ग्राम स्वराज एवं पंचायत राज
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज व पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की पंचायती राज की परिकल्पना को साकार करते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की थी। ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने की दिशा में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था ने अपनी महती भूमिका निभाई। मध्यप्रदेश में वर्ष 1993 के बाद पहली बार पंचायतें सशक्त हुई। गांव के विकास में पंचायत अंतिम इकाई के रूप में स्थापित हुई। जनपद पंचायत की भूमिका, उनके अधिकारों को भी पंचायत राज में परिभाषित करते हुए गांव के विकास में उनका स्वरूप स्पष्ट किया गया। जिला पंचायत एक ऐसी इकाई के रूप में स्थापित हुई जो गांव के साथ निरंतर संपर्क और संवाद का प्रमुख केन्द्र बनी।
जिला सरकार -
राज्य में जिला सरकार के जरिये एक बड़ा प्रशासनिक सुधार किया गया। इससे प्रशासन की बहु स्तरीय व्यवस्था खत्म हुई। इस नयी व्यवस्था से निर्णय प्रक्रिया में तेजी आई और विकास कार्यों में स्थानीय जरूरतों का विशेष ध्यान रखा जाने लगा।
अब प्रदेश में जिला स्तर पर योजना बनाने की पूरी तैयारी है, जिसके आधार पर राज्य योजना बनेगी।
इस व्यवस्था में राज्य सरकार तथा संभागीय कार्यालयों के अधिकार जिला योजना समितियां को दिये गये।
ग्राम स्वराज
मध्यप्रदेश में 26 जनवरी 2001 से लागू ग्राम स्वराज प्रतिनिधिक प्रजातंत्र से प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।
इसका प्रमुख उद्देश्य ग्राम सभा के माध्यम से लोगों को शक्ति सम्पन्न बनाना और स्थानीय संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल से ग्रामीण विकास को नयी दिशा देना है।
ग्राम स्वराज में प्रत्येक गांव की एक ग्राम सभा होगी। ग्राम सभा को गांव के विकास सम्बन्धी सभी निर्णय करने की स्वतंत्रता दी गई।
ग्राम सभा अपनी आठ स्थाई समितियों के मार्फत कार्य करेगी। ये समितियाँ हैं: ग्राम विकास, सार्वजनिक सम्पदा, कृषि, स्वास्थ्य, ग्रामीण सुरक्षा, अधोसंरचना, शिक्षा और सामाजिक न्याय।
ग्राम सभा की ग्राम कोष के नाम से एक निधि बनाई गई।
ग्राम न्यायालय
प्रदेश में ग्राम न्यायालयों की स्थापना का भी निर्णय लिया गया।
दस ग्रामों के वृत्त पर एक ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई।
प्रदेश में 1565 ग्राम न्यायालय स्थापित किये गए।