Digvijaya Singh
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काँग्रेस सरकार ने किया बेहतर वित्तीय प्रबंधन

काँग्रेस सरकार ने  किया बेहतर वित्तीय प्रबंधन

 

 

बेहतर वित्तीय प्रबंधन -  (1993-2003)

  • मध्यप्रदेश में सरकार ने बेहतर वित्तीय प्रबंधन के जरिये जहां एक ओर राजस्व घाटे को कम करने के कारगर प्रयास किये, वहीं दूसरी ओर पूँजीगत व्यय में इजाफा कर विकास में तेजी लायी गई।
  • मध्यप्रदेश में बेहतर वित्तीय प्रबंधन के उद्देश्य से अधिकारों को विकेन्द्रीक्रत किया गया है। स्थाई वित्त समिति (स्टेडिंग फायनेंस कमेटी) और ग्यारहवें वित्त आयोग व्यय वित्त समिति की व्यवस्था कायम की गई। यह व्यवस्था शून्य आधारित बजट (जीरो बेस्ड बजटिंग) के समान है।
  • विभिन्न वित्तीय स्वीकृतियों के अधिकार संबंधित विभाग के सचिवों और प्रमुख सचिवों को दिये गये। गैर जरूरी खर्च पर नियंत्रण किया गया। इस नियंत्रण के फलस्वरूप चालू वित्तीय वर्ष में करीब 550 करोड़ रूपये की बचत की गई।
  • विकास विभागों के कार्य निर्बाध रूप से चल सके, इस उद्देश्य से लोक सेवा समझौते वित्त विभाग और विकास विभागों क्रमशः लोक निर्माण, जल संसाधन, नर्मदा घाटी विकास, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी के बीच हुए। इन समझौतों में वर्ष के दौरान इन विभागों द्वारा पूरे किये जाने वाले कार्यों का ब्यौरा और उनके लिये आवश्यक धन राशि की उपलब्धता सुनिश्चित की गई। इन समझौतों के आधार पर संबंधित विभाग की कार्यक्षमता का आकलन भी संभव हो सकेगा।
  • प्रदेश में लघु बचत को बढ़ाने के लिये विशेष प्रयास किये जा गए। इस वर्ष बजट अनुमान के 831 करोड़ रूपये की लघु बचत के विरूद्ध करीब दो हजार करोड़ रूपये की लघु बचत होने की संभावना है। लघु बचत की राशि का उपयोग विकास कार्यों में किया गया।
  • वर्ष 2000-2001 में राज्य के वित्तीय घाटे का सकल राज्य घरेलू उत्पाद की तुलना में प्रतिशत 3.76 था जबकि देश के सभी राज्यों का कुल औसत 4 प्रतिशत था।
  • मध्यप्रदेश में पूंजीगत व्यय की स्थिति में भी सुधार हुआ है। वर्ष 1999-2000 में प्रदेश में पूंजीगत व्यय शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद का 1.09 प्रतिशत था जो वर्ष 2001-2002 में बढ़कर 1.88 प्रतिशत हो गया।
  • मध्यप्रदेश का राजस्व घाटा अन्य राज्यों की तुलना में कम रहा है। वर्ष 2001-2002 में बजट अनुमान के अनुसार मध्यप्रदेश का राजस्व घाटा 2264 करोड़ रूपये था। चालू वर्ष के बजट अनुमान के अनुसार मध्यप्रदेश का राजस्व घाटा 94 करोड़ रूपये रहने की संभावना है। आंध्रप्रदेश का राजस्व घाटा 3887 करोड़ रूपयेगुजरात का 8375 करोड़ रूपये, महाराष्ट्र का 2473 करोड़ रूपये, राजस्थान का 2973 करोड़ रूपये तथा उत्तरप्रदेश का राजस्व घाटा 3707 करोड़ रूपये था।
  • मध्यप्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद से ऋण प्रतिशत सिर्फ 19.17 है जबकि सभी राज्यों का कुल औसत प्रतिशत 24.33 है। वर्ष 1999-2000 की स्थिति में सभी राज्यों के कुल ऋण में मध्यप्रदेश के अंश में नकारात्मक प्रवृत्ति रही जबकि आन्ध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा जैसे अन्य बड़े प्रदेशों में यह प्रवृत्ति धनात्मक रही।
  • मध्यप्रदेश द्वारा राजस्व व्यय के अनुपात में ब्याज भुगतान सिर्फ 14.2 प्रतिशत रहा जबकि गैर विशेष श्रेणी राज्यों का यह औसत 16.4 प्रतिशत रहा।
  • मध्यप्रदेश में गैर-योजना खर्च में भी कमी आई है। राजस्व आय के अनुपात में गैर यौजना खर्च का पूरे देश का औसत 46.3 प्रतिशत है जबकि मध्यप्रदेश का यह औसत 38.3 प्रतिशत है।
  • भारत की संवैधानिक संघीय व्यवस्था में कुछ टैक्स इकट्ठा करने का अधिकार केन्द्र को है और कुछ टैक्स इकट्ठा करने का अधिकार राज्यों को है। वित्त आयोगों के माध्यम से विभाजन होता है। 11 वें वित्त आयोग से मध्यप्रदेश को जो राशि मंजूर हुयी थी, तीन वर्षों में उससे लगभग 22 सौ करोड़ रूपये केन्द्र सरकार से कम मिले हैं।
  • योजना आयोग (भारत सरकार) ने पहली बार राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वर्ष 1993-94 से वर्ष 99-2000 के बीच मध्यप्रदेश में रोजगार के अवसरों में वृद्धि की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
  • मध्यप्रदेश में इस अवधि में 1.8 प्रतिशत की वार्षिक दर से रोजगार के अवसर बढ़े हैं जबकि अखिल भारतीय स्तर पर रोजगार वृद्धि की यह दर 1.6 प्रतिशत है।
  • रोजगार के क्षेत्र में मध्यप्रदेश की यह वृद्धि दर आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा और केरल जैसे राज्यों से भी अधिक है। वर्ष 99-2000 में मध्यप्रदेश में बेरोजगारी की दर उपलब्ध श्रम शक्ति का 1.1 प्रतिशत थी जबकि राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी की यह दर 2.3 प्रतिशत थी।
  • मध्यप्रदेश ने वर्ष 1991-02 से 1997-98 के बीच 6.2 प्रतिशत की सुदृढ़ आर्थिक दर प्राप्त की है जबकि 1980 के दशक में मध्यप्रदेश में, आर्थिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत थी।
  • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू राज्य उत्पाद की दृष्टि से मध्यप्रदेश में वर्ष 1991-92 से 1997-98 की अवधि में 3. 87 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गयी जबकि 1980 के दशक में यह मात्र 2.8 प्रतिशत थी।
  • मध्यप्रदेश में गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की संख्या भी घटी है। वर्ष 1992-93 में गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की संख्या 42.52 प्रतिशत थी जो 1999-2000 में घटकर 37.43 प्रतिशत हो गयी।

पिछले दशक में भारत में फारेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट जितनी आयी हैं उनमें मध्यप्रदेश का सांतवां नम्बर है। पहले पर महाराष्ट्र, दूसरे पर दिल्ली, तीसरा तमिलनाडु, चौथा कर्नाटक, पांचवां गुजरात, छटवां आंध्रप्रदेश और सांतवा मध्यप्रदेश है। वर्ष 1991 से 2002 के बीच मध्यप्रदेश में 9227 करोड़ रूपये के विदेशी पूंजी निवेश को स्वीकृति दी गयी।

  • मध्यप्रदेश में पिछले नौ सालों में 238 वृहद मध्यम उद्योग लगे जिनमें 5242 करोड़ रूपये का निवेश हुआ तथा 35 हजार 809 व्यक्तियों को रोजगार प्रापत हुआ। राज्य में इसी अवधि में एक लाख 50 हजार 985 लघु उद्योग स्थापित हुए जिनमें 1090 करोड़ रूपये का पूंजी निवेश हुआ और 3 लाख 64 हजार लोगों को रोजगार मिला।
  • मध्यप्रदेश में वर्ष 1991 से 2002 के बीच 1922 इंडस्ट्रियल एंट्रीप्रिनियर्स मेमोरेण्डम के माध्यम से 41 हजार 399 करोड़ रूपये के पूंजी निवेश के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। पूरे देश में आई.ई.एम के माध्यम से पूंजी निवेश आकर्षित करने में मध्यप्रदेश का आठवां स्थान है।