढ़ में जो चिकित्सालय हैं, वहां पर पोस्ट मार्टम हुआ और पोस्ट मार्टम होने के बाद होना तो यह चाहिए था। कि उसकी लाश उसके पिता को सौंप दी जाती परन्तु पुलिस अधीक्षक ने अपनी निष्क्रियता को छुपाने के लिए, अपनी कार्यप्रणाली को छुपाने के लिए, जबकि उस व्यक्ति का इस दुनिया से कोई संबंध नहीं रहा है उसको सागर शहर में लाया गया और शहर के सबसे व्यव्ततम चौराहे पर कटरा बाजार पुलिस चौकी वहां पर है, वहां पर वाच टावर बना हुआ है, उस वाच टावर के ऊपर पुलिस अधीक्षक ने राजू मुण्डा की लाश को टांग दिया और लाश को लटकाने के बाद पुलिस अधीक्षक लाश के पास खड़े होकर अपना फोटो खिंचवा रहे थे। पुलिस के बाकी कर्मचारी वहां हंस रहे थे और राजू मुण्डा का पिता उसकी लाश से लिपट-लिपट कर चिल्ला रहा था कि मेरे बेटे का दोष क्या है, मेरे बेटे को क्यों मारा, इसकी लाश मुझे दे दों, परन्तु पुलिस अधीक्षक ने उसके बाप को एक लात मारी और लाश से अलग कर दिया। इस तरह से अमानवीय कृत्य उस लाश के साथ किया गया। उसके बाद उसकी लाश को शहर के अन्य चौराहों पर ले जाया गया और टांगा गया शाम का समय था, शहर की जनता काफी संख्या में वहां आ-जा रही थी। कई महिलाएं वहां रोने लगीं चिल्लाने लगीं। कई बच्चे उसकी लाश को देखकर मूर्छित हो गए, इस तरह का वीभत्स प्रदर्शन उस लाश के साथ सागर पुलिस अधीक्षक ने किया।
अध्यक्ष महोदय, जैसा कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार किया है कि न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक और अन्य पुलिस कर्मियां को इसमें प्रथम-दृष्ट्या दोषी पाया है और अपराध पंजीबद्ध करने के आदेश दिए हैं, अध्यक्ष महोदय, मेरा आपसे निवेदन है कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है कि किसी पुलिस अधिकारी के विरूद्ध उसके पद पर रहते हुए यदि कोई न्यायालय में प्रकरण पंजीबद्ध होता हैं तो उसके पद पर रहने से साक्ष्य प्रभावित होने की संभावना रहती हैं तो ऐसे पुलिस अधीक्षक और बाकी अन्य पुलिस कर्मियों को तत्काल वहां से हटाया जाना चाहिए था। परन्तु उनको हटाने के स्थान पर उनके खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। (शेम-शेम की आवाज) आज सारी दुनिया में इस बात पर बहस चल रही है कि फांसी की सजा दी जाए या नहीं दी जाए, गैस-चैम्बर की सजा दी जाए या नहीं दी जाएं। सारी दुनिया में इस बात बहस चल रही है और वहीं पर जो व्यक्ति मर चुका है, जिसका दुनिया से कोई संबंधनहीं रहा उसकी लाश को लटकाकर पुलिस वाले जूते मारते हैं उसके बात नोंचते हैं, इससे ज्यादा अमानवीय कृत्य इस शासन का और कोई नहीं हो सकता। यह भारत का सबसे अमानवीय कृत्य है। श्री रंगनाथ मिश्र ने भी इस घटना को अमानवीय माना है। नवभारत टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित पत्र ने अपने सम्पादकीय में इसे अमानवीय घटना माना है, यह बहुत गंभीर अपराध है। अध्यक्ष महोदय आप इसे ग्राह्य करें तो इसके पीछे जो तथ्य हैं, पुलिस के टेप, सारे फोटो और न्यायालय के निर्णय में प्रस्तुत कर सकता हूं जिन लोगों ने न्यायालय में गवाही दी, उन सारे लोगों के खिलाफ पुलिस ने प्रकरण पंजीबद्ध किये, मैंने विधान सभा में स्थगन रखा तो मुझे अपमानित करने के लिए मेरे घर पर पुलिस भेज दी। (शेम-शेम की आवाज) आज पंजाब जैसी हालत पूरे सागर जिले में हो रही है। गोपाल भार्गव जी के विरूद्ध प्रकरण दर्ज किया गया, माननीय सुधा जैन को मारने की धमकी दी गई, मेरे घर पर पुलिस भेजकर मुझे अपमानित किया, ऐसा कुचक्र सागर जिले में चल रहा हैं। अध्यक्ष महोदय, आप इस स्थगन को स्वीकार करने का कष्ट करें जिससे हम बाकी तथ्य प्रस्तुत कर कसें।
डॉ. गौरीशंकर शेजवार (सांची) : अध्यक्ष महोदय, गृह राज्य मंत्री जी ने जो एक बात कही हे कि यह प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है, यह बात समझ में नहीं आ रही है। न्यायालय में प्रकरण नागरिकों और अधिवक्ताओं ने प्रस्तुत किया था। न्यायालय का निर्णय हुआ कि पुलिस अधीक्षक, सागर के खिलाफ आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया जाए और अब प्रकरण पंजीबद्ध होना चाहिए। न्यायालय को फैसला तो हो गया। अब पुलिस को कार्यवाही करना है और यदि मानलों प्रकरण पंजीबद्ध कर दिया और उसकी जांच हो जाए तो पुलिस में पंजीबद्ध प्रकरण को न्यायालय के अधीन नहीं माना जाता। यह कथन पूर्ण रूप से असत्य हैं कि प्रकरण न्यायालय के विचाराधीन है। इसकी वास्तिविक स्थिति यह है कि शासन को हर हाल में यह स्वीकार करना पड़ता कि राजू मुण्डा के शव को चौराहों पर, वाच टावर पर पुलिस अधीक्षक ने अमानवीय तरीके से लटकवाया है। यह जवाब अनिवार्य रूप से इस स्थगन में आना था इससे बचने के लिए आपने फिर एक (.......) असत्य कथन कर दिया, इस एक (......) असत्य को छिपाने के लिए आप और 50 (.....) असत्य बोलेंगे। (व्यवधान)
अध्यक्ष महोदय : (.....) यह शब्द विलोपित किया जाए।
डॉ. गौरीशंकर शेजवार : आप श्रीमान विलोपित कर दें और मैं प्रयास करूंगा कि इस शब्द को इस्तेमान न करूं पर सामने वालों के हिसाब से शब्दों का प्रयोग होता है। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता। सत्यता तो यह है कि जब कोई आदमी इस दुनिया से चला जाता है तो आपस में लोग यह बात करते हैं कि उसकी कथनी और करनी उसके साथ चली गई, यह तो मिट्टी है। कानून में भी प्रक्रिया है कि चाहे वह अपराधी हो अथवा लावारिस लाश हो उसको दफनाने के लिए, उसके दाह संस्कार के लिए सरकार पैसा देती है। यह ऐसी प्रक्रिया है जो निश्चित रूप से होनी चाहिए। जिसका जैसा स्तर होता है, उसके हिसाब से वह प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए, यह कहीं नहीं लिखा है कि यदि कोई व्यक्ति पुलिस एन्काउन्टर में मारा जाए तो उसकी लाश को वाच टावर पर टांगना चाहिए और एस.पी. उसकी लाश के पास हंसते हुए फोटो खिंचवाये और चौराहों पर उसकी लाश को लटकाया जाए। उसका बाप कहे कि यह बच्चा तो मर गया है, यह इसकी मिट्टी है, इसका संस्कार मुझे अपनी हैसियत से करने दें तो उसको एस.पी. ने लात लगाकर हटा दिया। उस बच्चे का बाप उसके पावं तक पहुंच रहा था तो एस.पी. ने कह दिया कि इसको और ऊपर कर दो तो कैसे टच करेगा। इस प्रकार लाश को लटकाया जाएगा तो क्या परिस्थितियां बनेंगी ? मुख्य बाजार में उसको देखकर कई महिलाएं बेहोंश हो गई, लोग भाग गये घबरा गये जो लोग हिम्मत वाले थे वह इकट्ठा हुए और उन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। अकेले सरकार ने इस बात को नहीं सुना तो मजबूरी में न्यायालय की शरण में जाना पड़ा। आज यह स्थिति हो गई है क्या कोई सरकार के सामने निवेदन नहीं कर सकता है यदि कोई प्रश्न उठा भी तो उसको अमान्य करवा दिया। क्या लाल लगे हैं सागर एस.पी. में जो विधायकों को धमकी दे रहे हैं, लाशों को लटका रहे हैं फिर भी आप उनको गले लगा रहे हैं, मुख्यमंत्री जी इस सदन में कह दें कि इस आदमी को 100 खून माफ कर दो लेकिन मेरी मजबूरी यह है कि मैं इस को नहीं हटा सकता हूं मेरी मजबूरी है, उस एस.पी. ने गोपाल भार्गव के खिलाफ में कार्यवाही की तो उसके कुचक्र में आप भी उसके साथ शामिल हो गए, उसके बाद उस एस.पी. ने हमारी विधायिका सुधा जैन को अपमान करने की कोशिश की।
श्री गोपाल भार्गव : उस दिन के बाद वह एस.पी. शरणागत है।
(.........) विलोपित
डॉ. गौरीशंकर शेजवार : आपके लिए वह शरणागत होगा लेकिन उसने दूसरे को पकड़ लिया (हंसी) यह बहुत ही गंभी बात है।
श्री विक्रम वर्मा : गोपाल भार्गव यह कर रहे थे कि मुख्यमंत्री जी एस.पी. के शरणागत हैं, उसको बार-बार दण्डवत कर रहे हें, (मुख्यमंत्री के हंसने पर) यहां हंस रहे हैं, यह मुख्यमंत्री की स्थिति है, अब क्या होगा इस प्रदेश का।
अध्यक्ष महोदय : अब कृपया समाप्त करें, प्रेमप्रकाश पाण्डेय।
डॉ. गौरीशंकर शेजवार : मैं एक मिनिट में समाप्त करता हूं, अध्यक्ष महोदय, आप भी सहमत होंगे और यह सदन भी सहमत होगा। आप एक चीज बताएं कि क्या लाश के साथ में ऐसा व्यवहार होना चाहिए ? और लाश के साथ में जो आदमी ऐसा व्यवहार करे उसकी क्या सजा है अैर सजा देने में मुख्यमंत्री क्यों सक्षम नहीं हैं, आदमियों को अदालत में क्यों जाना पड़ा, मुख्यमंत्री जी जैसे ही आपने अखबारों की कटिंग पढ़ी थी आपके पास में सूचना आई थी, आपको तत्काल प्रभाव से कार्यवाही करनी थी, महीनों बीत गये आपने नहीं किया आज अपना दोष मानते हैं कि नहीं मानते, कभी-कभी आदमी को आत्मचिंतन भी करना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि यदि उससे कहीं गलती हो रही हैं तो वह उसे सुधारे इससे उसकी लाईफ बढ़ती है, (हंसी) मैं मुख्यमंत्री जी को उपदेश नहीं देना चाहता लेकिन एक बात है कि आप टेन्शन में आयेंगे परेशान हो जाएंगे, मानसिक रूप से यदि आप पुलिस अधीक्षक, सागर जैसे लोगों को साथ देंगे, आपको प्रकृति माफ नहीं करेगी। यह लिखा है कि धर्म एक ऐसी चीज है कि आदमी के मरने के बाद उसकी अच्छाइयां - बुराइयां उसके साथ चली जाती हैं लाश का अपमान नहीं होना चाहिए। यह धर्म का अपमान है, समाज की रीति का आपने अपमान किया है, मुख्यमंत्री, सागर, एस.पी. पर कार्यवाही कर देते तो निश्चित रूप से यह पाप के भागीदार नहीं होते लेकिन इन्होंने उस पर कार्यवाही नहीं की तो उसके पाप इनकों भी ले डूबेंगे और यह जो कुछ हो रहा है शायद उसी की वजह से हो रहा हैं। मैं आपको यह बताना चाहता हूं। धन्यवाद।
श्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय (भिलाई नगर) : अध्यक्ष महोदय, सागर के एस.पी. द्वारा 30-12-94 को जो एक मृत व्यक्ति की लाश के साथ कुकृत्य किया गया वह शायद इस कारण से होते रहा है एस.पी. द्वारा लगातार वहां के जनप्रतिनिधियों, वहां के समाचार पत्र के सम्पादक और अन्य गणमान्य नागरिकों द्वारा समय-समय पर विभिन्न उस क्षेत्र की समस्यओं और उस क्षेत्र में निरन्तर बढ़ती कानून व्यवस्था के विरोध में आवाज उठाने के बावजूद भी पूलिस प्रशासन द्वारा अपने उन कानून व्यवस्था पर नियंत्रण करने के बावजूद नियंत्रण न करने के कारण अपने उन कर्तव्यविहीन जो उनका दृष्टिकोण रहता था उसको छुपाने के लिए और जो जनप्रतिनिधियों, समाचार पत्रों के सम्पादकों को प्रताड़ित करने के कारण जो पूरे जिले भर में पुलिस प्रशासन की छवि लगातार धूमिल होती जाती रही उसको शासन के द्वारा जिस तरीके से संरक्षण प्राप्त होता रहा उसी का शायद यह दुष्परिणाम रहा है 30-12-1994 को एक ऐसे दुष्कृत्य के रूप में एक ऐसी दुर्घटना के रूप में सागर की जनता ने देखा जबकि लाश को सरे आम चौराहे पर लटकाया गया।
समय : 12.00 बजे
यह बात पहले भी आ चुका है, अध्यक्ष महोदय, समाज जानता है, सारे धर्म में चाहे गरीब हो या अमीर हो, सभी में अन्त में मौत के बाद में उस व्यक्ति का किसी तरह से अपमान नहीं होने देना चाहते हैं, प्रत्येक समाज में अपनी रीतियों के हिसाब से उसकी मिट्टी और उसका दाह संस्कार करना चाहते हैं। एक प्रश्न उठता है कि आखिर सागर जिले की पुलिस ने, जैसा मंत्रीजी ने बताया कि वह अपराधी है, उस पर एक हजार रूपये का इनाम था और पुलिस के एन्काउन्टर में मारा गया बताया हैं, किन्तु यह आवश्यकता क्या पड़ी कि उस लाश को सार्वजनिक रूप से लटकाए, उसके पीछे पुलिस अधीक्षक की नीयत क्या थी ? तो नीयत यह थी कि पुलि अधीक्षक द्वारा उस जिले में जितने भी काले कारनामें किये जा रहे हैं, उसके खिलाफ जो कोई भी आवाज उठाएगा उसको भी इसी समान लटकाया जायेगा। उसी नीयत को प्रदर्शित करने के लिए वहां लाश लटकाई गई। अध्यक्ष महोदय, विभिन्न प्रकार के अपराध होने हैं, उन अपराधों के लिए विभिन्न प्रकार के दण्ड विधान के अंतर्गत सजा दी जाती है लेकिन किसी भी अपराधी को सार्वजनिक रूप से यहां तक कि देश के प्रधान मंत्री या राष्ट्रपिता जैसे पदों पर रहने वाले लोगों के हत्यारों को भी सरे आम लटकाया गया हो ऐसा इतिहास में कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। यह पुलिस अधीक्षक द्वारा लगातार किया जा रहा है। उसी से संबंधित मुद्दा है कि चूंकि यह मुद्दा विधान सभा में स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से उठाया गया है और सागर के श्री भूपेन्द्र सिंह द्वारा इस बात की पहल की गई थी लेकिन सागर के एस.डी.ओ. (पी.) को श्री भूपेन्द्र सिंह के पास भेजा गया यह समझाईस करने के लिए कि आप उस मुद्दे को विधानसभा के अंदर न उठाएं और जब उन्होंने इस बात से इन्कार कर दिया और कहा कि इस सत्य को सबके सामने लाया जाएगा तब उनके खिलाफ वहीं प्रताड़ना का दौर चालू हुआ और यह सारा इसलिए हो रहा है क्योंकि दिग्विजय सिंह सरकार उस एस.पी. को सरे आम संरक्षण दे रहे हैं और उसके खिलाफ जो आवाज उठाएगा उसकी इसी तरह से अपमानित करने की नीयत से किया गया, इसलिए यह स्थगन प्रस्ताव ग्राह्य यदि किया जाता है तो और भी ऐसे तथ्य हैं, जो आपके समाने ला सकते हैं।
श्री बच्चन नायक (बड़वारा) : माननीय अध्यक्ष महोदय, यह जो राजू मुण्डा नाम का कथित अपराधी था और पुलिस ने उसकी घटना इस प्रकार बताई कि वह पुलिस पर हमला कर रहा था, पिस्तोल से, इसलिए पुलिस ने उसको एन्काउन्टर किया और वह उसमें मारा गया। पुलिस अधीक्षक के जो कृत्य हैं, वह सुपरविजन के है, पुलिस अधीक्षक का काम अपने अधीनस्थों के अच्छे-बुरे कार्यो का सुपरविजन करके कार्यवाही करना और शासन को वास्तकिवक तथ्यों से अवगत कराना है। यदि राजू मुण्डा अपराधी प्रवृत्ति का था और उस पर एक हजार रूपये का इनाम था और वह यदि किसी न्यायालय द्वारा सजा से घोषित था जो भी स्थिति थी वह अभी गृह राज्यमंत्री ने उन्हीं तथ्यों को उजागर नहीं किया कि उस पर कौन-कौन से अपराध थे, कितने अपराध में दोषी था, किसी न्यायालय द्वारा दण्डित किया गया था और क्या उसको फांसी की सजा दी गई थी ? यदि वह काउन्टर किया गया था और मारा गया था तो किसी अपराधी के लिए मृत्युदण्ड से बड़ी कोई सजा नहीं होती। हमारे संविधान और कानून में अध्यक्ष महोदय, एक वर्ष पूर्व ललितपुर में दस्यु सुन्दरी हसीना की लाश का इस तरह का प्रदर्शन पुलिस के अधिकारियों ने किया और उस पर पूरे देश में, पूरे समाज में प्रतिक्रिया हुई थी उससे भी सबक न लेते हुए हमारे प्रदेश के पुलिस विभाग ने पुलिस अधीक्षक जैसे जिम्मेदार अधिकारी ने मरी हुई लाश को लटकाकर आखिर क्या साबित करने का प्रयास किया ? संविधान में कानून में फांसी से बड़ी कोई सजा नहीं है और जब वह मर गया, उसकी मृत्यु हो चुकी थी, जब वह लाश के रूप में परिवर्तित हो गया था, तब ऐसी स्थिति में संविधान से ऊपर जाकर क्या हमने पुलिस अधीक्षक को इस तरह से अधिकार दे रखे हैं ? यदि दे रखे हैं तो राज्यमंत्री जी इस पर प्रकाश डालें और मैं यह भी कहना चाहता हूं कि पूरे तथ्य इस पर आना अभी बचे हुए हैं, उस व्यक्ति पर कौन-कौन से अपराध दर्ज हैं, उसकी वह सारी जानकारी दें।
अध्यक्ष महोदय, पुलिस अधीक्षक को यह अधिकार नहीं है कि वह सार्वजनिक रूप से लाश को चौराहे पर लटकाये, लोगों की भावना से खेले, पुलिस अधीक्षक ने जो क्रूरतम अपराध किया है, उसके लिए उस पर शासन स्तर पर कार्यवाही होना चाहिए, अदालत तो बाद में कार्यवाही करेगी, पहले उसके खिलाफ विभाग कार्यवाही करने की घोषणा शासन करे और इस स्थगन प्रस्ताव पर विस्तृत चर्चा हो यही मेरा निवेदन है।
श्रीमती सुधा जैन (सागर) : अध्यक्ष महोदय, राजू मुण्डा के शव को सार्वजनिक रूप से चौराहे पर लटकाया गया, यह मेरे विधान सभा क्षेत्र के अंतर्गत हुआ है। इसके पहले जो राजू मुण्डा को मारा गया, वह भूपेन्द्र सिंह जी के विधान सभा क्षेत्र का मामला था इसके बाद राहतगढ़ से लाश को 40 कि.मी. दूर सागर में प्रदर्शन करने के लिए लाया गया। अध्यक्ष महोदय, गृह राज्यमंत्री जी ने राजू मुण्डा के बारे में अपने जवाब में कुछ बातें बताई हैं कि वह खतरनाक अपराधी था, कुख्यात अपराधी था, उसकी तलाश पुलिस को थी, उस पर इनाम घोषित था, परन्तु उन्होंने अपने जवाब में यह नहीं बताया कि उस पर कौन-कौन से अपराध व कौन-कौन सी धाराएं लगी थी, कौन-कौन से प्रकरण थे। मैं बताना चाहती हूं कि उसके ऊपर 307 का केस लगाया गया था, धारा 302 के अंतर्गत उसके ऊपर कोई मुकदमा दर्ज नहीं था। धारा 395-97 के अन्तर्गत हत्या का, डकैती का कोई मुकदमा दर्ज नहीं था। इन सब बातों को न कहतेक हुए कि उस पर कौन-कौन से अपराध दर्ज थे यह विषय हमने स्थगन प्रस्ताव में नहीं उठाये हैं, हम उसी मुद्दे पर गये हैं कि 40 कि.मी. दूर सुरखी विधान सभा क्षेत्र से लेकर सागर के चौराहे पर उसके शव को लटकाने का मकसद पुलिस अधीक्षक का क्या था, , पूलिस अधीक्षक का आशय केवल लोगों को डराना धमकाना, अपना आंतक था।
अध्यक्ष महोदय, पिछले बजट सत्र के अंतिम सप्ताह में मैंने एक मामला उठाया था सागर में एक घटना हुई थी मई में, जिसमें रामकुमार पटेल, वकील की हत्या हुई थी, उसकी हत्या पुलिस अधीक्षक के कार्यालय के बाहर हुई थी, खुले आम दोपहर में रामकुमार वकील के पेट में एक आदमी चाकू मारकर फरार हो गया और वह आज तक नहीं पकड़ा गया। उस समय मुख्यमंत्री जी ने इस पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही नहीं की। उसके बाद निरन्तर ऐसे दूसरे मामले आते रहें। यहां तक कि मुझे भी जान से मारने की धमकी दी गयी। अनेक प्रकार से मुझे धमकियां दी गयी कि कोई भी मामला हम सदन में प्रस्तुत न करें। इसके बाद पौंगा हत्याकांड सागर में हुआ। सरे आम डायिंग डिक्लेरेशन में उसने कहा कि इन-इन अधिकारियों द्वारा मुझे प्रताड़ित किया गया, इसलिए मैं आग लगाकर मर रहा हूं, उसमें भी उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी। उसके बाद 35 लाख की यहां डकैती हुई, अभी पिछले सदन में ही यह बात मैंने उठाई थी। पिछले सदन में मैंने यह बात कही थी और फिर दोहराती हूं कि मैंने मंत्री जी को चेतावनी दी थी और मुख्यमंत्री जी को बताया था कि यदि इस तरह से आप उसको बचाते रहे, उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं करेंगे तो, हर सत्र में एक नया मामला सागर पुलिस के खिलाफ आयेगा। वहीं हुआ, जो पहले घटनाएं नहीं हो रही थी, उससे बड़ी घटना यह हुई है, हमें बेबस, मजबूर होकर यहां पर इस घटना को उल्लेख करना पड़ रहा हैं, हम जनभावनाओं की, जन समस्याओं की आवाज नहीं उठा सकते तो हमारे क्षेत्र के लोग हमसे कहते हैं कि आप यहां से इस्तीफा दे दीजिए, अगर कुछ नहीं करवा सकती तो। अध्यक्ष महोदय, उस पुलिस अधीक्षक ने अपने बचाव के लिए अनेक दलाल लगा रखे हैं, कुछ पेपर वालों को टुडे न्यूज नामक पेपर वालें को खरीद रखा है इस न्यूज पेपर का जो कार्यालय है, वहां एस.पी. का पूरा कार्यालय लगता हैं, वहां से सारी घटनाएं छपती हैं, जिस-जिस व्यक्ति ने इस प्रकरण की आलोचना की हो चाहे वह दैनिक आचरण के पत्रकार हो, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर के पत्रकार हों, उनके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज किया है। उस पेपर में सभी के खिलाफ अशलील गालियां छापी गयी हैं। जिस प्रकार से भी निपटा जा सकता हैं, उस पेपर में छपवाया जाता हैं, उसने शिब्बू नामदेव करके एक गुण्डा पाल रखा है, वह भी एक छोटा सा साप्ताहिक पेपर निकालता हैं। और उसमें भी जितना बनता हैं लोगों के खिलाफ इस प्रकार से वह अश्लील प्रचार करके जन भावनाओं को कुचल रहा है और सागर में इस तरह से लोकतंत्र की पूर्णतः हत्या हो रही है, कोई व्यक्ति उसके खिलाफ बोलने के लिए तैयार नहीं होता है और जो भी व्यक्ति बोलता है, उसको इस प्रकार से प्रताड़ित किया जा रहा है, राज्यमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी भी उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं और उनको छूट दे रहे हैं, आप उन्हें छूअ दे रहे हैं, दीजिए, लेकिन कल को हमारे या हमारे परिवार के किसी सदस्य की लाश को यदि चौराहे पर लटका दिया जाए तो मैं इसके लिए तैयार हूं। मुख्यमंत्री जी अपने ऊपर इसकी जिम्मेदारी ले लें।
श्री थावरचंद गेहलोत (आलोट) : माननीय अध्यक्ष महोदय, हम लोगों ने जो स्थगन प्रस्ताव दिया है और उसमें जिन जिन मुद्दों का उल्लेख किया है, उनमें से एक भी मुद्दे का उत्तर माननीय मंत्री जी ने नहीं दिया है, इसलिए हम यह चाहते हैं कि इस स्थगन प्रस्ताव को ग्राह्य करके इस पर विस्तृत चर्चा कराई जानी चाहिए। माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूं कि सारे देश में मानवता को लेकर के, मानव अधिकारों को लेकर के जो चर्चाएं चल रही हैं ऐसी परिस्थिति में क्या मध्यप्रदेश में सागर जिले के एस.पी. को ये अधिकार दे दिए गए हैं कि वे इस प्रकार से लाश को लेकर के और उसका प्रदर्शन करें ? उस लाश को लातों से मारें ओर सार्वजनिक चौराहे पर टांगे ? इस संबंध में माननीय मुख्यमंत्री जी ने और राज्यमंत्री, गृह ने कोई बात नहीं कही है। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि यह बात उन्हें स्वीकार है कि वहां के एस.पी. ने इस प्रकार का कृत्य किया हैं। मै। माननीय मुख्यमंत्री जी से यह पूछना चाहता हूं कि आपने क्या उस व्यक्ति को और पुलिस विभाग को इस प्रकार के अधिकार दे दियें हैं कि किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए, मृत्यु हो जाए और उसके बाद उसकी लाश का इस प्रकार से प्रदर्शन किया जाए ? ये सब उस घटना को छिपाने के लिए, जिसमें राजू मुण्डा की हत्या की गई है, ये षड़यंत्र है और जानबूझ कर न्यायालय का बहाना किया जा रहा हैं, राजू मुण्डा की हत्या, जब उसने पुलिस से टक्कर ली और उसने कुछ तथ्यों को उजागर करने का प्रयास किया और कहा कि मैं इन पुलिस अधिकारियों को अमुक-अमुक राशि प्रतिमाह देता था तो पुलिस को ऐसा लगा कि पुलिस प्रशासन की पोल खुलेगी तो इसमें फर्जी एन्काउन्टर दिखा करके उसको मारा, नहीं तो यह पुलिस बताए, मंत्री जी बताएं, मुख्यमंत्री जी बताएं कि उसके पास में से जो कट्टा मिला है, उससे कितने फायर हुए हैं, कौन-कौन पुलिस का अधिकारी या कर्मचारी एनकाउन्टर के समय पर उपस्थित था और किस-किस को गोली लगी या छर्रें लगे। यदि ऐसा कुछ नहीं हैं तो सीधे-सीधे यह निष्कर्ष निकलता है कि यह फर्जी एन्काउन्टर है। मैं इसके बारे में बहुत ज्यादा नहीं कहना चाहता हूं परन्तु यह जांच का विषय जरूर हैं, एस.पी. सागर को मुख्यमंत्री जी ने संरक्षण दे रखा है। वे जानबूझ करके इस प्रकार की घटनाएं करते रहते हैं ये सब जांच कर विषय हैं। जो घटना राहतगढ़ तहसील की है या राहतगढ़ थाने में घटी हैं उसे 40 किलोमीटर दूर ले जाकर के सागर के चौराहे पर लाश को टांग करके जनता में इस प्रकार प्रदर्शन करने का उद्देश्य क्या हो सकता हैं ? इन तथ्यों को भी पूरी तरह से सामने आना चाहिए, इसलिए मेरा यह निवेदन है कि इस पर चर्चा कराने के लिए इस स्थगन प्रस्ताव को ग्राह्य किया जाए। मुझे एक कहानी याद आ गई है। दो बच्चे थे, एक ने कहा कि मेरे पिताजी एस.पी. हैं तो दूसरे ने कहा कि मेरे पिताजी डी.आई.जी. है, दूसरे ने कहा, पहले से कि तुम्हारे पिताजी में क्या विशेषता हैं एस.पी के पुत्र ने कहा कि मेरे पिता जी ने एक आदमी की टांग काट दी तो डी.आई.जी. के पुत्र ने कहा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ? उसने जवाब दिया कि इसलिए टांग काट दी क्योंकि उनका सिर था ही नहीं। इस प्रकार के पुलिस कृत्य कर रही हैं। जिन्दा को तो बचा रही है और मरने के बाद परेशान कर रही हैं, यह अमानवीय कृत्य हैं, हम इसकी निन्दा करते हैं और निवेदन करते हैं कि हमारे सब तथ्यों पर विस्तृत चर्चा हो सके इसीलिए इसे ग्राह्य किया जाए।
श्री गोपाल भार्गव (रेहली) : माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके आदेश से जो आज स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा हो रही हैं, इसमें हम देखें तो दो पृथक्-पृथक् पहलू स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, एक तो यह कि पुलिस द्वारा एक लाश के बारे में किया गया दुष्कृत्य और दूसरा यदि किसी विधायक द्वारा विभान सभा में उस मामले को लाया जाता है तो उस विधायक के ऊपर पुलिस के द्वारा किया गया एक प्रकार का दबाव, आक्रमण या उसे प्रताड़ना, किसी भी रूप में कर सकते हैं। अध्यक्ष महोदय, ये जो राजकुमार कुर्मी और फिर राजू मुण्डा नाम का व्यक्ति था पिछड़ी जाति के हैं और राजू मुण्डा का बात हम्माल है, उसके विरूद्ध ऐसा अपराध कोई नहीं था कि उसे गोली मारी जा सकें, उसका एन्काउन्टर किया जा सके, इस प्रकार से पुलिस उसकी लाश गिरा दे, ऐसा कोई अपराध उसके ऊपर पंजीबद्ध नहीं था। माननीय गृह राज्यमंत्री जी, उसके ऊपर कोई भी इस प्रकार का आरोप, उस व्यक्ति के ऊपर नहीं था, और ग्राम का जो कोटवार था उसके कमरे में बुलवाकर थानेदार ने उसे शराब पिलवाई औरा शराब पीने के बाद जब वह बाहर गया तो खेत में छिपे लोगों ने उसको गोली मार दी। उसके बाद भी हम उस व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं कहना चाहते लेकिनन उसकी लाश का पुलिस द्वारा सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन किया गया और अपमान किया गया। इसके लिए माननीय मुख्यमंत्री जी जो कहना चाहें या करना चाहें, वे स्वतंत्र हैं, लेकिन आज यह बात कहते हुए तकलीफ होती हैं कि हम यदि कोई मामला विधान सभा में उठाते हैं क्योंकि जनता ने, संविधान और विधान सभा ने हमें यह अधिकार दिया है, तो यदि उस मामले को उठाने पर कोई पुलिस या प्रशासन का अधिकारी नाराज होता है और हमको या हमारे साथियों को धमकी देता हैं तो यह निश्चित रूप से आपत्तिजनक बात हैं, मैं मुख्यमंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि यदि वे ऐसा सोचते हैं कि कोई अधिकारी किसी विधायक को धमकी देता हैं तो वह योग्य अधिकारी है या एक जिले के अनके विधायकों को वह धमकी देता है और किसी प्रकार से दबाव में लाने का काम करता है तो वह और ज्यादा योग्य अधिकारी है तो यह उचित नहीं हैं। आज हम जब ग्राम राज और पंचायत राज की बात करते हैं, पंचायतों को अधिकार देने की बात करते हैं तो पंचायतों को क्या अधिकार दे पायेगे जब कि जनपद अध्यक्ष और प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत इसन विधानसभा के सदस्यों को ही हम सुरक्षा ने दे पायें ? .....(शेम-शेम के स्वर)... यह एक संवेदनशील और मानव अधिकारों से जुड़ा हुआ मामला है और सीधे मुख्यमंत्री जी की संवेदनशीलता से जुड़ा मामला है। पुलिस ने जो कुछ अच्छा बुरा किया उसके लिए मुख्यमंत्री जबावदेह है लेकिन हमारा जा कर्तव्य है कि मामले को सदन में उठाएं तो वह भी नहीं करने दिया जाता। इसमें न्यायालय ने दोषी सिद्ध कर दिया और यह भी कहा कि संज्ञान लिया जाए। न्यायालय सी.जे.एम. के कोर्ट ने संगील अपराध बताकर मामला रजिस्टर्ड करने को कहा। जहां तक न्यायालय की बात है तो अभी चालान पेश नहीं हुआ है इसलिए मामला सब-ज्युडिस नहीं है, इसलिए गृह राज्य मंत्री जी को पूरा उत्तर देना चाहिए लेकिन वे पूरा उत्तर देने में कोताही क्यों बरत रहे हैं ? यदि गृह राज्य मंत्री उत्तर देते हैं तो सारे तथ्य सामने आ जाएंगे लेकिन यहां एकतरफा बहस चल रही हैं। कोई इतना बड़ा उसका अपराध नहीं था। जिसके लिए उसे इस प्रकार से मार दिया जाता। उसकी हत्या की गई और इसके पीछे मूल मंशा यह है कि सागर जिले में चोरी, हत्या, बलात्कार की दिन दहाड़े घटनाएं हो रही हैं, अदालतों में और पुलिस थाने के सामने वकीलों की हत्या, लूट और आटोरिक्शा में बलात्कार हो रहे हैं, तो इन सब बातों को छिपाने के लिए यह सब किया गया ताकि उसकी चर्चा हम यहां न कर सकें। इस प्रकार से झूठा एन्काउन्टर किया जाता है और लाशों का सार्वजनिक प्रदर्शन इसलिए ही किया जाता है कि पुलिस का झूठा पौरूष जनता के सामने आ सके। इस झूठे पौरूष की भावना के चलते ही यह सारा का सारा काण्ड किया गया है इससे निश्चित रूप से मध्यप्रदेश सरकार का सिर पूरे हिन्दुस्तान में शर्म से झुक गया है....(शेम-शेम) ... भारत के सारे लीडिंग न्यूज पेपरों में इस संबंध में संपादकीय छपे हैं। कहते हुए दुख है कि सागर जिले के जो भी प्रमुख समाचार-पत्र हैं, भोपाल से जो अखबार दैनिक भास्कर, नई दुनिया और नवभारत जो यहां से निकलते हैं, इनके सारे के सारे ब्यूरों कार्यालय यहां हैं, उनके जो प्रमुख हैं और जिले के संवाददाता हैं, उनको भी उस एस.पी. ने धमकी दी है,केस चलाये हैं, और उनको प्रताड़ित किया है। इता असहिष्णु, अमानवीय और गंवार व्यक्ति मैंने कोई नहीं देखा। इस एस.पी. की भरती कहां से हुई यह खोज का विषय है। मैं माननीय मुख्यमंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि किस प्रकार से भर्ती हुए, यदि दो लाइन हिन्दी या अंगेजी की लिख दें तो मैं विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं, कहां से भर्ती हुए, हम यह नहीं कह सकते, किसी ने बताया कि अर्मी का रिजर्व कोटा होता हैं उस रिजर्व कोटे में भर्ती होकर आ गए पहले क्लर्क थे।
मुख्यमंत्री (श्री दिग्विजय सिंह) : अध्यक्ष महोदय, मुझे घोर आपत्ति है, किसी भी अधिकारी के बारे में इस तरह की चर्चा करना उचित नहीं हैं, विशेषकर जब वह अधिकारी अनुसूचित जाति या जनजाति का अधिकारी है। इस तरह की बातें इनकी मानसिकता को सिद्ध करती हैं।
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने यह बताया कि वह आर्मी से आया है और आप दो, तीन, चार-पांच घटनाओं के बाद उसको तीसरे तरीके से टर्न देना चाहते हैं, आप इस तरह से कमजोरी छिपाने की बात कर रहे हैं, यह कोई तरीका नहीं है आपका।
श्री थावरचन्द गेहलोत : अध्यक्ष महोदय, हम भी अनुसूचित जाति के विधायक हैं लेकिन हमको भी शर्म आ रही हैं, उसके कृत्यों पर, अनुसूचित जाति का अधिकारी ऐसा नहीं हो सकता। भागीरथ प्रसाद हो सकता है, होशियार सिंह हो सकता हैं, अनुसूचित जाति के कई आई.ए.एस. और आई.पी.एस. अधिकारी बहुत अच्छे हैं लेकिन इनको आप कहां से पकड़ लाए और उसको आप संरक्षण दे रहे हैं। उसके कार्य नियमों के विरूद्ध और मानवता के विरूद्ध हैं।
संसदीय कार्य मंत्री (श्री राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल) : अध्यक्ष महोदय, एक व्यवस्था का प्रश्न है, आपने स्थगन प्रस्ताव पर ग्राह्यता पर विचार करने के लिए विषय रखा है और उसकी व्याप्ति भी जो स्थगन प्रस्ताव पढ़ा गया है उसके अन्तर्गत जो विषय वस्तु है वही हैं। उसमें उसकी नियुक्ति उसके दूसरे और मुद्दे, विधायकों की धमकी वाला विषय, आपने यहां व्यवस्था दी उसको नहीं लिया गया है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि इस दिशा में स्पष्ट व्यवस्था करें कि माननीय सभी सदस्य जो व्याप्ति हैं उसके अंतर्गत ही रहें, जहां तक न्यायालय में विचाराधीन का मामला है निश्चित रूप से ये तो वहां आ गया है लेकिन क्या वकील लोग गए, दरख्वासतें दी गयी, विचार हुआ, वहां से पंजीकृत भी हुआ अब क्रिमिनल प्रोसीजर कोर्ट में अब एफ.आई.आर. दर्ज हो जाती हैं वहां से न्याय परिधि शुरू हो जाती है इन सारी बातों को व्याप्ति के अंतर्गत रखकर ही चर्चा की जाए और ग्राह्यता पर चर्चा हों।
श्री गोपाल भार्गव : माननीय शुक्ल जी विधि के ज्ञाता हैं।
अध्यक्ष महोदय : हमारा यह कहना है कि मैंने आपसे कहा कि आप समाप्त करें, मैंने रामलखन शर्मा जी को पुकारा, कृपया अब आप बैठिये।
श्री गोपाल भार्गव : अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय शुक्ल जी से यह कहना चाहता हूं कि मामला सब-ज्यूडिस तब होता है जब चालान न्यायालय में पेश हो जाता है...
अध्यक्ष महोदय : इस तरह से आपस में एक-दूसरे से तर्क करने का कोई अर्थ नहीं है।
श्री गोपाल भार्गव : अध्यक्ष महोदय, मानव अधिकार के उल्लंघन से जुड़ा हुआ मामला है और इस तरह का जो यह दुष्कृत्य है उससे पूर प्रदेश का सिर शर्म से झुक गया है और इसलिए मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि इस स्थगन प्रस्ताव को आप चर्चा के लिए ग्राह्य करें ताकि सारे तथ्य सदन के सामने आ सकें।
डॉ. गौरीशंकर शेजवार : अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री जी ने इंटरेस्टे करके और विषय को गलत दिशा में मोड़ने की बात कही है और....(.......)
अध्यक्ष महोदय : यह रिकार्ड में नहीं आएगा।
श्री रामलखन शर्मा (सिरमोर) : अध्यक्ष महोदय, आज हम एक ऐसे महत्वपूर्ण प्रसंग पर ग्राह्यता के लिए बोल रहे हैं, जिसके लिए मानवीय संवेदना की बात की जा रही है, इसके दो पहलू हैं, एस.पी. सागर के खिलाफ लगातार शिकायतें आई हैं चाहे भार्गव काण्ड रहो हो, चाहे श्रीमती सुधा जैन काण्ड रहा हो, चाहे भूपेन्द्र सिंह बघेल काण्ड हो, कई प्रशंग आये हैं, जिसमें वे लगातार जनप्रतिनिधियों का अपमान कर रहे हैं, प्रताड़ित कर रहें हैं, मनगढ़ंत मुकदमें गढ़ रहे हैं और सरकार उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। इस प्रसंग में हमारी पूरी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के साथ है और अगर किसी भी विधायक के साथ अन्याय होता हैं तो हम उनके साथ हैं, अध्यक्ष महोदय, इस प्रस्ताव को इसलिए ग्राह्य किया जाना चाहिए क्योंकि राजू मुण्डा एक अपराधी था, इसके ऊपर कई ईनाम थे, यह लगातार छिप रहा था और इसकी हत्या हो गई। आज ऐसा लग रहा है कि जैसे वह विधानसभा में हीरो बन गय है। उसकी हत्या के बाद उसकी लाश को, पहचानने के लिए सागर जिला मुख्यालय लाया जाना कोई अपराध नहीं है, लेकिन लाश को सार्वजनिक रूप से टांगना, यह आंतक की छाया में आता है, मानवीय अधिकार का उल्लंघन है। उसके लिए सागर एस.पी. के खिलाफ कार्यवाही की जाना चाहिए। लेकिन में यहां यह स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि इस तरह से आतंकियों की हत्या करने के लिए किसी एस.पी. को प्रताड़ित करना उचित नहीं होगा।
अध्यक्ष महोदय : माननीय सदस्यों के विचार और शासन का उत्तर सुनने के पश्चात मैं इसकों प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं देता।
श्री विक्रम वर्मा : अध्यक्ष महोदय, कम से कम थोड़ा हमारी तरफ भी देख लिया करें, आप अनुमति न दें, ठीक है, कल राज्यपाल महोदय, के अभिभाषण पर जब मैं बोलूंगा तो मानवधिकार आयोग की जो टिप्पणी है, उसको कोड करूंगा लेकिन अभी मैं केवल इतना चाहता था कि मुख्यमंत्री जी इस पर कुछ बोलें। यह कोई छोटा मामला नहीं हैं, केवल किसी एस.पी. का प्रश्न नहीं है या जिस तरीके से मुख्यमंत्री जी इसको टर्न देना चाहते हैं उस तरह का मामला नहीं हैं बार-बार यह बात सामने आई है कि एस.पी.का आचरण सामने आया है। अध्यक्ष महोदय, किसी जाति, वर्ग या समाज का कोई व्यक्ति जब आई.ए.एस. या आई. पी.एस. बन जाता है तो वह फिर उस जाति या वर्ग का नहीं होता। वह आई.ए.एस. या आई.पी.एस. कैडर का होता है। और उसको सर्विस रूल्स का पालन करना चाहिए, उसको आचार-संहिता का पालन करना चाहिए, आदर्शों का, मानदण्डों का पालन करना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी के विवेक को जागृत करना चाहता हूं यह एक सामन्तवादी सरकार है। अध्यक्ष महोदय, मैं स्वयं जब सागर गया था, तब सागर के पत्रकार मुझसे मिले थे, सागर के पत्रकारों ने सारे सरकारी प्रकाशनों और विज्ञप्तियों का बहिष्कार कर रखा था और उन्होंने मुझे बताया कि यह सब एस.पी. के आचरण के कारण है, पूरे प्रेस वालों ने मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा। मुख्यमंत्री जी ने शायद उनसे चर्चा भी की। इतनी बड़ी घटना हुई, जिसके बारे में हिन्दुस्तार के सारे प्रेस ने संपादकीय लिखे, मानवधिकार आयोग के स्ट्रक्चर हैं, खुद कोर्ट ने केस रजिस्टर्ड करने के निर्देश जारी किए हैं, उसके बाद मुख्यमंत्री जी क्या करने जा रहे हैं, वह इस सदन में बताएं। अगर मुख्यमंत्री जी सदन में कुछ नहीं बोलते या कोई आश्वासन नहीं देते तो यह इसी बात को दर्शाएगा कि
(......) आदेशानुसार रिकार्ड नहीं किया गया।
मुख्यमंत्री जी ने खुली छूट अपनी पूलिस को दे रखी है ...(व्यवधान)
श्री जालमसिंह पटेल : अध्यक्ष महोदय, प्वाइन्ट ऑफ आर्डर, जब आपने इस प्रस्ताव को प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी, उसके बाद भी हमारे विपक्ष के नेता जो कुछ कह रहे हैं, वह उचित नहीं हैं।
अध्यक्ष्य महोदय : मैंने इसको प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी हैं।
श्री कैलाश जोशी : अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री जी की स्थिति बड़ी दयनीय है। अपने स्वयं के जिले में मुख्यमंत्री जी गए और वहां सार्वजनिक रूप से बोलकर आए कि यहां का कलेक्टर ठीक नहीं है, एस.पी. ठीक नहीं है, कानून-व्यवस्था की स्थिति ठप्प है...(व्यवधान)